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सरकारों की नीति नहीं, जनता की क्रय शक्ति पर निर्भर करती है महंगाई
पेट्रोल डीज़ल के बढ़ते हुए दाम हर सरकार की थैली भरने के काम आते हैं। इसलिए सरकारें चिल्लपों चाहें जितना कर लें पर मूल्य कम करने की नियति किसी की नहीं है। क्योंकि यह भारी भरकम धनराशि शाही ख़ज़ाने को भरने व नेताओं के शाहखर्ची में काम आती है।
योगेश मिश्र
पेट्रोल की बढ़ती क़ीमतों के बीच सोशल मीडिया पर पक्ष विपक्ष में तमाम पोस्ट हमने पढ़ी। आप ने भी पढ़ी होंगी। एक पोस्ट जो बहुत वायरल हुई। उसमें लिखा था कि सीरिया में पेट्रोल बहुत सस्ता है। लेकिन वहाँ ख़रीदने वाला कोई नहीं है। इस पोस्ट को पढ़ते ही हमें बचपन में दादी की कही तमाम बातें याद हो उठीं। उसी में एक बात यह थी कि जंजाल अच्छा है। कंगाल नहीं अच्छा। लेकिन इसके बाद भी पोस्ट को पढ़ने के बाद हमारे मन में उठे ढेर सारे सवाल अनुत्तरित रहे।
मसलन, सीरिया में ऐसा क्या हो गया कि वहाँ सस्ते पेट्रोल का कोई खरीददार तक नहीं है? क्या अर्थव्यवस्था इतनी चौपट हो गयी? लोगों की क्रय शक्ति इतनी घट गयी?वहां की मुद्रा का कितना अवमूल्यन हो गया? क्या वहाँ कोई बचा ही नहीं? यदि इनमें से कुछ भी हुआ तो वह जानना ज़रूरी हो जाता है। हाँ, यह तो मैं जानता हूँ कि आईएस के आतंकियों ने सीरिया का जीवन बेहद मुश्किल कर रखा है।
सीरिया में पेट्रोल डीजल सस्ता
भारत की तुलना में सीरिया में पेट्रोल डीजल सस्ता है। लेकिन यह ध्यान रखना होगा कि अधिकांश सीरियन लोग औसतन 7 हजार रुपये महीना ही कमाते हैं। जनवरी में सीरिया में सब्सिडी वाले पेट्रोल की कीमत 26 रुपये थी। लेकिन अमेरिका के प्रतिबंधों और तेल क्षेत्रों में आईएसआईएस से संघर्ष के चलते कीमत 47 रुपये के आसपास पहुँच गयी है। चूँकि तेल की आपूर्ति में कटौती हो गयी है । सो पेट्रोल ब्लैक मार्किट में बिकने लगा है। सीरिया में सबसे ज्यादा किल्लत पेट्रोल-डीजल और बेकरी प्रोडक्ट्स की है। पेट्रोल पम्पों और ब्रेड-रोटी की दुकानों पर लम्बी लम्बी लाइन लगी रहती हैं।
(फोटो- सोशल मीडिया)
इतना सस्ता पेट्रोल भी अफोर्ड नहीं कर पा रहे सीरियन
भारत की तुलना में सीरिया में पेट्रोल डीजल भले ही सस्ता लगता हो। लेकिन वहां लोग इस सस्ते पेट्रोल को भी अफोर्ड नहीं कर पा रहे हैं। लोग अपने निजी वाहन छोड़ कर पैदल ही चलने लगे हैं। बहुत जरूरी होने पर ही लोग कार निकाल रहे हैं।डीजल की खपत सीरिया के लोगों की मजबूरी है । क्योंकि बर्फीले मौसम में घरों को गर्म रखने के लिए हीटिंग सिस्टम में डीजल का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन डीजल भी महँगा होने के कारण लोग डीजल की बचत करके ठण्ड सह रहे है।
अमेरिका को ठहराया गया जिम्मेदार
