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अमेरिका की हाँ में हाँ क्यों मिलाएँ?

PM Modi Ka US Daura: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका-यात्रा भारतीय मीडिया में पिछले तीन-चार दिन छाई रही। सभी टीवी चैनलों और अखबारों में उसे सबसे ऊँचा स्थान मिला। लेकिन हम अब उस पर ठंडे दिमाग से सोचें, यह भी जरुरी है। मेरी राय में सिर्फ दो बातें ऐसी हुईं, जिन्हें हम सार्थक कह सकते हैं।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Written By Dr. Ved Pratap VaidikPublished By Shreya
Published on: 27 Sept 2021 7:41 AM IST
अमेरिका की हाँ में हाँ क्यों मिलाएँ?
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अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन संग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फोटो साभार- ट्विटर) 

PM Modi Ka US Daura: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका-यात्रा भारतीय मीडिया में पिछले तीन-चार दिन छाई रही। सभी टीवी चैनलों और अखबारों में उसे सबसे ऊँचा स्थान मिला। लेकिन हम अब उस पर ठंडे दिमाग से सोचें, यह भी जरुरी है। मेरी राय में सिर्फ दो बातें ऐसी हुईं, जिन्हें हम सार्थक कह सकते हैं। एक तो अमेरिका की पांच बड़ी कंपनियों के कर्त्ता-धर्त्ताओं से मोदी की भेंट। यह भेंट अगर सफल हो गई तो भारत में करोड़ों-अरबों की विदेशी पूंजी का निवेश होगा। तकनीक के क्षेत्र में भारत चीन से भी आगे निकल सकता है।

दूसरी सार्थक बात यह हुई कि अमेरिका से मोदी अपने साथ 157 ऐसी प्राचीन दुर्लभ भारतीय कलाकृतियाँ और मूर्तियाँ भारत लाए हैं, जिन्हें किसी न किसी बहाने विदेशों में ले जाया जाता रहा है। यह भारत के सांस्कृतिक गौरव की रक्षा की दृष्टि से उत्तम नीति है। लेकिन राजनीतिक दृष्टि से मोदी की इस अमेरिका-यात्रा से भारत को ठोस उपलब्धि क्या हुई? भारत का विदेश मंत्रालय दावा कर सकता है कि अमेरिका जैसे देश ने पहली बार यह कहा है कि भारत को सुरक्षा परिषद का सदस्य बनाया जाए। मेरी राय में अमेरिका का यह कथन सिर्फ जबानी जमा-खर्च है। संयुक्त राष्ट्र का पूरा ढांचा जब तक नहीं बदलेगा, तब तक सुरक्षा परिषद में सुधार की आशा करना हवा में लट्ठ चलाना है।

क्वाड की बैठक में क्या रहा नया?

'चौगुटे' (क्वाड) की बैठक में नई बात क्या हुई ? चारों नेताओं ने पुराने बयानों को फिर से दोहरा दिया। अगर 'आकुस' (त्रिगुटा) ने जैसे आस्ट्रेलिया को परमाणु-पनडुब्बियां दिलवा दीं, वैसे ही 'क्वाड' भारत को भी दिलवा देता तो कोई बात होती। संयुक्त राष्ट्र में दिए गए मोदी के भाषण में इमरान खान के भाषण के मुकाबले अधिक संयम और मर्यादा से काम लिया गया। इमरान के अनाप-शनाप भारत-विरोधी हमले का तगड़ा जवाब नहीं दिया गया।

उसका कारण यह रहा हो सकता है कि अफसरों ने मोदी का हिंदी भाषण पहले से ही तैयार करके रखा होगा। लेकिन भारत की महिला कूटनीतिज्ञ ने इमरान के नहले पर दहला मार दिया। मोदी ने यह भी ठीक ही कहा कि पाकिस्तान ने आतंकवाद को अपना हथियार बनाकर खुद का नुकसान ही ज्यादा किया है। लेकिन इमरान के भाषण ने अमेरिका की पोल खोलकर रख दी।

मोदी को लेना होगा इमरान से सबक

अमेरिका ने ही तालिबान, मुजाहिदीन और अल-क़ायदा को खड़ा करते समय पाकिस्तान को मोहरे की तरह इस्तेमाल किया था। अब वह उसे छूने को भी तैयार नहीं है। इसीलिए इमरान न्यूयार्क नहीं गए। मोदी व्हाइट हाउस में बाइडन के साथ डिनर करें और इमरान निमंत्रण का इंतजार करते रहें, यह कैसे हो सकता था? अभी भारत-अमेरिका संबंध चरम उत्कर्ष पर हैं। लेकिन मोदी को इमरान से सबक लेना होगा। अमेरिका केवल तब तक आपके साथ रहेगा, जब तक उसके स्वार्थ सिद्ध होते रहेंगे। ज्यों ही चीन से उसके संबंध ठीक हुए कि वह भारत को अधर में लटका देगा, जैसे आजकल उसने पाकिस्तान को लटका रखा है। इसीलिए मैं बराबर कहता रहा हूँ कि हमारी अपनी मौलिक अफगान नीति होनी चाहिए। हम अमेरिका की हाँ में हाँ मिलाने की मजबूरी क्यों दिखाएँ?

(लेखक भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं)

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