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एक अकवि का जाना, पर्रा को कहा जा सकता है प्रतिकारी कवि

raghvendra
Published on: 17 Feb 2018 1:14 PM IST
एक अकवि का जाना, पर्रा को कहा जा सकता है प्रतिकारी कवि
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के. विक्रम राव

यदि सबसे पहले कोई राष्ट्रपति खुद अपने देशवासियों को एक कवि के निधन की खबर दे तो क्या अंदाज लगेगा? उस राष्ट्र में इसे रचनाधर्मिता का सम्मान माना जाय? मेधाकर्म में जनरुचि की गहराई अथवा सियासत से ऊपर साहित्य का स्थान पाना? शायद सभी। पिछले दिनों राष्ट्रपति मिशेल विश्लेट ने राजधानी सन्तियागो में रुंधे गले से ऐलान किया था कि स्पेनिश पद्यकार निकानोर सेगुंडो पर्रा नहीं रहे। उनकी आयु 103 वर्ष थी। वे नोबेल विजेता पाब्लो नेरूदा के प्रेरक रहे। पर्रा चार बार नोबेल के लिए प्रस्तावित हुए। रचनाओं से उन्हें ख्याति इतनी मिली कि वे अमेरिका तथा यूरोप में सर्वाधिक अनूदित साहित्यकार रहे।

पर्रा अकविता के लिए जाने जाते थे। उनकी खौफजनक भौं और रोबदार कलम (ठुड्डी का स्पर्श करतीं) से उनके अन्दाजे बयां का आभास हो जाता था। अभिधा, लक्षणा व्यंजना से विमुक्त, शब्द के अक्षरार्थ या वाच्यार्थ से जुदा, पर्रा की पंक्तियों ने पद्य को चौपाल पर ला बसाया मगर बाजारू नहीं। सन्तियागो विश्वविद्यालय के प्रकाशन निदेशक मतियारी ने सटीक कहा कि पर्रा कविता को ओलम्पियन शिखर से उतारकर गलीकूचे में ले आए। वे स्वयं पाठकों से आग्रह करते थे कि मेरी कविता को खुद जोखिम उठाकर पढऩा। पर्रा के बारे में समालोचकों में मशहूर था कि पर्रा के उदय के बाद स्पेनी कविता शब्दिक अवगुंठन को उठाकर, कल्पना की परतों को मिटाकर, अबूझ विचारों के भार से मुक्त होकर, साधारण सी नजर आने लगी। सभी की समझ के दायरे में। उनकी कविता विषय और शैली की प्रभावोत्पादकता के कारण अनूठी रही। शब्दों के द्वारा पर्रा अठखेली करते रहे। श्लिष्ट शब्दों द्वारा अपनी रुचिकर पंक्तियों से रूपक निरूपित करना उनकी निराली अदा रही।

भारतीय साहित्यिक दृष्टिकोण में पर्रा को प्रतिकारी कवि कहा जा सकता है। विखण्डन और फिर रचना की कोशिश। उनकी एक कृति दि एपिटाफ (मकबरा) में दोनों दुनिया के बारे में जिक्र है। पर्रा नवोदित कवियों को सिखाते भी थे। उनकी राय थी, खूब लिखो। पुल के नीचे बहुत लहू बह चुका है मगर एक शर्त रखो। कोरे कागज को शोभित करो, अलंकृत करो, संवारो। उनके विषय निहायत सामान्य होते थे। पार्क, फौव्वारा, फोन, आक्रोशित छात्र व कार्यालय आदि। चुटकुलों को पंक्तियों में पिरोने में उनको नैपुण्य था। गंजपन से भिडऩे पर उनकी लिखी कविता (1993) उम्दा है। यह कविता लोगों का ध्यान खींचती है।

अपनी एण्टी पोयट्री के पक्ष में पर्रा ने कहा था कि यदि कविता में व्यंग्य, परिहास, विरोधालंकार और मसखरापन का पुट न हो तो वह मात्र गायन हो जाएगा। त्रासद और बोझिल भी। वे कविता पाठ को पादरी के व्याख्यान से भिन्न बनाने पर जोर देते थे। उस दौर में चर्च का साहित्य पर भारी असर होता था। नेरुदा तथा जिंसबर्ग को वे यही बताते थे। यूं राजनीतिक रूप से सर्वाधिक चैतन्य चिली राष्ट्र के इस अकवि को कभी भी राजपुरुषों से सहमना, परहेज करना नहीं आया। वह दौर था जब वियतनामी स्वाधीनता संघर्ष को अमेरिका बमों द्वारा चलने में जुटा था। एक दिन वाशिंगटन के व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति की पत्नी पैट निक्सन के साथ पर्रा चाय पी रहे थे। तभी खबर चली कि फिदेल कास्त्रो ने हवाना पुस्तक मेला में निर्णायक हेतु आंमत्रित पर्रा का वीजा निरस्त कर दिया। यूं पर्रा सोवियत रूस में काफी रहे पर चिली वामपंथी नेता साल्वादोर अयान्दे के समर्थक नहीं थे। फौजी तानाशाह जनरल आगस्तो पिनोशे के पर्रा सक्रिय विरोधी रहे।

पर्रा के निन्दक कम नहीं थे। कुछ तो उनके घनघोर निन्दक थे। एक अमेरिकी प्रोफेसर ने लिखा था कि पर्रा की कृतियां अश्लील हैं और उनका स्तर ओछा है। उनकी कृतियां नारी, ईश्वर, आस्था, सदाचार आदि के प्रति घृणा उपजाती है। पर्रा की सेलोन वर्सेज (केशचर्या पर कविताएंं) को कामुक और बाजारू बताया गया था। पर्रा की दृष्टि में यह विषग्राही अर्थात् प्रतिकारी छन्द थे। बगावत का सुर लिये हुए। आधुनिक साहित्य के परिवेश में देखें तो पर्रा का पर्यावरण पर लिखा साहित्य आकृष्टï करता है। वे एक बार रुष्ट होकर एक परिसंवाद में ईश्वर के रोल में बोले थे कि यदि तुम लोगों ने अपने कुकृत्यों से सृष्टि का विनाश कर दिया तो मै दुबारा दुनिया नही बनाऊंगा।

अमूमन कवि शब्दों का शिल्पी होता है। वैज्ञानिक सूक्ष्मताओं से दूर, काफी दूर। पर्रा गणित और भौतिकशास्त्र के नामी गिरामी प्रोफेसर थे। उन्होंने न्यूटन के भौतिक सिद्धान्तों को स्नातकोत्तर और शोधकर्ताओं को पढ़ाया भी। निर्धन दर्जी दम्पति की आठ सन्तानो में एक पर्रा का बचपन अभावों में गुजरा। फिर भी वे सारी बाधाओं को पार कर शिखर पर सवार हुए। वे संवाददाताओं को इंटरव्यू देते थे, पर उन्हें नकारते भी जल्दी थे क्योंकि पत्रकारों के प्रश्न बुद्धिमत्तापूर्ण और उनकी अभिव्यक्ति त्रुटिविहीन नहीं होती थी। एक बार एक गोष्ठी में पर्रा ने कहा कि मेरा संपूर्ण जीवन विफल रहा। फिर बोले, मैं इस बयान को वापस लेता हूं। उनकी प्रथम रचना का शीर्षक था अनाम गायक। इससे वे मशहूर तो हुए, किन्तु अकवि के रूप में।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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