सीरिया के पेट्रोलियम मिनिस्ट्री ने पेट्रोल-डीजल की किल्लत के लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहराया है। सरकार का कहना है कि अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण सीरिया को अपनी पेट्रोलियम आपूर्ति में 25 फीसदी कटौती करनी पड़ी है। एक सीरियन पौंड भारत के करीब 14 पैसे के बराबर है।
एक नजर सीरिया पर
सीरिया दक्षिण पश्चिम एशिया का का देश है। जिसके पश्चिम में लेबनान, भूमध्यसागर, दक्षिण पश्चिम में इज़राइल, पूरब में इराक़, दक्षिण में जार्डन व उत्तर में तुर्की है। राजधानी दमास्कस है। यह उमय्यद ख़िलाफ़त तथा मामलुक साम्राज्य की राजधानी रही है। सीरिया एक समय इस्लाम के खलीफा का देश था। सीरिया ने रोम से लेकर मंगोल और तुर्कों के हमले झेले। यहां कुर्द, सुन्नी, ईसाई, शिया, एस्सिरियन समेत कई कौमें रहती हैं। जो सैकड़ों सालों तक आपस में लड़ती रहीं।
बाद में यह यूरोप के चंगुल में आ गया। आबादी 1.7 करोड़ है। 87 फ़ीसदी मुसलमान व 10 फ़ीसदी ईसाई बसते हैं।यहाँ अरबी, इंग्लिश और फ्रेंच बोली जाती है। सीरिया फ्रांसिसी संस्कृति का हिस्सा है। यह फ़्रांस का उपनिवेश था। 17 अप्रैल,1946 में स्वतंत्र देश बना। हालाँकि इसके स्वतंत्रता का पहली घोषणा 1936 व दूसरी 1946 में हुई। 1960 में इजिप्ट के साथ यूनाइटेड अरब रिपब्लिक भी बनाया। 1967 में जॉर्डन और इजिप्ट के साथ मिल इजराइल से जंग की। हार गए। इजराइल ने गोलन हाइट्स छीन लीं।
जब हाफिज अल असद ने हड़पी सीरिया की सत्ता
1970 में हाफिज अल असद ने सीरिया की सत्ता हड़पी। जो सीरिया की माइनॉरिटी शिया कौम के थे।वह बाथ पार्टी के थे। बाथ का मतलब पुनर्जागरण होता है।हाफ़िज़ का उद्देश्य सारे मुस्लिम देशों को मिलाकर एक ‘अरब मुल्क’ बनाना था।इसके लिए असद ने खूब हथियार ख़रीद कर आतंक फैलाया । 1973 में इजिप्ट के साथ मिलकर इजराइल पर हमला किया।फिर हारे। 1976 में लेबनान में अपनी सेना भेजी। जहां वह तीस साल रही। 1982 में मुस्लिम ब्रदरहुड ने हमा शहर में विद्रोह किया। मिलिट्री ने हजारों लोगों को मार गिराया। 2000 में असद का निधन हुआ। बेटा बशर अल असद ने उनकी जगह ली।
डेमोक्रेसी के लिए प्रदर्शन
2011 में सीरिया के शहर डेरा में डेमोक्रेसी के लिए प्रदर्शन हुए। प्रदर्शनकारियों पर सेरीन गैस इस्तेमाल हुई। जो दिमाग पर असर करती है। लम्बे समय से सीरिया लगभग सेक्युलर था।आज इस्लामिक स्टेट सीरिया में रूस, अमेरिका, असद सबसे लड़ रहा है।5 लाख लोग यहाँ मारे जा चुके हैं। 50 लाख सीरिया छोड़ चुके हैं। जिनमें ज्यादातर औरतें और बच्चे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबिक सीरिया की 70 फ़ीसदी आबादी को खाने-पानी की कोई सुविधा नहीं है। स्कूल, हॉस्पिटल तो बहुत दूर की बातें हैं।
ग्रीक से आया सीरिया का नाम
