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मोदी का बाल यदि बांका हो जाता तो ?

सुप्रीम कोर्ट ने अंतत: सच को खोजा, पाया और उजागर भी किया। प्रधानमंत्री दोषहीन निकले। उनकी मां हीराबा के जन्मशती वर्ष में इस मातृभक्त को दैवी रक्षा मिल गयी।

K Vikram Rao
Written By K Vikram Rao
Published on: 27 Jun 2022 3:23 PM GMT
If Narendra Damodardas Modi would have been punished
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी: Photo - Social Media

फर्ज कीजिये यदि उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) (शुक्रवार, 24 जून 2022) को पत्रकार तीस्ता सीतलवाड द्वारा पेश श्रीमती जाकिया अहसान जाफरी की याचिका को स्वीकार कर लेता तो? आरोपी नरेन्द्र दामोदरदास मोदी (Narendra Damodardas Modi) 2002 के गुजरात दंगों के दोषी माने जाते और दण्ड के भागी बन जाते। अत: उसी दिन राष्ट्रपति (Presidential Election 2022) पद के लिये द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) के नामांकन प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने से कट जाते। नये भाजपा संसदीय नेता की खोज चालू हो जाती। मोदी के सार्वजनिक जीवन की सर्वथा इति हो जाती। राष्ट्र की प्रगति थम सी जाती।

अर्थात ठीक वहीं दास्तां दोहरायी जाती जो इसी माह (12 जून 1975) सैंतालीस साल पूर्व इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा इंदिरा गांधी के लोकसभा निर्वाचन को निरस्त करने से उपजी थी। मगर गनीमत रहती कि इंदिरा गांधी जैसा बर्ताव नरेन्द्र मोदी कदापि न करते। उनकी भाजपा (BJP) सरकार कांग्रेस की भांति आपातकाल नहीं थोपती इसलिये कि भाजपा की जनवादी आस्था मर्यादित रहती है। ढाई लाख (इसी लेखक की तरह) लोग सलाखों के पीछे पुन: न ठूस दिये जाते है। उच्चतम न्यायालय शायद एक बेगुनाह को कठघरे में खड़ा कर देता, कत्ल के जुर्म में। काशीवाले काल भैरव भी उसकी रक्षा न कर पाते।

जनतंत्र जीवित रहा

अब उच्चतम न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ को देखें। मुम्बई में शिक्षित अजय मानिकराव खानविलकर, उदयपुर में जन्में न्यायमूर्ति दिनेश महेश्वरी और केरल के न्यायमूर्ति चूडियल थेवन रविकुमार ने सर्वसहमति से तीस्ता सीलवाड के मोदी के विरुद्ध याचिका को खारिज कर दिया। तीस्ता को न्यायप्र​क्रिया से खिलवाड़ करने का अपराधी माना। तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी दोष से मुक्त कर तीनों न्यायमूर्तियों ने समूचा न्याय किया।

अत: भारत अब बच गया। जनतंत्र जीवित रहा। सुप्रीम कोर्ट ने अंतत: सच को खोजा, पाया और उजागर भी किया। प्रधानमंत्री दोषहीन निकले। उनकी मां हीराबा के जन्मशती वर्ष में इस मातृभक्त को दैवी रक्षा मिल गयी। मां की अनुकम्पा ने पुत्र को उबारा, वे तारणहार बनीं। अब तो वे नरेन्द्र हीराबा दामोदरदास मोदी कहलायेंगे।

उस दौर में उन्हीं की पार्टी के जनक अटल बिहारी वाजपेयी (उस वक्त के प्रधानमंत्री) युवा मुख्यमंत्री को राजधर्म पढ़ाने और पालन कराने पर आमादा थे। नेहरुछाप उदार राजनेता की अटलजी फोटोकॉपी बन जाते। तब पणजी (गोवा) में 2002 में भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने विचार किया और मोदी के पक्ष में निर्णय लिया। हटाया नहीं। अटलजी की चली नहीं।

