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Punishment to Convicted Leaders: अपराधी नेताओं को सजा ?
Punishment to Convicted Leaders: सर्वोच्च न्यायालय में एक बड़ी मजेदार याचिका पर बहस चल रही है। उसमें मांग की गई है कि जिस भी विधायक या सांसद को आपराधिक मामलों में सजा दी गई हो, उसे जीवन भर के लिए राजनीति से बाहर क्यों नहीं किया जाए?
Punishment to Convicted Leaders: आजकल सर्वोच्च न्यायालय में एक बड़ी मजेदार याचिका पर बहस चल रही है। उसमें मांग की गई है कि जिस भी विधायक या सांसद को आपराधिक मामलों में सजा दी गई हो, उसे जीवन भर के लिए राजनीति से बाहर क्यों नहीं किया जाए? अभी 1951 के जन-प्रतिनिधित्व कानून के मुताबिक यदि किसी नेता को सजा मिलती है तो छह वर्ष तक वह न तो कोई चुनाव लड़ सकता है और न ही किसी राजनीतिक दल का पदाधिकारी बन सकता है। छह साल के बाद वह चाहे तो फिर दनदना सकता है। अब यदि ऐसे नेताओं पर जीवन भर का प्रतिबंध लग जाए तो क्या हमारी राजनीति का शुद्धिकरण नहीं होगा? ऐसे कड़े प्रतिबंध के डर के मारे नेता लोग अपराध आदि करने से क्या बचे रहना नहीं चाहेंगे?
इस याचिका को पेश करनेवाले अश्विन उपाध्याय का तर्क है कि यदि एक पुलिसवाला या कोई सरकारी कर्मचारी किसी अपराध में जेल भेज दिया जाता है तो उसकी नौकरी हमेशा के लिए खत्म हो जाती है या नहीं? जहां तक नेता का सवाल है, उसके लिए राजनीति सरकारी नौकरी की तरह उसके जीवन-यापन का एक मात्र साधन नहीं होती है। वह तो जन-सेवा है। उसका शौक है। उसकी प्रतिष्ठा पूर्ति है। राजनीति से बाहर किए जाने पर वह भूखा तो नहीं मर सकता है। इस तर्क का समर्थन भारत के चुनाव आयोग ने भी किया है लेकिन चुनाव आयोग स्वयं तो किसी कानून को बदल नहीं सकता। उसके पास नया कानून बनाने का अधिकार भी नहीं है।
ऐसे में सरकार चाहे तो वह कुछ ठोस पहल कर सकती है। वह संसद में प्रस्ताव लाकर ऐसा कानून जरुर बना सकती है लेकिन कोई भी सरकार ऐसा कानून क्यों बनाना चाहेगी? यदि वह ऐसा कानून बना दे तो उसके कई बड़े-बड़े नेता राजनीति से बाहर हो जाएंगे। देश के अनेक केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद और विधायक साधारण अपराधियों की तरह जेल की हवा खा चुके हैं और कई तो अभी जेल में ही सड़ रहे हैं। मैं उनके नाम यहां नहीं गिना रहा हूं। यदि उनके विरुद्ध वैसा कानून बन गया तो देश की राजनीति में भूकंप आ जाएगा। यह भी ठीक है कि कई नेताओं को उनकी विरोधी सरकारों ने बनावटी आरोपों के आधार पर सींखचों के पीछे धकेल दिया था।
इसके अलावा यदि सत्तारुढ़ पार्टी अपने किसी प्रबल विरोधी नेता को राजनीति से बाहर करने के लिए इस कानून का सहारा ले लेगी तो कोई आश्चर्य क्यों होगा? इसीलिए इस याचिका पर फैसला देते हुए अदालत को कई मुद्दों पर विचार करना होगा। बीच का रास्ता यह भी हो सकता है कि राजनीति से अपराधियों के निर्वासन की अवधि 6 साल से बढ़ाकर 10 साल कर दी जाए। 10 साल में तो अच्छे-खासे नेताओं की भी हवा खिसक जाती है। राजनीति को अपराधियों से मुक्त करना बहुत जरुरी है लेकिन वास्तविक पश्चात्ताप करनेवालों को दुबारा मौका क्यों नहीं दिया जा सकता है?