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डॉ. अंबेडकर के व्यक्तित्व का समग्र मूल्यांकन जरूरी

अभी तक भीम राव को जितना समझा गया है , वह उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व का एक चौथाई भी नहीं है ।

Chitra Singh
Published on: 13 April 2021 3:11 PM IST
डॉ. अंबेडकर के व्यक्तित्व का समग्र मूल्यांकन जरूरी
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डॉ. भीमराव अंबेडकर (फाइल फोटो)

डॉ. समन्वय नंद

डा भीमराव अंबेडकर के व्यक्तित्व व कार्य का अभी तक समग्र मूल्यांकन नहीं किया गया है। उन्हें आज भी अनुसूचित जाति वर्ग के नेता के रुप में प्रचारित किया जाता रहा है । वास्तव में यह उनके व्यक्तित्व व कार्य के प्रति घोर अन्याय है ।

यह बात काफी कम लोगों को जानकारी होगी कि वह मूल रुप से एक अर्थशास्त्री थे । अर्थशास्त्र में उनका चिंतन मौलिक था । जब वह कलंबिया विश्वविद्यालय में अध्ययन कर रहे थे तब उन्होंने वहां जो शोध प्रबंध लिखे उससे उनकी आर्थिक विषय में पकड कितनी थी वह स्पष्ट होता है ।

कलंबिया विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के स्नातकोत्तर की पढाई कर रहे थे तब इस डिग्री के लिए एक शोध निबंध लिखा था। यह शोध निबंध भारत पर उस समय शासन करने वाले अंग्रेज किस ढंग से भारत का आर्थिक शोषण कर रहे थे उस पर था । इसका विषय था – इस्ट इंडिया कंपनी का प्रशासन व वित्तीय प्रबंधन । इस शोध निबंध में अंग्रेजों द्वारा भारत के आर्थिक शोषण का लेखा जोखा उन्होंने प्रस्तुत किया था । इस शोध के जरिये उन्होंने पहली बार इस्ट इंडिया कंपनी अपने मुनाफे के लिए भारत के लोगों का शोषण करती थी उसका एक स्पष्ट चित्र प्रदान किया था।

बाबा साहेब अर्थशास्त्र पर लिखी पुस्तक (फाइट फोटो)

बाबा साहेब की पुस्तकें

उन्होंने अर्थशात्र पर एक और महत्वपूर्ण पुस्तक की रचना की थी । यह पुस्तक ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त व्यवस्था का विकास – साम्राज्यवादी वित्त व्यवस्था में प्रांतीय विकेन्द्रीकरण था । यह शोध प्रबंध भी कलंबिया विश्वविद्यालय में तैयार किया गया था । इसके साथ साथ उन्होंने , "ब्रिटिश भारत में स्थानीय वित्त" पुस्तक भी लिखा था । बाबा साहेब की ये तीनों पुस्तकें मिल कर भारत में अंग्रेज़ों के शोषण के अर्थशास्त्र को स्पष्ट करती हैं ।

आर्य आक्रमणकारी सिद्धांत

अंग्रेज व पाश्चात्य शक्तियां भारतीय समाज में दरार पैदा करने के लिए भिन्न भिन्न हथकडें अपनाते थे । उनके बाद भारतीय कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने भी उन पाश्चात्य विद्वानों के थ्योरियों को आगे बढ़ाना शुरु किया। इसी तरह की एक थ्योरी पाश्चात्य शक्तियों द्रारा शुरु किया गया था जिसे आर्य आक्रमणकारी सिद्धांत कहा जाता था । उस समय के अनेक भारतीय नेता भी भारतीय समाज को तोडने के लिए बनायी गई इस थ्योरी का समर्थन करते दिख रहे थे । लेकिन बाबा साहब अंबेडकर ने पाश्चात्य शक्तियों के इस साजिश को पहचान लिया था और इस कपोल कल्पित थ्योरी का उन्होंने अकाट्य तर्कों के माध्यम से धराशायी कर दिया था ।

डॉ. भीमराव अंबेडकर (फाइल फोटो)

एक विचार कम्युनिजम का विचार

इसी तरह अभारतीय चिंतनों का भारतीय समाज पर प्रभाव को लेकर बाबा साहब जागरुक थे । ऐसी ही एक विचार कम्युनिजम का विचार है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक तथा राष्ट्रऋषि दत्तोपंत ठेंगडी से अपनी बातचीत में बाबा साहब ने कहा था अनुसूचित जाति के हिन्दू व कम्युनिजम के बीच वह (अंबेडकर) बैरियर हैं । ठेंगडी जी ने इस बात का उल्लेख अपनी पुस्तक 'अंबेडकर व सामाजिक क्रांति की यात्रा' में किया है ।

अम्बेडकर ने दलित समाज की समस्याओं पर किया चिंतिन

डा अंबेडकर पर गहरा शोध करने वाले व उन पर पुस्तक लिखने वाले हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो कुलदीप चंद अग्निहोत्री का मानना है कि अंबेडकर के प्रति शोध के दौरान एकांगी दृष्टिकोण अपनाया गया और यही कारण है कि उनके विशाल व्यक्तित्व व कार्य को आच्छादित कर रखा गया एवं उन्हें एक वर्ग के उद्धारक के रुप में स्थापित करने का प्रयास किया गया जोकि उनके व्यक्तित्व के प्रति अन्याय है। उनके अनुसार - आम्बेडकर ने दलित समाज की समस्याओं के लेकर बौद्धिक चिन्तन किया , उसके समाधान के लिये व्यवहारिक उपाये सुझाए और फिर उनकी प्राप्ति के लिये आगे होकर आन्दोलन किये । लेकिन इस पूरी प्रक्रिया को एकांगी दृष्टिकोण से देखा जाता है और फिर बाबा साहेब को भी उसी एक वर्ग का उद्धारक या नेता कह कर स्थापित किया जा रहा है । लेकिन क्या भीम राव के ये प्रयास सचमुच एकांगी थे और भारतीय या हिन्दू समाज की समग्र प्रक्रिया से कटे हुये थे ?

बाबा साहेब (फाइल फोटो)

दलित समाज का मामला सम्पूर्ण हिन्दू समाज

दरअसल ऐसा है नहीं । वे जानते थे कि दलित समाज का मामला सम्पूर्ण हिन्दू समाज की आन्तरिक व्यवस्था का हिस्सा है और उसी से गुँथा हुआ है । इसलिये इसका समाधान भी इस सम्पूर्ण व्यवस्था में क्रान्तिकारी परिवर्तन से ही संभव है । वे इसी लिये प्रयासरत थे । यदि इस लिहाज़ से देखा जाये तब भी बाबा साहेब पूरे हिन्दू समाज के क्रान्तिकारी उद्धारक कहे जा सकते हैं किसी एक वर्ग के नहीं । अब वक्त आ गया है कि बाबा साहेब आम्बेडकर के समग्र राष्ट्रीय स्वरुप को प्रस्तुत करके उनके साथ न्याय किया जाये , न की उन्हें एक वर्ग का नेता प्रस्तुत करके उनके महान व्यक्तित्व को धूमिल किया जाये । आम्बेडकर के अध्येताओं के लिये इसका ध्यान रखना जरुरी है । अभी तक भीम राव को जितना समझा गया है , वह उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व का एक चौथाई भी नहीं है । जब उनका पूरा राष्ट्रीय स्वरुप सामने आयेगा , तभी पता चलेगा कि हमारे युग ने किस विभूति को जन्म दिया था ।



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Chitra Singh

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