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राग - ए- दरबारी: परफार्मेंस ही बचा पाएगा इस ‘वीक लिंक’ को

raghvendra
Published on: 1 Jun 2018 5:59 PM IST
राग - ए- दरबारी: परफार्मेंस ही बचा पाएगा इस ‘वीक लिंक’ को
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संजय भटनागर

मान लिया कि उत्तर प्रदेश उपचुनाव में विपक्ष भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ एक हो गया था, यह भी मान लिया कि वोटिंग मशीनों में खराबी आ गयी थी, यह भी मान लिया जाये कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कैराना लोक सभा और नूरपुर उपचुनाव में प्रचार नहीं किया था। फिर यह भी मानना पड़ेगा कि सामान्यतय: उपचुनाव में सत्ताधारी पार्टी कम ही हारती है लेकिन ऐसा हुआ। गोरखपुर और फूलपुर लोक सभा की सीटें हारने में भाजपा को संदेह का लाभ दे भी दिया जाये तो कैराना को क्या कहा जायेगा।

बात न चाहते हुए भी उत्तर प्रदेश में गवर्नेंस पर करनी पड़ेगी और इसकी सीधी जिम्मेदारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर डालनी ही पड़ेगी। मतलब साफ है, उपरोक्त कारणों के बावजूद भाजपा को यह स्वीकार करना ही पड़ेगा कि कैराना की हार जनादेश है योगी सरकार के विरुद्ध। भाजपा के समक्ष आत्मनिरीक्षण का अवसर आ गया है, अवसर आ गया है प्रदेश नेतृत्व के मूल्यांकन का और ईमानदार मूल्यांकन का। जाहिरा तौर पर यह विफलता है योगी सरकार के प्रदर्शन की और समय आ गया है मुश्किल निर्णय लेने का। लोक सभा चुनाव आसन्न हैं और कहावत सामने है कि शांतिकाल में बहाया हुआ पसीना, युद्धकाल में खून बहने से बचाता है। लेकिन अब तो पसीना बहाने का समय भी न के बराबर बचा है।

उत्तर प्रदेश में सरकार के कामकाज पर आम लोगों की राय किसी से छुपी नहीं है और लोगों का स्पष्ट कहना था ‘उत्तर प्रदेश में कुछ नहीं हो रहा है’ और सरकार ढुलमुल है। योगी ने हिंदुत्व की एक बड़ी लाइन तो बड़ी कर दी लेकिन विकास की लाइन? विकास सिर्फ भाषणों में ही हुआ, धरातल पर नहीं। भ्रष्टाचार, जातिवाद और सरकारी अकर्मण्यता में तो बढ़ोतरी ही दर्ज हुई और मोदी लहर भी बेकार हो गयी।

यह सच है कि योगी सरकार को ज्यादा समय नहीं हुआ है। अखिलेश यादव की ऑंखें खुलने में आधा कार्यकाल निकल गया था जिसके कारण एक्सप्रेस वे और मेट्रो के बावजूद भी समाजवादी पार्टी का 2017 में क्या हश्र हुआ, सामने है। यही कहानी दोहरा रहे हैं योगी जी और राम मनोहर लोहिया का प्रसिद्ध कथन कि ‘जिंदा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करती हैं’, भी शायद भूल गए।

भाजपा को यह समझने में गुरेज नहीं होगा कि अगले आम चुनाव में 80 लोक सभा सीटों वाला उत्तर प्रदेश एक ‘वीक लिंक’ है। उत्तर प्रदेश यानी योगी आदित्यनाथ का प्रदेश , यानी योगी की असफलता का प्रतीक। देखते देखते उत्तर प्रदेश में 80 में से 73 सीटें घट कर 70 हो गयीं और 2019 सिर पर है। समय कम है , कठिन निर्णय लेने का समय है।

वैसे अब क्या होगा, वही होगा जो चुनाव हारने के बाद होता है यानी नौकरशाही में फेरबदल जो भी जरूरी है लेकिन फेरबदल और भी कहीं जरूरी है। यह बात जो भी कहता है वह भाजपा का शुभचिंतक ही होगा, पार्टी को यह समझ लेना चाहिए। हिंदुत्व, मंदिर और ऐसे तमाम मुद्दे तो तब हाथ में आएंगे जब सत्ता हाथ में रहेगी और खतरा यही है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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