सीरिया का नाम ग्रीक से आया है। यवन इसे सीरीयोइ कहते थे। इसका उपयोग असीरियाईयों के लिए होता था। यहीं से सीरिया का उद्भव माना जाता है। असीरिया शब्द अक्कदी भाषा का है। यहाँ राष्ट्रपति का कार्यालय सात साल का होता है। जिसके लिए जनमत संग्रह का उपयोग होता है। यहाँ अरब समाजवादी पार्टी ( बाथ), सीरियन अरब समाजवादी दल, अरब समाजवादी संघ, सीरियायी साम्यवादी दल, अरब समाजवादी व एकतावादी दल सहित पंद्रह राजनीतिक पार्टियाँ हैं।
यहाँ के संविधान के अनुसार राष्ट्रपति एक मुसलमान ही हो सकता है। लेकिन इस्लाम यहाँ का राजधर्म नहीं है। यहाँ का संविधान राष्ट्रपति को मंत्रियों को बहाल कारने का, युद्ध तथा आपातकाल की घोषणा करने का तथा कानून पास करने का अधिकार देता है। 1963 से यहाँ आपातकाल लागू है। इसे इसरायल के साथ युद्ध तथा आतंकवादियों द्वारा दी गई धमकियों जैसे कारणों का हवाला देकर सही ठहराया जाता है।
एल्बा सभ्यता के अवशेष
सीरिया में एल्बा सभ्यता के अवशेष 1975 में मिले थे। यह 3000 ईसा पूर्व की मानी जाती है।सीरियाई सभ्यता के निवासियों के रिश्ते सुमेर तथा अक्कद व मिस्र से थे। ऐसे कई प्रमाण हैं। पूर्वी सेमेचिक भाषा, अक्कदी भाषा के अधिक करीब थी। एल्बा के साम्राज्य को ईसापूर्व 2260 में अक्कद के सारगोन तथा उसके बाद ईसा पूर्व 1900 में हिट्टियों ने फ़तह किया।हिब्रू दश्मिक के दक्षिण में बस गये।
असीरियाई, सुमेरियाई, मिस्री तथा बेबीलोनियाई लोगों के विभिन्न बसावों के बाद छठी सदी ईसा पूर्व में फारस के हखामनी साम्राज्य ने इस पर अपना अधिकार कर लिया।दो सदियों तक पूरे पश्चिम एशिया पर फ़ारसियों का अधिकार रहा। ईसा के 330 साल पहले जब मकदूनिया (मेसेडोनिया) के सिकंदर ने फ़ारस के शाह दारा तृतीय को तीन विभिन्न युद्धों में हराया । तब यवनों का अधिकार हो गया। इसके बाद सासानी तथा रोमनों के बीच सीरिया विभाजित रहा।
रोमन शासन में एंटिओक शहर सीरिया की राजधानी रहा। तीसरी सदी में रोम के दो शासक हुए जो सीरिया के थे।
उम्मयद खिलाफ़त (650-735) के समय दमिश्क इस्लाम की राजधानी था। मुसलमान दमिश्क की तरफ़ नमाज अदा करते थे। सन् 1260 तक यह अब्बासियों के अधीन रहा। राजधानी बग़दाद थी। मंगोलों के आक्रमण की वजह से 1258 में बग़दाद का पतन हो गया। मंगोलों की सेना की कमान कितबुगा के हाथों सौप दी गई। जिसको मिस्र के मामलुकों ने आगे बढ़ने से रोक दिया। मंगोलों ने 1281 में मामलुकों पर दुबारा भारी आक्रमण किया पर वे हार गए।
1946 तक चला फ्रांस का शासन
सन् 1400 तैमूरलंग यानी तमेरलेन ने सीरिया पर आक्रमण किया। अलेप्पो तथा दमिश्क में भारी तबाही मचाई। भित्तिकारों को छोड़ कर सबों को मार डाला गया। भित्तिकारों को समरकन्द ले गया।तैमूर लंग ने इसाईयों को प्रताड़ना दी।सोलहवीं सदी से लेकर बीसवीं सदी के आरंभ तक यह उस्मानी साम्राज्य (ऑटोमन तुर्क) का अंग बना रहा। इसके बाद फ्रांस का शासन 1946 तक चला।