मोदी को तीसरी पारी खेलने का मिला अवसर

गुजरात (गांधीनगर) से भाजपा सांसद 75—वर्षीय लालचन्द किशिनचंद आडवाणी इस गुजराती के त्राता बने। मोदी को तीसरी पारी खेलने का अवसर मिल गया। फिर मोदी साबरमती तट से यमुनातट पर आ बसे। मगर आडवाणी तब मार्गदर्शक बना दिये गये। वानप्रस्थ अवस्था में थे। फिलहाल दुरभिसंधि से मोदी महफूज रहे। शिखर पुरुष बने रहे।

अब चर्चा उस शठत्रिया की जो इस पूरे काण्ड की खलनायिका बनी। नाम है उसका 60—वर्षीया पत्रकार तीस्ता जावेदमियां सीतलवाड जिनके दादा मोतीलाल चिमनलाल सीतलवड आजाद भारत में नेहरु सरकार के लगातार तेरह साल प्रथम महाधिवक्ता रहे। उनके पिता चिमनलालजी उस हंटर आयोग के सदस्य थे, जिसने हत्यारे जनरल रेजिनाल्ड डायर को जलियांवालाबाग नरसंहार में निर्दोष करार दिया था।

मोदी का बाल यदि बांका हो जाता तो ? (Part-2)

अरब सागरतटीय मुंबई में जुहू क्षेत्र के तारा रोड पर धन्नासेठों की दैत्याकार कोठियां हैं। वहीं फिल्मी सितारे अमिताभ बच्चन का भी घर है। इस भीमाकाय बंगले से कई गुना प्रशस्त है तीस्ता सीतलवाड का बंगला, जिसका बगीचा ही चार एकड़ वाला है। यही से वंचितों, पीड़ितों, गरीबों, शोषितों, झुग्गी—झोपड़ी वालों के नाम पर विदेशों से धन संचित किया जाता है। मगर राशि नीचे तक पहुंचती ही नहीं।

चाहकर भी तीस्ता वकील नहीं बन पायी क्योंकि लॉ की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी। मगर उसने बड़ा लाभदायक धंधा शुरु किया। पति जावेदमियां के साथ तीस्ता ने एक एनजीओ (स्वयंसेवी) सबरंग न्यास बनाया। कथित रूप से मानवाधिकार रक्षा तथा सांप्रदायिकता—विरोधी इस समिति ने देश—विदेश से अनुदान की उगाही तथा खैरात की वसूली चालू की। केन्द्रीय मंत्रालय ने उनके न्यास को मिला विदेशी दान हेतु पंजीकरण रद्द कर दिया। (नियम एफसीआरए: विदेशी योगदान पंजीकरण कानून के तहत)। मगर तब तक अमेरिकी संस्था फोर्ड फाउंडेशन ने करीब तीन करोड़ से अधिक राशि तीस्ता को दे दी थी।

अपने 500 से अधिक पृष्ठवाले फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने तीस्ता द्वारा स्तब्ध करनेवाली बातों का जिक्र किया। तीस्ता अपनी इच्छा के मुताबिक याचिका में बातें जोड़ती और काटती थी। नये साक्ष्यों तथा आरोपों को पेश करती रहती थी। अपील की सुनवाई अनवरत जारी रखने की मंशा थी। कोर्ट ने कहा कि याचिका स्तरीय है ही नहीं।

जजों के लिखा कि तीस्ता ने न्यायालय के सामने झूठे आरोप लगा कर पीठ को भ्रमित करने की कोशिश की। एक अवसर पर तीस्ता चाहती थी कि अदालत उसके समर्थक पुलिस अफसर संजय भट्ट का बयान मान ले क्योंकि वह ''सत्यवादी'' हैं। यही भट्ट आजकल (पालनपुर) जेल में बंद हैं क्योंकि हिरासत में उन्होंने एक कैदी की हत्या करा दी थी।

