TRENDING TAGS :
Petrol-Diesel ke Dam: पेट्रोल और डीजल के दामों में हो रही वृद्धि के लिए कौन जिम्मेदार है?
Petrol-Diesel ke Dam: देश की हर हिस्से में पेट्रोल के दाम 100 रुपए प्रति लीटर पार कर चुके हैं या फिर 100 के आंकड़े के बेहद नजदीक है।
Petrol-Diesel ke Dam: देश की हर हिस्से में पेट्रोल के दाम (Petrol Ka Dam) 100 रुपए प्रति लीटर पार कर चुके हैं या फिर 100 के आंकड़े के बेहद नजदीक है। मतलब कहा जा सकता है कि 100 रुपए प्रति लीटर अब एक सामान्य दाम है जिस पर पेट्रोल (Petrol) बिक रहा है। आर्थिक तबाही झेल रहे देश में पेट्रोल और डीजल के दामों (Petrol-Diesel ke Dam) में हो रही बेतहाशा वृद्धि के लिए कौन जिम्मेदार है?
निश्चित ही यह सवाल वर्तमान केंद्र सरकार से अधिक पूछा जाएगा, क्योंकि इस सरकार की जब बुनियाद रखी जा रही थी, तो बेतहाशा पेट्रोल और डीजल के दाम का मुद्दा भी मौजूद था। प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में चुनावी सभा कर रहे नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने रैलियों में इसके दामों में कटौती की बात रखी थी। लेकिन उस दौरान किए गए वादों के विपरीत वर्तमान समय में पेट्रोल और डीजल अपने इतिहास के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच चुके हैं।
वर्तमान में यह जब यह सवाल जनता केंद्र सरकार से पूछ रही है तो जवाब के रूप में दो तर्क दिए जा रहे हैं। पहला तर्क है कि सरकार के पास आय नहीं है, इसलिए पेट्रोल और डीजल के दाम में कटौती नहीं की जा सकती है। यह तर्क अपने आप में सरकार की आर्थिक नाकामी को दर्शाता है। ऐसा नहीं कि पेट्रोल और डीजल के दाम कोविड-19 के दौरान ही चर्चा का विषय बने हैं। इसके पहले से ही केंद्र सरकार पेट्रोल और डीजल पर बड़ा टैक्स वसूल रही थी। दूसरे तर्क के रूप में केंद्र सरकार के बहुतायत मंत्रियों और नेताओं ने वर्तमान पेट्रोलियम और डीजल के दामों में हुई वृद्धि के लिए यूपीए सरकार (UPA Government) को जिम्मेदार बताया है। इनका कहना है कि यूपीए सरकार के दौरान जारी किए गए ऑयल बॉन्ड (Oil Bond) का वर्तमान समय में भुगतान करने की वजह से दाम में कटौती नहीं की जा सकती है। अब इस पूरे प्रकरण को समझने से पहले आयल बॉन्ड को समझते हैं।
ऑयल बॉन्ड क्यों जारी किए जाते हैं?
पेट्रोलियम पदार्थों की खरीद भारत सरकार तेल कंपनियों से करती है और इनको भुगतान करती है। यह आंकड़ा बहुत बड़ा होता है। इसलिए सरकारें वित्तीय प्रबंधन करते हुए तत्कालिक भुगतान को ऑयल बॉन्ड के रूप में करती हैं। सरकार सब्सिडी के बदले तेल कंपनियों को बॉन्ड्स जारी करती है जो लंबी अवधि के होते थे। यह प्रक्रिया वर्ष 1996-97 से चली आ रही है।
यूपीए सरकार के दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम $110 प्रति बैरल से ऊपर पहुंच चुके थे और सरकार के ऊपर वित्तीय बोझ बढ़ गया था। तब तत्कालीन सरकार ने राजकोषीय घाटे को कम दिखाने के लिए तेल कंपनियों को नगद भुगतान की जगह नये ऑयल बॉन्ड जारी किए थे। उस दौरान पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दामों का आम जनता पर प्रभाव ना पड़े इसके लिए सब्सिडी की व्यवस्था होती थी। वर्ष 2014 में नई केंद्र सरकार ने यह व्यवस्था बदल दी और पेट्रोल और डीजल की कीमतों (Petrol Diesel Prices)का निर्धारण बाजार के हवाले छोड़ दिया। उसी दौरान जारी किए गए ऑयल बॉन्ड को आज पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि के लिए जिम्मेदार बताया जा रहा है।
आगामी सालों में ऑयल बॉन्ड का भुगतान का विवरण
