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हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान के उपासक-मालवीय जी

Pandit Madan Mohan Malaviya: प्राथमिक शिक्षा पूर्ण करके मालवीय जी ने संस्कृत व अंग्रेजी पढ़ी। मालवीय जी युवावस्था में अंग्रेजी तथा संस्कृत दोनों ही भाषाओं में धाराप्रवाह बोलते थे।

Mrityunjay Dixit
Written By Mrityunjay Dixit
Published on: 24 Dec 2022 8:33 AM GMT
Pandit Madan Mohan Malaviya
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Pandit Madan Mohan Malaviya  (photo: social media )

Pandit Madan Mohan Malaviya: आधुनिक भारत में प्रथम शिक्षा नीति के जनक, शिक्षा के विशाल केंद्र काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक, सांस्कृतिक नवजागरण स्वदेशी एवं हिंदी आंदोलनों के प्रवर्तक राष्ट्रभक्त महान समाज सुधारक भारतीय काया में पुनः नयी चेतना एवं ऊर्जा का संचार करने वाले महामना मदन मोहन मालवीय का जन्म 25 दिसम्बर l, 1861 को हुआ था। मालवीय जी के पिता पण्डित ब्रजनाथ कथा, प्रवचन और पौरोहित्य से ही अपने परिवार का पालन- पोषण करते थे। प्राथमिक शिक्षा पूर्ण करके मालवीय जी ने संस्कृत व अंग्रेजी पढ़ी। मालवीय जी युवावस्था में अंग्रेजी तथा संस्कृत दोनों ही भाषाओं में धाराप्रवाह बोलते थे। महामना मदन मोहन मालवीय बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। खेलकूद, व्यायाम,कुश्ती, बांसुरी एवं सितार वादन में उनकी रुचि थी। बाल जीवन में ही एक भाषण- दल बनाया था जो चौराहों पर तथा मेलों, सभाओं में विभिन्न विषयों पर भाषण दिया करता था। कवि और साहित्यकार की प्रतिभा भी विद्यमान थी। भारतेंदु हरिश्चंद्र की कवि मंडली में भी जुड़े हुए थे।

स्नातक करने के बाद मालवीय जी ने अध्यापक की नौकरी की तथा बाद में वकालत भी की। उनकी वकालत की विशेषता थी- गरीबों तथा सार्वजनिक हित के मामलों में कोई फीस न लेना, जिसमें झूठ बोलना पड़े ऐसा केस न लेना। महामना ने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी कार्य किया।जुलाई1887 से जून 1889 तक हिंदी दैनिक 'हिन्दोस्थान'(कालांकर) के मुख्य संपादक,जुलाई 1889 से 1992 तक अंग्रेजी पत्र "इण्डियन यूनियन" के सह संपादक और 1907 में साप्ताहिक 'अभ्युदय' 1909 में अंग्रेजी दैनिक 'लीडर' 1910 में हिंदी पाक्षिक 'मर्यादा' एवं 1933 में हिंदी साप्ताहिक 'सनातन धर्म' के संस्थापक तथा कुछ वर्षां तक इन सभी पत्रों के संपादक रहे। मालवीय जी 1924 से 1940 तक 'हिंदुस्तान टाइम्स' दिल्ली के चेयरमैन रहे। मालवीय जी ने 1908 में अखिल भारतीय संपादक सम्मेलन, प्रयाग के अध्यक्ष पद से समाचार पत्रों की स्वतंता का हनन करने वाले सरकारी प्रेस एक्ट तथा न्यूज पेपर एक्ट की कड़ी आलोचना की थी। सन 1910 में मालवीय जी ने प्रान्तीय कौंसिल में सरकारी प्रेस विधेयक का कड़ा विरोध किया। जनचेतना एवं जनआंदोलन की लहर जगाने में महामना की पत्रकारिता ने एक बड़ी भूमिका निभायी थी। उनके लिये पत्रकारिता कोई व्यवसाय नहीं अपितु एक धर्म था। वे पत्रकारिता को एक कला मानते थे।

हिंदी, हिंदू और हिंदुस्तान के लिए 24 घंटे कार्यरत

हिंदू धर्म व समाज पर जब भी कोई संकट आता तो वे तुरंत सक्रिय हो जाते थे। हिंदी, हिंदू और हिंदुस्तान के लिए 24 घंटे कार्यरत रहते थे। उन्होने 10 अक्टूबर, 1910 को काशी में आयोजित हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रथम अधिवेशन की अध्यक्षता की और अपने अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने सभी से हिंदी सीखने का आह्वान किया। 19 अप्रैल, 1919 को बम्बई में आयोजित हिंदी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए मालवीय जी ने देवनागरी लिपि में लिखी गयी हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा की मान्यता प्रदान करने पर जोर दिया। मालवीय जी भारतीय विद्यार्थियों के लिए प्राचीन भारतीय दर्शन, साहित्य, संस्कृति और अन्य सुविधाओं के साथ- साथ अर्वाचीन नीतिशास्त्र, समाज विज्ञान, मनोविज्ञान, विधि विज्ञान, अर्थशास्त्र और राजनीति का अध्ययन आवश्यक समझते थे। हिंदी की सेवा और गोरक्षा में उनके प्राण बसते थे।

उन्होने लाला लाजपत राय और स्वामी श्रद्धानंद के साथ मिलकर अखिल भारतीय हिंदू महासभा की स्थापना की थी। वे 1923, 24 और 36 में अखिल भारतीय हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे। जबकि 1909, 18, 32, 33 में वे अखिल भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। वे महान समाजसेवी भी थे। समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए सतत प्रयास किये। महिलाओं में निरक्षरता को समाप्त करने के लिए अनेक शिक्षण संस्थाएं खुलवायीं। उन्होनें अपने जीवनकाल में ही व्यायामशाला, गौशाला और मंदिर भी बनवाये। हर हिंदू के प्रति प्रेम होने के कारण उन्होनें हजारों हरिजन बंधुओं को ऊँ नमः शिवाय और गायत्री मंत्र की दीक्षा दी।

भारती भवन नाम से पुस्तकालय स्थापित करवाया

मालवीय जी ने नवम्बर सन 1889 में भारती भवन नाम से पुस्तकालय स्थापित करवाया। जिसका उद्देश्य हिंदी और संस्कृत पुस्तकों का संग्रह और अध्ययन था। मालवीय जी ने हिंदू विद्यार्थियों के रहने के लिए एक छात्रावास के निमित्त प्रांतों में घूम -घूम कर धन एकत्र किया। वे जीवन पर्यंत समाजसेवा में रत रहे ।

अगस्त 1946 में जब मुस्लिम लीग ने सीधी कार्यवाही के नाम पर पूर्वोत्तर भारत में कत्लेआम किया तो मालवीय जी बीमार थे। वहां हिंदू नारियों पर अत्याचारों को सुनकर वे रो पड़े। इसी अवस्था में 12 नवंबर,,1946 को उनका देहान्त हो गया।

Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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