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महामारियों का प्रभाव

Pandemic Effects :14वीं सदी के पांचवें और छठें दशक में "ब्लैकलेग" आया था इसने यूरोप में मौत का तांडव किया था।

D.P.Yadav
Written By D.P.YadavPublished By Shraddha
Published on: 30 May 2021 2:55 PM IST
महामारियों का प्रभाव
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Pandemic Effects : कोई भी बीमारी सिर्फ इसलिए महामारी (Epidemic) नहीं कहलाती है कि यह बड़े पैमाने पर फैलती है या इससे कई लोगों की मौत हो जाती है, बल्कि इसके साथ-साथ इसका संक्रामक होना भी बहुत जरूरी है। महामारी उसे कहा जाता है जो बीमारी एक ही समय में दुनिया के अलग-अलग देशों के लोगों में फैल रही हो। उदाहरण के लिए कैंसर (Cancer) और मधुमेह (Diabetes) से कई लोगों की मौत तो होती है लेकिन इन्हें महामारी की संज्ञा नहीं दी जा सकती क्योंकि ये संक्रामक या संक्रमणकारी रोग नहीं हैं।

मानव इतिहास में अनेक महत्वपूर्ण महामारियां दर्ज हैं। इतिहास गवाह है कि समाज को आईना दिखाने और भटके हुए समाज को सबक सिखाने के लिए महामारियां समय-समय पर दस्तक देती रही हैं। महामारियों से समाज में रोशनी, उम्मीद और आशा की किरण भी पैदा होती है, ऐसी घटनाओं से ही एक न्यायोचित और भेदभाव न करने वाला समाज पैदा होता है।

ब्लैकलेग महामारी

ब्लैक डेथ महामारी (कांसेप्ट फोटो सौ. से सोशल मीडिया)


14वीं सदी के पांचवें और छठें दशक में "ब्लैकलेग" या जिसे "ब्लैक डेथ" भी कहा जाता है इसने यूरोप में मौत का दिल दहला देने वाला तांडव किया था। इस महामारी के कहर से यूरोप की तिहाई आबादी काल के गाल में समा गई थी। लेकिन दसियों लाख जानें लेने वाली यह महामारी कई यूरोपीय देशों के लिए वरदान साबित हुई इस महामारी से इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मौत के कारण खेतों में काम करने के लिए उपलब्ध लोगों की संख्या बहुत कम हो गई। इससे जमीदारों को दिक्कत होने लगी। जो किसान बचे थे उनके पास जमीदारों से सौदेबाजी की क्षमता बढ़ गई। इसका नतीजा यह हुआ कि पश्चिमी यूरोप के देशों की सामंतवादी व्यवस्था टूटने लगी। इसकी वजह से सामंतवाद का खात्मा हो गया था और इससे एक बड़ा सामाजिक परिवर्तन देखने को मिला था। इस बदलाव ने मजदूरी पर काम करने की प्रथा को जन्म दिया। इस महामारी के बाद लोगों की रुचि धर्म में कम हुई थी और वे दुनिया को मानवता की नजर से देखने लगे थे। यही तब्दीलियां आगे चलकर यूरोप में पुनर्जागरण की वाहक बनी थीं।

येलो फीवर महामारी

येलो फीवर महामारी (कांसेप्ट फोटो सौ. से सोशल मीडिया)

19वीं सदी में "येलो फीवर" जैसी महामारी के प्रकोप ने उस समय की बड़ी साम्राज्यवादी ताकत फ्रांस को उत्तरी अमेरिका से बाहर करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी और इसी के बाद अमेरिका का बड़े और ताकतवर देश के तौर पर विकास हुआ था। 1888 और 1897 के दरमियान "राइंडरपोस्ट"नाम के वायरस ने अफ्रीका में लगभग 90% पालतू जानवरों को खत्म कर दिया। इतने बड़े पैमाने पर जानवरों की मौत से अफ्रीका में रहने वाले बहुत से समुदायों पर कयामत सी आ गई।यहां के समाज में बिखराव आ गया, भूखमरी फैल गई। अफ्रीका के ऐसे बदतर हालात ने 19वीं सदी के आखिर में यूरोपीय देशों के लिए अफ्रीका के एक बड़े हिस्से पर अपने उपनिवेश स्थापित करने का माहौल तैयार कर दिया। तो हम यह कह सकते हैं कि यूरोपीय देशों को अफ्रीका की जमीनें हड़पने में "राइंडरपोस्ट"के प्रकोप से भी काफी मदद मिली।

इटली ने 1890 में इरिट्रिया में साम्राज्य विस्तार शुरू किया था। उसे इस काम में "राइंडरपोस्ट"की वजह से पड़े अकाल से भी मदद मिली जिसके चलते इथियोपिया की एक तिहाई आबादी मौत के मुंह में समा गई थी। चीन में "मिंग राजवंश" ने लगभग तीन सदी तक राज किया था। चीन की दीवार बनाने का अधिकतर काम मिंग शासनकाल में ही हुआ। अपने पूरे शासनकाल में इस राजवंश ने पूर्वी एशिया के एक बड़े इलाके पर अपना जबरदस्त "सियासी" और "सांस्कृतिक" प्रभाव छोड़ा था। लेकिन प्लेग की वजह से इतने ताकतवर राजवंश का अंत बहुत विनाशकारी रहा। एक महामारी ने इस बेहद ताकतवर राजवंश के पतन में अहम भूमिका अदा की।

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि 1918 में "Mother of all pandemics ie Spanish flu" जैसी महामारी ने "सार्वजनिक स्वास्थ्य" में बढ़त लाने के लिए प्रेरित किया और इसके जरिए "Socialised medicine" का विकास हुआ। इस महामारी ने दुनिया के कई हिस्सों में एक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के बीज बो दिए। इस महामारी के समय दुनिया अभी पहले विश्व युद्ध के चलते एक-दूसरे से शत्रुता को झेल रही थी लेकिन इस महामारी ने अंतरराष्ट्रीय सहयोग की अहमियत पर जोर दिया,और वैश्विक कल्याण के लिए "संयुक्त राष्ट्र संघ" व "विश्व स्वास्थ्य संगठन" जैसे वैश्विक संगठनों के गठन की नींव पड़ी और उनके गठन का मार्ग प्रशस्त हुआ। स्पैनिश फ्लू के बाद बड़े पैमाने पर मजदूर आंदोलन शुरू हुए और साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ लोग सड़कों पर उतरे। भारत में इस महामारी से लाखों लोग मरे तो इससे भारत में "आजादी के आंदोलन" को हवा मिली।

कोरोना वायरस महामारी

निश्चित तौर पर मनुष्य कोरोना वायरस की महामारी को चुनौती की तरह लेगा और इससे निपटने की तैयारी करेगा, उसकी सोच कल्पना और उद्यमशीलता को नए पंख लगेंगे। विज्ञान की राह में भी नए दरवाजे खुलेंगे। वर्तमान में पूरे विश्व में स्थितियां बहुत असामान्य हैं और उथल-पुथल का माहौल है,तो हो सकता है कि "कोरोना वायरस" के कारण स्थितियां परिवर्तित हों और विश्व कल्याण की दिशा में अहम कदम उठाए जाएं,जिससे मानव,प्रकृति और समाज का कल्याण हो।

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