तत्कालीन यूपीए सरकार ने 1.31 लाख करोड़ रुपए के ऑयल बॉन्ड जारी किए थे, जिनका भुगतान मार्च 2026 तक करना है। अभी तक दो ऑयल बॉन्ड का भुगतान किया जा चुका है। दोनों ऑयल बॉन्ड की कुल राशि 3500 करोड़ रुपए थी। अगले ऑयल बॉन्ड का भुगतान इसी वर्ष अक्टूबर महीने में करना है, जिसकी कुल राशि 5000 करोड़ रुपए है। आगामी वर्ष 2023 में 22000 करोड़ रुपए के ऑयल बॉन्ड, 2024 में 40000 करोड़ का भुगतान और वर्ष 2026 में 37000 करोड़ के आयल बॉन्ड का भुगतान करना है। वर्तमान में सरकार इन ऑयल बॉन्ड पर तकरीबन 10 हजार करोड़ों रुपए का ब्याज भी चुका रही है।
लेकिन वर्तमान बेतहाशा पेट्रोल और डीजल के दामों में वृद्धि के लिए प्रथम दृष्टया इन ऑयल बॉन्ड को जिम्मेदार बता सरकार अपनी जवाबदेही से बच रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि सरकार के अधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2014 से लेकर वर्तमान 2021 तक कुल 20.56 लाख करोड़ रुपए पेट्रोलियम पदार्थों की बिक्री से प्राप्त हुआ है। इसी दौरान केंद्र सरकार ने कुल 71,198 करोड रुपए ऑयल बॉन्ड पर ब्याज व मूल के रूप में दिया है। यानी कि कुल हुई आमदनी का महज 3.5 फ़ीसदी हिस्सा ही बॉन्ड्स पर खर्च हुआ है। इसलिए सरकार का यह दावा सही नहीं है कि ऑयल बॉन्ड की वजह से जनता के ऊपर महंगे दामों का बोझ पड़ रहा है। भला इतनी छोटी राशि के भुगतान से इतना बड़ा बोझ कैसे साबित किया जा सकता है।
सरकार ऑयल बॉन्ड बैंकों को जारी करती है
अब इस पूरे ऑयल बॉन्ड की चर्चा के बीच एक मजेदार तथ्य समझिए। केंद्र सरकार ऑयल बॉन्ड बैंकों को जारी करती है और बैंक तेल कंपनियों का भुगतान कर देते हैं। ये बैंक सरकार के होते हैं और तेल कंपनियां भी सरकार की होती हैं। सरकार हर वर्ष इन्हीं तेल कंपनियों से एक अच्छा डिविडेंड हासिल करती है। अब सवाल यह बनता है कि जनता की हिमायती दिखने वाली वर्तमान केंद्र सरकार क्यों नहीं तेल कंपनियों से डिविडेंड लेने के बजाय डिविडेंड राशि को ऑयल बॉन्ड के भुगतान में इस्तेमाल कर लेती है? लेकिन सरकार यह ना करते हुए पूरा बोझ आम जनता की जेब पर डाल रही है।
यह दावा इस तथ्य से समझिये कि केंद्र सरकार ने 2013 की तुलना में वर्ष 2019-20 में पेट्रोलियम पदार्थों पर टैक्स के जरिए होने वाली कमाई में 459% की वृद्धि दर्ज की है। वर्ष 2013 में पेट्रोल और डीजल पर टैक्स के जरिए 52,537 करोड़ रुपए केंद्र सरकार को मिले थे जो 2019-20 में ₹2.94 लाख करोड़ रूपया हो गया था। वर्ष 2020-21 में केन्द्र और राज्य सरकारों ने पेट्रोल और डीजल पर टैक्स के जरिए कुल 5,25,355 करोड़ रुपए एकत्रित किए हैं। यह 2019-20 की तुलना में 25 फ़ीसदी ज्यादा है। वर्तमान में केंद्र सरकार पेट्रोल पर ₹32.90 प्रति लीटर की एक्साइज ड्यूटी तो वहीं डीजल पर ₹31.80 प्रति लीटर वसूल रही है।
इसलिए पूर्ववर्ती सरकार को जिम्मेदार ठहरा पेट्रोल और डीजल के दामों में हो रही बेतहाशा मूल्यवृद्धि का स्पष्टीकरण नहीं दिया जा सकता है। सोचिए अगर पूर्व की सरकार के जरिए लिए गए कर्ज को नई सरकार भुगतान करने के बजाय समस्या बताने लगे तो क्या होगा? अगर 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जगह नयी सरकार आ जाए तो वह फिर मोदी जी कार्यकाल में लिए गए बेतहाशा कर्ज को बहुत सी चुनौतियां का आधार बताने लगेगी।
पिछले 5 वर्ष में भारत का कर्ज 50 फ़ीसदी बढ़ा
यह ज्ञात रहे कि वर्तमान केंद्र सरकार के पिछले 5 वर्ष में भारत का कर्ज 50 फ़ीसदी बढ़ चुका है। ऐसे ही क्या वर्तमान में बैंकों के रीकैपिटलाइजेशन के लिए जारी किए गए 25 हजार करोड़ रुपए के बॉन्ड का तर्क देकर नई सरकार बैंकिंग सेक्टर की समस्याओं को नजरअंदाज कर देगी? बिल्कुल नहीं। हमें यह समझना होगा कि बदलते चेहरों के बीच भारत सरकार एक ही होती है। इस तरह के तर्कों से अपनी जवाबदेही नहीं हटाई जा सकती है। जो भी सरकार होगी वह भारत सरकार की पूर्व की देनदारियों की जवाबदेही होगी। इसलिए आज जरूरत है कि सरकार टैक्स कटौती करते हुए पेट्रोल और डीजल के दामों में कमी लानी चाहिए।