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ए.आई. रहमान और जोशी
पाकिस्तान के आई.ए. रहमान और इंदौर के महेश जोशी अपने ढंग के अनूठे लोग थे।
लखनऊः इस हफ्ते मैंने अपने दो मित्र खो दिए। एक तो पाकिस्तान के श्री आई.ए. रहमान और दूसरे इंदौर के श्री महेश जोशी ! ये दोनों अपने ढंग के अनूठे लोग थे। दोनों ने राजनीति और सार्वजनिक जीवन में नाम कमाया और ऐसा जीवन जिया, जिससे दूसरों को भी कुछ प्रेरणा मिले। श्री आई.ए. रहमान का पूरा नाम इब्न अब्दुर रहमान था। 90 वर्षीय रहमान साहब का जन्म हरयाणा में हुआ था और वे विभाजन के बाद पाकिस्तान में रहने लगे थे।
वे विचारों से मार्क्सवादी थे लेकिन उनके स्वभाव में कट्टरपन नहीं था। इसीलिए पाकिस्तानी राजनीतिक दलों के सभी नेता उनका सम्मान करते थे। उन्होंने जिंदगीभर इंसानियत का झंडा बुलंद किया। 1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान में याह्याखान सरकार ने जुल्म ढाए तो उन्होंने उसके खिलाफ आवाज उठाई। जनरल अयूब और जनरल जिया-उल-हक के ज़माने में भी वे बराबर लोकतंत्र और मानवीय अधिकारों के लिए लड़ते रहे। जब जनरल ज़िया ने पाकिस्तानी अखबारों पर शिकंजा कसा तो उसके खिलाफ आंदोलन खड़ा करनेवालों में वे प्रमुख थे। फौजी सरकार ने उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया था।
उसी दौरान 1983 के आस-पास मेरी मुलाकात रहमान साहब और प्रसिद्ध बौद्धिक और जुल्फिकार अली भुट्टो के वित्त मंत्री रहे डाॅ. मुबशर हसन से लाहौर में हुई थी। मुबशर साहब का जन्म भी पानीपत में हुआ था। दोनों ने भारत और पाकिस्तान के बीच शांति, मैत्री और लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए कई संगठन खड़े किए थे। उन्होंने लाहौर, दिल्ली और कोलकाता में इनके अधिवेशन भी आयोजित किए थे। इन अधिवेशनों में मेरे-जैसे कुछ भारतीय अतिथियों को हमेशा निमंत्रित किया जाता था।
भारत-पाक संबंधों पर हमारे दो-टूक विचारों को उन्होंने हमेशा सम्मानपूर्वक सुना है। वे अपने मतभेद भी प्रकट करते थे तो भी उनकी भाषा कभी आक्रामक नहीं होती थी। वे इतने मधुरभाषी, मिलनसार और गर्मजोश थे कि उनसे मिलते वक्त हमेशा ऐसा लगता था कि हम किसी अपने बुजुर्ग हमजोली के साथ हैं। वे पाकिस्तान के प्रसिद्ध अखबार 'पाकिस्तान टाइम्स' के संपादक और मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष भी रहे।
अस्वस्थता के बावजूद वे, 'डाॅन' अखबार में अपने निर्भीक और निष्पक्ष लेख भी लिखते रहे। उन्हीं के प्रयत्नों से हामिद अंसारी नामक एक भारतीय नौजवान को लंबी जेल से छुटकारा मिला। जो लोग सारे दक्षिण एशिया को एक परिवार समझते हैं, वे रहमान साहब, मुबशरजी और असमा जहाँगीर— जैसे लोगों को कभी भुला नहीं सकते।
(ये लेखक के निजी विचार हैं।)