Kakori Train Incident: भारतीय स्वाधीनता आंदोलन और पानबारी का रेलगाड़ी दुर्घटना कांड

Kakori Train Incident: असम के बहुत कम ही स्वाधीनता सेनानियों के नाम राष्ट्रीय स्तर पर गिने जाते हैं, कारण कि उन्हें उनका अपना परिचय स्वयं देना शायद गंवारा न रहा होगा या उनके शहीद होने के बाद उनके बारे में जानकारी और तथ्य इकट्ठा करना कुछ मुश्किल रहा होगा।

Anshu Sarda Anvi
Published on: 10 Aug 2024 4:17 PM GMT
Kakori Train Incident: भारतीय स्वाधीनता आंदोलन और पानबारी का रेलगाड़ी दुर्घटना कांड
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Kakori Train Incident: स्वाधीनता प्रत्येक मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है। अब जब देश अपनी स्वाधीनता के 77 वर्ष पूरे कर अपना 78वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है, तो उन स्वाधीनता सेनानियों को याद करना आवश्यक होता है, जिन्होंने अपना जीवन दांव पर लगाकर, उसकी परवाह न करके देश की स्वाधीनता के लिए लड़ाई लड़ी। देश को आजादी सिर्फ अंग्रेजों के विरुद्ध अहिंसात्मक आंदोलन से ही नहीं मिली थी। देश की आजादी में सशस्त्र क्रांतिकारी आंदोलनों की भी अपनी भूमिका थी। सन् 1757 का प्लासी युद्ध हो या सन् 1763 का सन्यासी विद्रोह, सन 1776 का चकमा आदिवासी विद्रोह हो या वीर भूमि विद्रोह, भील विद्रोह, कोल विद्रोह , संथाल विद्रोह......आदि। एक लंबी फेरीहिस्त है इन सशस्त्र विद्रोहों की, जिनके संगठित प्रतिरोध के कारण अंग्रेजों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। असम के भी स्वाधीनता सेनानियों में उस समय वीर रस अपने उबाल पर था। असम के बहुत कम ही स्वाधीनता सेनानियों के नाम राष्ट्रीय स्तर पर गिने जाते हैं, कारण कि उन्हें उनका अपना परिचय स्वयं देना शायद गंवारा न रहा होगा या उनके शहीद होने के बाद उनके बारे में जानकारी और तथ्य इकट्ठा करना कुछ मुश्किल रहा होगा।


हम सभी ने 9 अगस्त, 1925 को काकोरी में क्रांतिकारियों द्वारा अंग्रेजों का खजाना लूट लेने के बारे में पढ़ा है, जिसमें पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, अशफाक उल्ला खां और राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को फांसी की सजा सुनाई गई। 16 अन्य को भी दंडित किया गया। इस घटना ने पूरे देश में क्रांतिकारी गतिविधियों को प्रेरित किया। भारत के स्वाधीनता आंदोलन में असम मे घटित पानबारी का रेलगाड़ी दुर्घटना कांड बिल्कुल अछूता है। देश की आजादी के आंदोलन में ट्रेन और रेलवे स्टेशनों की भी अपनी भूमिका रही थी। भारतीय रेल स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी रही। असम के विभिन्न स्वाधीनता सेनानियों कनकलता बरूआ, कुशल कुंवर, भोगेश्वरी फुकन, मुकुंद काकाति, मनीराम दीवान, पियोली फुकन , पीतांबर देव गोस्वामी, गोपीनाथ बोरदोलई आदि वे नाम हैं, जिनके बारे में असम का जन-जन जानता है और वे प्रकाश में भी आए हैं। पर बहुत से ऐसे नाम भी हैं जिनके बारे में असम या शेष देश के लोग नहीं जानते हैं। ऐसा ही एक विरल नाम है- महदानंद गोस्वामी का। वह स्वाधीनता सेनानी जिसके चरित्र को आधार बनाकर असमिया भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार वीरेंद्र भट्टाचार्य ने ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त उपन्यास 'मृत्युंजय' की रचना की थी। अविभाजित नगांव जिले यानी आज के मोरीगांव जिले के मायं अंचल से आकर गुवाहाटी से कुछ दूरी पर पानवारी नामक स्थान पर अंग्रेजी सैनिकों को ले जाने वाली रेलगाड़ी को पटरी से उतार कर दुर्घटनाग्रस्त कर देने का साहसिक काम करने वाले महदानंद गोस्वामी वह संग्रामी युवा थे, जिनके मन में अपनी मातृभूमि के लिए कुछ कर गुजरने की तमन्ना थी।


