TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

चीन में चल रहा जेबी लोकतंत्र, पर हमें गर्व है अपने ढोंगी लोकतंत्र पर

अपने ढोंगी लोकतंत्र पर हम गर्व करते हैं लेकिन हम यह क्यों नहीं देखते कि हमारी ही तरह जेबीतंत्र चीन में चल रहा है और जो हमसे पीछे था, अब उसकी अर्थ-व्यवस्था हमसे पांच गुना अधिक मजबूत हो गई है। इस जेबीतंत्र को स्वस्थ लोकतंत्र कैसे बनाएं, इस पर हम विचार करें।

Newstrack
Published on: 16 July 2020 6:44 AM GMT
चीन में चल रहा जेबी लोकतंत्र, पर हमें गर्व है अपने ढोंगी लोकतंत्र पर
X

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

राजस्थान में चल रहे दंगल से हमारा देश कोई सबक लेगा या नहीं ? यह सवाल सिर्फ कांग्रेस के संकट का नहीं है बल्कि भारत के लोकतंत्र के संकट का है। जैसे आज कांग्रेस की दुर्दशा हो रही है, वैसी ही दुर्दशा भाजपा तथा अन्य प्रांतीय पारिवारिक पार्टियों की भी हो सकती है।

भारत का कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की महान पार्टी कांग्रेस दिनोंदिन एक खंडहर में बदलती जा रही है। ऐसा क्यों हो रहा है ? इसके बीज इंदिरा गांधी के कार्यकाल में बोए गए थे। ज्यों ही 1969 में कांग्रेस में फूट पड़ी और इंदिरा कांग्रेस की नींव डली, भारत के लोकतंत्र पर पाला पड़ना शुरु हो गया।

देश में बाकायदा तानाशाही तो नहीं आई सोवियत संघ और चीन की तरह एक पार्टी राज तो कायम नहीं हुआ और न ही पाकिस्तान की तरह फौजी तानाशाही काबिज हुई लेकिन उससे भी ज्यादा खतरनाक प्रवृत्ति शुरु हो गई। ऊपर मुखौटा तो लोकतंत्र का रहा लेकिन असली चेहरा तानाशाही का रहने लगा।

कांग्रेस की सारी सत्ता इंदिरा गांधी और संजय गांधी के हाथों में केंद्रित हो गई। कांग्रेस प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बन गई। कांग्रेस की देखादेखी लगभग हर प्रांत में क्षेत्रीय नेताओं ने अपनी-अपनी पारिवारिक और जातीय पार्टियां खड़ी कर लीं। सिर्फ भाजपा ही ऐसी पार्टी बच गई, जिसमें किसी एक नेता या गुट का एकाधिकार नहीं था।

कांग्रेस के नक्शे कदम पर भाजपा

वह 2014 में सत्तारुढ़ हुई तो वह भी कांग्रेस के नक्शे-कदम पर चल पड़ी। जैसे कांग्रेस आज मां-बेटा पार्टी है, भाजपा भाई-भाई पार्टी है। सोनिया और राहुल की टक्कर में नरेंद्र और अमित खड़े हैं। सारे प्रांतों में बेटा-दामाद, भाई-भतीजा, पति-पत्नी, बाप-बेटा, बुआ-भतीजा पार्टियां खड़ी हो गई हैं। सभी पार्टियां जेबी पार्टियां बन गई हैं।

इन सभी राष्ट्रीय और प्रांतीय पार्टियों का सबसे बड़ा दोष यह है कि इनके नेता पार्टी में अपने अलावा किसी अन्य को उभरने नहीं देते। हर पार्टी का नेता खुद को इंदिरा गांधी बनाए घूमता है। जबकि इंदिराजी जैसे विलक्षण गुणों का उनमें सर्वथा अभाव होता है। सारी पार्टियां प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों में बदल गई हैं।

पार्टी में आतंरिक लोकतंत्र शून्य हो गया है। कोई योग्य व्यक्ति शीर्ष पर नहीं पहुंच सकता। प्रतिभाएं दरकिनार कर दी जाती हैं। देश की बागडोर कमतर और घटिया लोगों के हाथ में चली जाती है। ये घटिया नेता जब मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की कुर्सियों में बैठ जाते हैं तो इन्हें योग्य और निडर लोगों से डर लगने लगता है।

इनकी हीनता ग्रंथि रिसने लगती है। ये अपने से भी घटिया लोगों की संगत पसंद करने लगते हैं। जी-हुजूरों से घिरे ये महान नेता लोग या तो बाकायदा आपात्काल घोषित कर देते हैं या फिर अपने साथियों पर अघोषित आपात्काल थोप देते हैं। वे तो सत्ता में बने रहते हैं लेकिन देश का पत्ता कट जाता है।

अपने ढोंगी लोकतंत्र पर हम गर्व करते हैं लेकिन हम यह क्यों नहीं देखते कि हमारी ही तरह जेबीतंत्र चीन में चल रहा है और जो हमसे पीछे था, अब उसकी अर्थ-व्यवस्था हमसे पांच गुना अधिक मजबूत हो गई है। इस जेबीतंत्र को स्वस्थ लोकतंत्र कैसे बनाएं, इस पर हम विचार करें।

लेखक वरिष्ठ संपादक व समालोचक हैं

Newstrack

Newstrack

Next Story