तीस्ता का बयान

इसी भट्ट का वक्तव्य था कि 27 फरवरी 2002 के दिन मुख्यमंत्री (मोदी) ने गांधीनगर में अफसरों के बैठक में कहा था : ''मुसलमानों को सबक सिखाना है।'' जजों ने कहा कि : तीस्ता का यह बयान भी बिलकुल झूठा निकला।

तीस्ता ने बताया था कि साबरमती ट्रेन के जले कोच से लोगों की लाशों का सड़क पर जुलूस में दिखाया गया ताकि दंगे भड़कें। यह भी सरासर झूठ निकला। याद कीजिये तत्कालीन रेलमंत्री लालू यादव ने सोनिया गांधी के पास वाली अपनी सीट पर विराजकर सदन में क्या कहा था ? लालू का बयान था कि कार सेवकों ने अपने डिब्बे को अंदर से ही जला दिया था। अर्थात अयोध्या के इन तीर्थयात्रियों ने आत्मघात किया। वाह रे चारा चोर !! मुख्य अभियुक्त रफीक हुसैन भटुक 16 फरवरी 2021, को घटना के 19—वर्ष बाद, गिरफ्तार हुआ। उसका बयान जरुरी था, मगर वह भी झूठा निकला।

जजों ने कहा कि तीस्ता गुजरात को बदनाम करना चाहती थी। उसने जाकिया जाफरी को अपने मकशद के लिये औजार बनाया। याचिकार्थी श्रीमती जाकिया जाफरी को भी तीस्ता ने बयान रटवाया था। सुप्रीम कोर्ट के सात दशकों के इतिहास में इतना कड़ा और मर्मस्पर्शी निर्णय आजतक नहीं दिखा। तीस्ता को केवल खुन्नस थी और इसीलिये गुजरात से प्रतिशोध चाहती थी।

बेंच ने लिखा कि तीस्ता ने फर्जीवाड़ा किया। दस्तावेजों को जाली बनाया। गवाहों से असत्य बयान दिलवाये, उन्हें मिथ्या पाठ सिखाया। पहले से ही टाइप किये बयानों पर गवाहों के दस्तखत कराये। इसी बात के 11 जुलाई 2011 को गुजरात हाई कोर्ट ने भी लिखा था (याचिका 1692/2011)। तीसरा आरोप है कि उसने तथा अपने साथी फिरोजखान सैयदखान पठान ने सबरंग न्यास के नाम पर गबन और अनुदान राशि का बेजा उपयोग किया।

अनुदान की राशि को निजी सुख और सुविधा पर व्यय किया। जजों ने कहा कि सरकारी वकील ने दर्शाया है कि किस भांति तीस्ता उसके पति ने 420, फर्जीवाड़ा धोखा आदि के काम किये। निर्धन और असहायों के लिये जमा धनराशि को डकार गयी। खुद गुजरात हाईकोर्ट ने इन अपरा​धियों की याचिका खारिज कर दी और फैसला दिया कि अभियुक्तों को हिरासत में सवाल—जवाब हेतु कैद रखा जाये।

प्रधानमंत्री के विरुद्ध एक घिनौनी साजिश

हाईकोर्ट ने इन दोनों को अग्रिम जमानत व अर्जी खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि ''तीस्ता ने झूठे याचिकाकत्री को पेश किये ताकि सुनवाई लंबी खिंचती रहे। याचियों द्वारा उठाये मुद्दे, मसले और विषय बेबुनियाद तथा निरर्थक थे। याचिका में न स्तर, न गुण और न तथ्य है।

सर्वोच्च न्यायालय की अवहेलना करते हुए तीस्ता ने अदालती दस्तावेजों की प्रतिलिपियों संयुक्त राष्ट्र संघ ने मानवाधिकार परिषद (जेनीब) को प्रेषित कर दिये। यह सर्वथा अनर्गल था, भर्त्सनीय है। हालांकि तीस्ता ने ऐसा दोबारा न करने की वादा किया था। तो यह है किस्साये—तीस्ता जिसने गणतंत्र के माननीय प्रधानमंत्री के विरुद्ध एक घिनौनी साजिश की थी। विफल हुयी। देश बच गया।

Shashi kant gautam

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