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अभिभावक दिवस आजः एक मौका माता पिता के प्रति आभार जताने का

2020 से पूरी दुनिया कोरोना महामारी का प्रकोप झेल रही है। यह एक ऐसा दौर है जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी।

Ramkrishna Vajpei
Written By Ramkrishna VajpeiPublished By Shweta
Published on: 24 July 2021 4:05 PM GMT
कॉन्सेप्ट फोटो
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कॉन्सेप्ट फोटो ( फोटो सौजन्य से सोशल मीडिया)

2020 से पूरी दुनिया कोरोना महामारी का प्रकोप झेल रही है। यह एक ऐसा दौर है जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी। सभी अपनी अपनी दुनिया में मस्त थे। घर नाम की संस्था नाम मात्र के लिए रह गई थी। हालात इस कदर हो चुके थे कि बच्चों को माता पिता का चेहरा देखे हफ्तों महीनों गुजर जाते थे और माता-पिता खुद अपने बच्चों का चेहरा देखने को तरस जाते थे लेकिन 2019 से पूरी दुनिया बदल गई।

2020 मार्च के बाद से भारत में इसका असर आया। और ये पहला ऐसा मौका था जब दुनिया की चकाचौंध में चूर युवा पीढ़ी, बच्चों और माता-पिता को घर नाम की संस्था की वास्तविक अहमियत समझ में आई जब उन्हें एक घर में एक छत के नीचे महीनों रहना पड़ा। बात सिर्फ रहने तक ही सीमित नहीं थी पूरी दिनचर्या घर की चहारदीवारी के भीतर सिमट गई थी। बच्चों के स्कूल बंद, माता पिता के दफ्तर बंद, यदि बुजुर्ग बाबा दादी साथ हैं तो पहली बार एक पूरे परिवार का क्या मतलब होता है इस महामारी ने सबको बखूबी समझाया चुनौतियां बहुत थीं। घर से बाहर महामारी का भयानक जानलेवा खतरा था तो घर के भीतर सामंजस्य बैठाकर खुद को दूसरों के साथ एडजस्ट करने की चुनौती। कहते हैं ना कि भगवान घर के कोने के मंदिर, या घर क बाहर मंदिरों या धर्म स्थलों में बैठे सबको अच्छे लगते हैं लेकिन वहीं भगवान यदि आपके साथ प्रत्यक्ष रूप से चलने लगें। तो भगवान के साथ भी सामंजस्य बैठाना मुश्किल हो जाएगा।

पत्नियां जो पतियों को दफ्तर भेज कर निश्चिंत हो जाती थीं। उनके सामने अब 24 घंटे पति नाम की संस्था को झेलने की मजबूरी थी। पति जो काम के बोझ की बात कर घर से बाहर निकल जाते थे और आफिस के बाद कुछ घंटे गपशप करके लौटते थे उन्हें लगातार पत्नी की कृपा पर रहना था। खासकर युवा और किशोर बच्चों के लिए तो यह अप्रत्याशित जेल बहुत ही कष्टदायी थी। मम्मी स्कूल जा रहे, मम्मी खेलने जा रहे हैं। सबकुछ बंद। न पिता के सामने कुछ कर सकते थे न मां के सामने। बच्चों की बढ़ती शैतानियां। बड़े बच्चों में बढ़ते डिप्रेशन से मां बाप भी परेशान थे। लेकिन चुनौती अभी और खतरनाक रूप से सामने आ रही थी। जो भी बिना मास्क या सावधानी के बगैर बाहर निकला। वह कोरोना की चपेट में आया। अब जो कोरोना की चपेट में आ गया। जब तक वह समझ पाता तब तक परिवार के कई लोग चपेट में आ गए।

सबको अलग अलग कोरंटाइन किया गया। अधिक उम्र वालों को अस्पताल भेजा गया। इनमें भी जो लोग अस्पताल से घर नहीं लौट पाए उनके घर वालों के दुख की कल्पना नहीं की जा सकती। पिता को खोने का अहसास, मां को खोने का अहसास, या दोनों को खो कर बच्चे बेसहारा हो गए। जिससे दुख मिला लेकिन अभिभावकों की भूमिका का अहसास भी कराया। संकट का समय सीख देता है। जो बच गए थे वह और करीब आए कामकाजी मां-बाप हों या बुजुर्ग, लॉकडाउन के वक्त में वह बच्चों का सहारा बने और बच्चे भी उनका सहारा बने।इसी रिश्तों की डोर को सहेजने और उसके महत्व को समझाने के लिए विश्व अभिभावक दिवस मनाया जाता है। जिसकी शुरुआत संयुक्त महासभा ने 2012 में की थी। लेकिन इससे भी पहले अमेरिका ने इसकी शुरुआत की थी। हर अच्छी शुरुआत को आगे बढ़कर अपनाने वाला भारत को पीछे रहता भारत में भी लोगों ने अभिभावक दिवस मनाना शुरू कर दिया। अमेरिका में जुलाई माह के चौथे रविवार को अभिभावक दिवस मनाया जाता है।

अभिभावक दिवस संदेश देता है कि बच्चों का पालन पोषण और संरक्षण परिवार की प्राथमिक जिम्मेदारी है। व्यक्तित्व और सामंजस्यपूर्ण विकास के लिए, बच्चों को परिवार के माहौल, खुशी, प्यार और समझ के माहौल में बड़े होने की आवश्यकता है। साथ ही बच्चों को भी यह दिन अभिभावकों की उनके जीवन में उपयोगिता की सीख देता है। भारतीय संस्कृति में तो शुरुआत से ही माता-पिता को भगवान से भी ऊपर का दर्जा दिया गया है। किसी भी व्यक्ति के पहचान में उसके माता-पिता का अहम योगदान होता है। प्रत्येक दिन सुबह उठकर माता-पिता और बड़ों का पैर छूकर सम्मान करना हमारी संस्कृति रही है।

लेकिन बदलते वक्त आधुनिकता ने इसे हमसे दूर किया लेकिन कोरोना एक बार फिर पास ले आया। बच्चे के जन्म लेने से पहले माता-पिता को न जाने कितनी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और आधुनिकता के इस दौर में बच्चों को माता-पिता के साथ वक्त बिताने का मौका नहीं मिल पाता। लेकिन कोरोना काल में अभिभावक दिवस सभी के लिए अपने माता-पिता के प्रति आभार प्रकट करने का एक अवसर है।

Shweta

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