अंग्रेजी सरकार द्वारा देश के स्वाधीनता आंदोलन के बड़े-बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में बंदी बना दिया गया था। ऐसे में हिंसात्मक आंदोलन भी अपने पूरे उबाल पर था। तत्कालीन असम में भी हिंसा भड़क चुकी थी। अपने उद्देश्य को येन- केन प्रकारेण पाने के लिए स्वाधीनता के दीवाने अंग्रेजों को ले जाने वाली रसद को लूटना, पुलिस चौकियों पर कब्जा कर तिरंगा लहराना, रेलगाड़ियों को पटरी से उतार कर दुर्घटनाग्रस्त कर देना, अंग्रेजी सेना को जाने वाली सहायता को बंद कर देने के उद्देश्य से पुलों को क्षतिग्रस्त कर देना, हवाई अड्डे को क्षति पहुंचाना जैसे कामों को अंजाम देने लगे थे। जनसाधारण पर अंग्रेजी सैनिकों और उनके गुलाम भारतीय पुलिस के अत्याचारों को कहां यह युवा वर्ग स्वीकार कर सकता था। नगांव जिले में नगांव शांति सेवा वाहिनी की स्थापना का एक ही यथेष्ट था-


' त्रिरंग निशान, विजय निशान'

इसके साथ ही असम मृत्यु वाहिनी का भी गठन किया गया, जिसमें भोगाराम डेका, दधिराम बरदलै, बिकाराम डेका, भागीरथ कोंवर, दीनाराम डेका, महदानंद गोस्वामी आदि थे। इस वाहिनी ने द्वितीय विश्व युद्ध के समय अंग्रेजी सेना की आवाजाही में गतिरोध उत्पन्न करने का ध्येय लिया। इसके लिए अंग्रेजी सेना को ले जाने वाली रेलगाड़ी को बेपटरी करने की योजना बनाई। पर रेलगाड़ी दुर्घटनाग्रस्त करवा कर उन लोगों की हत्या करना, जो देश- देशांतर से युद्ध में आत्मबलिदान के लिए यहां आए हैं, वह पाप है ऐसे प्रश्न महदानंद गोस्वामी के मन में बार-बार उठते रहे पर आततायी की हत्या करना कोई पाप नहीं। यह सोचकर स्वतंत्रता के दीवाने रेलगाड़ी दुर्घटना की योजना को साकार करने में जुट गए। अपना कर्तव्य सर्वोपरि ऐसी भावना लेकर नवंबर 1942 में महदानंद और उनके विभिन्न साथियों ने इस कार्य योजना को बनाया कि कहां, किससे, कैसे सहायता की आवश्यकता होगी ,रेलगाड़ी को बेपटरी करने का काम किस प्रकार अच्छी तरह से संपन्न किया जा सकता है, उस पर गंभीरता से विचार किया।


