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Conversion in India: भारत में बढ़ती धर्मान्तरण की विषबेल

Conversion in India: दस करोड़ हिन्दुओं का जबरन धर्मान्तरण किया गया। विदेशी सहायता के आधार पर देश के विभिन्न हिस्सों में लोभ, लालच से हिन्दुओं को मतांतरित करने का सिलसिला आज भी जारी है।

Brijnandan Raju
Published on: 22 Dec 2022 6:58 AM IST (Updated on: 22 Dec 2022 7:51 PM IST)
Conversion in India
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Conversion in India (Social Media) 

Conversion in India: भारत लगभग तेरह सौ वर्षों से धर्मान्तरण के आक्रमण से पीड़ित है। तेरह सौ वर्षों में भारत में 10 करोड़ हिंदुओं का नरसंहार हुआ। दस करोड़ हिन्दुओं का जबरन धर्मान्तरण किया गया। विदेशी सहायता के आधार पर देश के विभिन्न हिस्सों में लोभ, लालच से हिन्दुओं को मतांतरित करने का सिलसिला आज भी जारी है। 1947 में अंग्रेज तो भारत से चले गये लेकिन ईसाई मिशनरियों की बड़ी फौज देश के वनवासी व सीमावर्ती क्षेत्रों में कार्य करती रही। मिशनरियों ने भारत की गरीबी व विषमता का लाभ उठाकर भोले भाले ग्रामीण व वनवासी बंधुओं को अपने चंगुल में फंसाया। पूर्वोत्तर क्षेत्र में ईसाईयों की जनसंख्या में हुई बेतहाशा वृद्धि इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।

देश में बढ़ती लव जिहाद व अवैध धर्मांतरण की घटनाओं से त्रस्त हिन्दू समाज अब इसके स्थाई समाधान का मार्ग ढूंढ रहा है। लव जिहाद अवैध मतांतरण का ही एक वीभत्स रूप है। प्रतिदिन लव जिहाद की घटनाएं प्रकाश में आ रही हैं। मुस्लिम बहुल इलाकों में इस प्रकार की घटनाएं ज्यादा हो रही हैं।

भारत पर इस्लाम और ईसाइयत का आक्रमण केवल शासन करने के लिए ही नहीं था। इस्लाम भारत में सभी को मतांतरित करने के उद्देश्य से ही आया था। इसके लिए इस्लामी आक्रान्ताओं ने छल,बल, अत्याचार और आतंक का सहारा लिया। मुस्लिम आक्रान्ताओं के अत्याचार के कारण समाज का एक बड़ा वर्ग मुसलमान बना भी। व्यापार के बहाने भारत आये अंग्रेजों के साथ ईसाई मिशनरियों का भी यह प्रयास रहता था कि किसी भी प्रकार भारत के लोगों को ईसाई मत में मतांतरित किया जाय।

आज भी मुस्लिम और ईसाई संस्थाएं मतांतरण के माध्यम से हिन्दू जनसंख्या को कम करने के प्रयास में निरंतर लगी हुई हैं। इससे भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और अखण्डता को गंभीर खतरा बना हुआ है। ईसाई संस्थाएं एनजीओ की आड़ में विदेश से पैसा मंगाती हैं। उस पैसे से यहां की भोली भाली गरीब जनता का मतांतरण करती हैं। यह ईसाई मिशनरियां द्वारा राष्ट्रीय एकात्मता पर सीधा कुठाराघात है।

धर्मान्तरण से केवल पूजा पाठ ही नहीं बदलता है, अपितु उनकी निष्ठा भी बदल जाती है। विदेशी शक्तियां मतांतरित लोगों के माध्यम से अनुचित माँगे मनवाने के लिए सरकार पर दबाव भी डालती हैं। यही शक्तियां मतांतरित अनुसूचित समाज को आरक्षण का लाभ दिलाने की मांग कर रही हैं। यह मांग संविधान विरोधी और राष्ट्र विरोधी है। यह अनुसूचित जाति के अधिकारों पर खुला डाका है।

