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कविता: है कैक्टस सा व्यक्तित्व मेरा

raghvendra
Published on: 18 Oct 2018 5:04 PM IST
कविता: है कैक्टस सा व्यक्तित्व मेरा
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नीरज त्यागी

अनभिज्ञ नहीं मैं, अज्ञात नहीं मैं,

जीवन की अब हर कठिनाई से।

अनजान बना रहता हूँ मैं,

अब मौत की भी सच्चाई से।

ज्ञान मेरे मन में बहुत भरा,

कुछ लोगों में ये अहम भरा।

परिचित मैं ऐसे लोगों से भी,

फिर भी मैं सर झुकाए खड़ा।

बिल में छुपे मुसक की सच्चाई

भी हर पल हर दम समक्ष मेरे।

हर पल हर दम छला जाने पर

भी हर समय मुस्कुराने का भी

मैं हो गया अब अभ्यस्थ बड़ा।

अपमानित हूँ हर पल हर दम,

ना बचा पाया हूँ सम्मान मेरा।

माना कि रंग बिरंगे महकते फूलों

में है कैक्टस सा व्यक्तित्व मेरा।

चुभना है तो चुभेगा ही,

नहीं है चमचागिरी व्यक्तित्व मेरा।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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