महदानंद ने गुवाहाटी प्लेटफार्म पर असमिया पॉइंट मैन से मिलिट्री की ऊपरी असम को जाने वाली गाड़ियों के निकासी के संदर्भ में सूचना एकत्र की। रास्ते में वापस आते समय उनके दिमाग में एक ही विचार घूम रहा था कि पानीखाइती से डिगारू के बीच किस जगह पर रेल लाइन पर यह काम करने में सुविधा रहेगी। रास्ते में उचित जगह के पास के टेलीफोन खंबे के नंबर को याद कर लिया, लिखा नहीं कि कहीं संदेह न हो जाए। औजारों के नाम पर दो रेंज और कुछ अन्य सामान व एक नाली वाली बंदूक बांस में छुपा कर, यह 11 सदस्यीय दल निकल पड़ा। रास्ते में कलंग नदी को पार करके हंहेरा कमारकुछि के चारिआली में पहुंचा। वहां से इस दल ने अमरा कलंग घाट की ओर से नाव से कलंग नदी को पार किया। फिर बरबिला रिजर्व होते हुए डिगारू नदी को किसी ने तैर कर तो किसी ने बेड़े की नाव द्वारा पार किया और अब वे पानबारी स्टेशन के आसपास पहुंच चुके थे।


यहां रेल लाइन पहाड़ के ऊपर से होकर जाती थी जो कि बांस के घने जंगलों में से होकर निकल रही थी। उस 11 सदस्यीय दल में किसी ने पहरा दिया, किसी ने रेल पटरी का नट खोला, तो किसी ने रेंज चलाने में सहायता की तो किसी ने फिश प्लेट खोली। इस तरह से उन सभी ने अपने-अपने काम को अंजाम देने के लिए अंधेरे में जलती मोमबत्ती का सहारा लिया। सभी ने धूप के पैकेट को जलाकर उससे उत्पन्न अग्नि को साक्षी मानकर शपथ ली कि उनमें से कोई भी अगर पकड़ा जाता है तो भले ही प्राण चले जाएं पर वे अपने साथियों के नाम नहीं बताएंगे। उन्होंने रेल पटरी को एक जगह पर एक इंच फैलाकर टेढ़ा कर दिया और 10 मिनट में अपना काम पूरा करके वे कलंग नदी को पार कर पहाड़ी पर पहुंच गए। इतने में ट्रेन पानीखाइती स्टेशन को छोड़कर आगे बढ़ चली थी और कुछ ही देर में एक भयंकर आवाज और लोगों की चीख-पुकार की आवाज ने पूरे पहाड़ के उस इलाके को मानो हिला दिया था। स्वतंत्रता के उन दीवानों का काम पूरा हो चुका था। रात में ही उन्होंने घनघोर जंगल को पार किया। वे सभी लोणमाटि और मायं गांव को पार कर अपने-अपने स्थान पर पहुंच गए।



पानबारी की रेल दुर्घटना के बाद वही हुआ जो होना था। पुलिसिया धर-पकड़ हुई और उस दल के अनेक लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया और इस तरह स्वदेश हित में मातृभूमि की रक्षा के आंदोलन में स्वाहुति डालने के उद्देश्य से किया गया उनका यह कार्य असम ही नहीं बल्कि देश के स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास में अपनी जगह बनाकर स्वर्णाक्षरों में लिखा गया। महदानंद गोस्वामी ने अपनी दाढ़ी- मूंछों को कटा लिया जिससे कि वह पुलिसिया पहचान से बचे रहे। स्वाधीनता के मतवाले महदानंद गोस्वामी के बारे में लोग लोकगीतों में गाने लागे-


'पान बारीत बागरिल गाड़ी ,

बाबाजीये खुराले दांरि'

पानबारी में रेलगाड़ी उलट गई, बाबा जी ने दाढ़ी- मूंछ साफ कर दी। इस तरह असम के स्वाधीनता के मतवालों ने भी देश के स्वाधीनता संग्राम में अपना योगदान दिया।हम भूल नहीं सकते हैं उन लोगों को जिनके कारण आज हम एक स्वाधीन फिज़ा में सांस ले रहे हैं। देश की स्वाधीनता के 77 वर्ष पूर्ण कर 78वें स्वाधीनता दिवस की आप सबको अनेकानेक शुभकामनाएं।

(संदर्भ ग्रंथ- भारत के स्वाधीनता आंदोलन में पानबारी का रेलगाड़ी दुर्घटना कांड। लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं ।)

Shalini Rai

Shalini Rai

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