सीरिया में प्रांतों को मुहाफजात कहा जाता है। कुल चौदह प्रांत हैं। फ़ुरात सीरिया की सबसे महत्वपूर्ण नदी है। जलवायु शुष्क और गर्म है। सर्दियां ठंडी होती हैं। हिमपात भी होता है। 1956 में यहाँ पहली बार पेट्रोल मिला। सुवायदिया, क़रत्सुई तथा रुमाइयाँ प्रमुख तेल क्षेत्र हैं। 1940 में ज़बेसा में प्राकृतिक गैस के भंडारों का पता लगा।
जनसंख्या घनत्व प्रतिकिलोमीटर 100 के करीब है। आबादी फ़ुरात नदी की घाटी तथा पहाड़ों और तटीय प्रदेशों के बीच बसती है। छः से ग्यारह साल के बच्चों के लिए शिक्षा मुफ़्त और अनिवार्य है। साक्षरता की दर पुरुषों में 86 प्रतिशत जबकि महिलाओं में 74 प्रतिशत है। अधिकांश सीरियाई मूल लैवैंटाइन लोग हैं।
वे अपने पड़ोसियों से नस्ली रिश्ते रखते हैं - फ़लीस्तीनियों, लेबनानियों तथा ज़ॉर्डनियों से इनकी नृजातिकिय करीबी है। सीरिया के लोग, चाहे वो मुस्लिम हों या इसाई संस्कृति, भाषा और तहज़ीब के हिसाब से पूरे अरबी हैं।
कुर्द व तुर्क है यहां पर अल्पसंख्यक
अल्पसंख्यकों में यहाँ कुर्द व तुर्क है। नौ फ़ीसदी कुर्द तुर्की तथा इराक के सटे क्षेत्र में रहते हैं। तुर्क सीरियाई तुर्कमेन कहलाते हैं। जो अलेप्पो, दश्मिक , लताकिया में रहते हैं। सीरियाई लातिन अमेरीकी देशों में भी प्रवास करते हैं। ब्राजील तथा अर्जेंटीना में इनकी बड़ी संख्या हैं। यहाँ 87 प्रतिशत आबादी मुस्लिम, 10 प्रतिशत ईसाई है। मुसलमानों में 74 प्रतिशत सुन्नी हैं । जबकि शिया क़रीब 13 प्रतिशतहैं।
आधिकारिक भाषा अरबी है। कई सीरियाई लेखकों ने मिस्र जाकर 19वीं सदी के अरबी लेखन के पुनर्जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इनमें अली अहमद सैद, मुहम्मद मगौत, हैदर हैदर, गडा अल- समन , निजात कब्बानी और जकारिया तामेर मुख्य है। कुर्द भाषा कुर्द बालते हैं। शिक्षित लोग अंग्रेज़ी व फ़्रेंच भी बोलते हैं।
फ्रांस ने तुर्की को दिया था इस्कांदरान प्रांत
सारिया के मुताबिक़ इस्कांदरान प्रांत तुर्की को फ्रांस द्वारा अनुचित रूप से 1930 में दिया गया था। उस समय सीरिया पर फ्रांस का अधिकार था। तुर्कों का कहना है कि हताय (इस्कांदरान) उस्मानी (ऑटोमन) साम्राज्य का अंग था। इस कारण इस क्षेत्र पर उनका अधिकार बनता है। तुर्कों की नज़र में सीरिया का संपूर्ण क्षेत्र भूतपूर्व तुर्क विलायत है। सीरियाई लोग इस क्षेत्र को लिवा अलिस्केन्दरुना नाम से संबोधित करते हैं। जबकि तुर्क प्रशासन इसे हताय नाम देता है। गोलान दक्षिण पश्चिम का 1850 वर्ग किलोमीटर का इलाका है । इसकी उँचाई 2500 मीटर से अधिक है।
