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कविता, फाग: ढप चंग संग आ गा ले फाग, हमजोली आ खेलें फाग

raghvendra
Published on: 28 Feb 2018 3:44 PM IST
कविता, फाग: ढप चंग संग आ गा ले फाग, हमजोली आ खेलें फाग
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ढप चंग संग आ गा ले फाग

हमजोली आ खेलें फाग।।

फागुन आया मतवाला

हर और रंग अबीर है छाया

मोहे मल दे रंग देसांवरे

अपने रंग में आज बावरे।।

इस तन जाने कैसी लगी है आग

आ प्रीत के रंग से खेले फाग।।

मेरे मन को रंग जा तू ऐसो रंग

खिल जाये मोरा अंग अंग।।

मोहे ऐसे अंग लगा ले।।

मेरा यौवन मुझे लौटा दे।।

बरसों की मेरी प्यास बुझा दे।।

ऐसी मार पिचकारी मोरे प्यारे

मेरो मन अंतरंग भिजोदे।।

थिरक ऊठूँ मैं अलबेली

आज फिर जरा फाग तू गा दे

ओ सांवरिया मैं तेरी हूँ रे

मोहे भी रंग रसिया सुना दे।।

विजय कनौजिया

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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