1949 में एक संधि के मुताबिक इसके पास दोनों देशों की सीमा तय हुई थी। इस पहाड़ी इलाक़े को असैनिक क्षेत्र बनाने का फ़ैसला हुआ। पर सीरिया ने इस क्षेत्र का इस्तेमाल इसराइली किसानों पर हमला करने के लिए किया। नतीजतन, इसरायल ने 1967 में 6 दिनी लड़ाई में इसे छीन लिया। इसका जवाब सीरिया ने इसरायल यहूदियों के पवित्रतम दिन योम किप्पुर को 1973 में इसरायल पर आक्रमण करके देने की कोशिश की।संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप से एक साल बाद इसरायल ने गोलान के सीरियाइयों को सीरिया में व्यापार करने की इजाजत व गोलान के सीरियाई छात्रों को सीचियाई विश्वविद्यालय में पढ़ने की भी अनुमति मिली।
प्रेम व अमन का पर्व लताकिया भी आकर्षण का केंद्र
कीलाकार लिप की खोज सीरिया में ईसापूर्व 14वीं सदी में हुई थी। अल समा व दबकेस यहाँ के पारंपरिक नृत्य हैं। यहाँ प्रेम व अमन का पर्व लताकिया भी आकर्षण का केंद्र है। पारंपरिक रूप से निवास एक या अधिक आंगन के चारो ओर बनाए जाते हैं। इनके बीच प्रायः एक झरना होता है। चारो ओर नींबू, अंगूर और फूलों के पौधे लगे होते हैं।यहाँ के भोजन में दक्षिणी भूमध्यसागरीय, पश्चिम एशियाई और तुर्क व्यंजन होते हैं।
शिया बनाम सुन्नी
सुन्नी बहुल सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल-असद शिया हैं। नतीजतन, शिया बनाम सुन्नी की भी स्थिति पैदा हुई। इससे अत्याचार बढ़ा। जिहादी ग्रुपों को शिया-सुन्नी का विभाजन रास आया।वे यहाँ पसर गये। हयात ताहिर अल-शम ने अल क़ायदा से जुड़े संगठन अल-नुसरा फ्रंट से गंठबंधन कर उत्तरी-पश्चिमी राज्य इदलिब पर नियंत्रण कर लिया।
उधर इस्लामिक स्टेट का उत्तरी और पूर्वी सीरिया के व्यापक हिस्सों पर क़ब्ज़ा हो गया। यहां सरकारी बलों, विद्रोही गुटों, कुर्दिश चरमंथियों, रूसी हवाई हमलों के साथ अमरीकी नेतृत्व वाले गठबंधन देशों के बीच संघर्ष शुरू हुआ।
ईरान, लेबनान, इराक़, अफ़गानिस्तान और यमन से हज़ारों की संख्या में शिया लड़ाके सीरियाई आर्मी की तरफ़ से लड़ने के लिए पहुंचे। ताकि उनके पवित्र जगह की रक्षा की जा सके। असद ने नियंत्रण हासिल करने के लिए विद्रोहियों के कब्ज़े वाले इलाकों में सितंबर 2015 में हवाई हमले किए।रूस ने असद का खुलकर साथ दिया। 6 महीने बाद पुतिन ने सीरिया से अपने सैन्य बलों की वापसी का ऐलान किया।रूसी मदद के चलते ही विद्रोहियों के क़ब्जे वाले एलप्पो में असद को फिर से नियंत्रण कायम करने में मदद मिली।
असद सरकार को बचाने वाला ईरान
ईरान के बारे में कहा जाता है कि उसने सीरिया में अरबों डॉलर खर्च कर असद सरकार बचायी। ईरान ने सीरिया में सैकड़ों लड़ाके भेजे। अमरीका ने कहा कि सीरिया को तबाह करने के लिए असद जिम्मेदार है। 2014 से लेकर अब तक अमरीका ने सीरिया में कई हवाई हमले किए हैं। सुन्नी बहुल सऊदी अरब ईरान के ख़िलाफ सीरिया में विद्रोहियों को मदद कर रहा है। असद के ख़िलाफ़ विद्रोहियों को मदद करने में सऊदी अरब की सबसे बड़ी भूमिका है.
पेट्रोल से टैक्स के तौर पर मिलते हैं इतने रूपये
पश्चिम बंगाल सरकार के वित्त मंत्री अमित मित्रा ने बताया कि केंद्र को पेट्रोल से टैक्स के तौर पर 32.90 रूपए प्रति लीटर मिलते हैं। जबकि राज्य को सिर्फ 18. 46 रूपये मिलते हैं। डीजल के मामले में केंद्र सरकार को 31.80 रुपए का टैक्स मिलता है । जबकि राज्य को 12.77 रुपए ही मिलते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि केंद्र सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर उपकर भी लगाया है। उपकर से वसूले गए टैक्स का कोई भी हिस्सा राज्य सरकारों को नहीं मिलता है।
(फोटो- सोशल मीडिया)
मनमोहन सिंह ने कही थी ये बात
21 सितंबर, 2012 के मनमोहन सिंह ने कहा था कि यदि हमने डीज़ल का दाम नहीं बढ़ने दिया तो हमें दो लाख करोड़ की सब्सिडी देनी पड़ेगी। उस समय सरकार साल भर में 1.4 लाख करोड़ की सब्सिडी दे रही थी। जबकि साढ़े छह साल में केंद्र ने 21 लाख करोड़ रूपये कमाया है। सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर कहा है कि पीछे साडे 6 साल में सरकार ने डीजल पर एक्साइज ड्यूटी 820% और पेट्रोल पर 258% बढ़ाई है । इससे सरकार के खाते में 21 लाख करोड़ रुपए गये हैं ।
सरकार की थैली भरने के काम आते हैं बढ़ते दाम
मतलब सीधा सा है कि पेट्रोल डीज़ल के बढ़ते हुए दाम हर सरकार की थैली भरने के काम आते हैं। इसलिए सरकारें चिल्लपों चाहें जितना कर लें पर मूल्य कम करने की नियति किसी की नहीं है। क्योंकि यह भारी भरकम धनराशि शाही ख़ज़ाने को भरने व नेताओं के शाहखर्ची में काम आती है। हमको आपको भले ही यह लगता हो कि पेट्रोल डीज़ल के दाम बढ़ाने का काम मोदी सरकार कर रही है।
मुखौटे केवल दो तरह के- एक सत्ता का और दूसरा विपक्ष का
कुछ लोगों को यह लगता हो कि इस विधा में तो कांग्रेस पार्टी की सरकारें पारंगत है। ब्लैम गेम कभी कांग्रेस व भाजपा के बीच, कभी भाजपा व सपा, तृणमूल, बसपा, आप, शिवसेना आदि क्षेत्रीय राजनीतिक दल के कार्यकर्ता खेल रहे हों। खेलते हों। पर इन सभी दलों के नेताओं व कार्यकर्ताओं दोनों को जानना चाहिए कि देश में राजनीतिक दलों के चाल, चरित्र व चेहरे अलग अलग नहीं होते हैं। पर सच्चाई यह है कि चेहरे कहें या मुखौटे केवल दो तरह के होते हैं। एक सत्ता का। दूजा विपक्ष का।
सत्ता में रहने वाले की भाषा एक जैसी
जब भी कोई पक्ष यानी सत्ता में होता है तो उसकी ज़ुबान वही भाषा बोलती है जो पहले सत्ता में रहा दल बोल रहा था। भले ही वह धुर विरोधी रहा हो। इसलिए यह उम्मीद नहीं कि जानी चाहिए कि यह सरकार जायेगी। नई सरकार आयेगी तो बदलाव होगा। सब पलट जायेगा। नई कहानी, नई इबारत लिखी जायेगी। महंगाई, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का मामला हो, किसान क़ानूनों का या फिर जीएसटी या निजीकरण का फ़ंडा सब को क़रीब से देखें तो बस यही लगता कि एक सरकार को दूसरे के छोड़े काम को बस आगे बढ़ाना है। पूरा करना है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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