मुस्लिम व ईसाई मतावलम्बी बार-बार यही दोहराते हैं कि उनके मजहब में जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है। इस मांग से उनका यह समानता का दावा खोखला साबित हुआ है। इस मांग के पीछे उनका उद्देश्य न्याय दिलाना नहीं अपितु मतांतरण की प्रक्रिया को तेज करना है। यह अनुचित मांग न केवल सामाजिक न्याय अपितु संविधान की मूल भावना के विपरीत की गयी एक षड्यंत्र है।

अगर यह मांग मान ली गयी तो हिन्दुस्थान में हिन्दू अल्पसंख्यक हो जायेंगे। हलांकि यह मांग आज की नहीं है। वर्ष 1936 से ही मिशनरी और मौलवी मतांतरित अनुसूचित समाज के लिए आरक्षण की मांग सड़क से लेकर संसद तक निरंतर उठाते रहे हैं। 1936 में महात्मा गांधी और डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने इस मांग को अनुचित ठहराया था। संविधान सभा में भी जब इस मांग को पुनः उठाया गया तो संविधान निर्माता डॉक्टर अंबेडकर ने इसे देश विरोधी सिद्ध करते हुए ठुकरा दिया था।

डा. आम्बेडकर ने कहा था कि अगर यह मांग मान ली गयी तो जनसंख्या असंतुलन के खतरे बढ़ जाएंगे और जिस अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण का प्रावधान किया है वे इससे वंचित हो जाएंगे। हमारे संविधान-निर्माताओं ने सामाजिक व आर्थिक कारणों से हिन्दू समाज में उत्पन्न हुए छुआछूत, भेदभाव और पिछड़ेपन को दूर करने के लिए ही अनुसूचित जातियों के लिए विशेष प्रावधान किये थे।

देश में संसाधन सीमित हैं। इसलिए जनसंख्या विस्फोट चिंताजनक है। इसलिए इस विषय पर समग्रता से व एकात्मता से विचार करके सब पर लागू होने वाली जनसंख्या नीति बननी चाहिए। यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी कहा है।

देश के कई हिस्सों में मतांतरण के प्रयास चल रहे हैं। सीमावर्ती क्षेत्रों में मतांतरण होने से हिन्दुओं की संख्या कम हो रही है। इससे जनसंख्या असंतुलन का खतरा उत्पन्न हो गया है। जनसंख्या असंतुलन के कारण कई देशों में विभाजन की नौबत आई है। हिन्दू घटा-देश बंटा। भारत का विभाजन भी जनसंख्या असंतुलन के कारण ही हुआ।

देश में तमाम ईसाई संगठन विघटनकारी कार्यवाहियों में संलग्न हैं। हिन्दू समाज को तोड़ने का षड़यंत्र का रहे हैं। ऊंच-नीच छुआछूत आदि को आधार मानकर हिन्दू समाज से अलग करने का योजनाबद्ध प्रयास कर रहे हैं। वह दलित-मुस्लिम एकता और वनवासी व ईसाईयों का संयुक्त मोर्चा बनाने का भी प्रयास कर रहे हैं।

आज हिन्दुओं में चेतना बढ़ी है इस कारण उनके मंसूबे सफल नहीं हो रहे हैं। पूर्वोत्तर राज्यों के जनजातीय समुदाय के लोगों में स्वाभिमान जागरण के कारण ''मैं भी हिन्दू हूँ'' का बोध विकसित हुआ है। फिर भी धर्मान्तरण के खतरे से सतर्क और सावधान रहने मात्र से काम नहीं चलेगा। हिन्दू पतितो भवेत के मंत्र को आधार मानकर लोभ,लालच या भय से मतांतरित हो चुके बंधुओं की घर वापसी करानी होगी।

मुसलमानों तथा अंग्रेजों ने इस देश पर राज किया। हमारे बंधुओं का धर्मान्तरण कराया। हमारे बीच छूत-अछूत का भेद पैदा किया। इस संबंध में केवल उन लोगों को दोष देकर हम बच नहीं सकते। ईसाई तथा मुसलमानों ने हमारे किन दोषों का लाभ उठाया। सामाजिक विषमता इसमें प्रमुख कारण रही। इस पर हमें विचार करना होगा। वह समस्या आज भी विद्यमान है।

हिन्दू समाज में सामाजिक विषमता की खाई को पाटना होगा। धर्म परिवर्तन हो जाने के बाद हो हल्ला मचता है । लेकिन उसके पहले उन वंचित बंधुओं के पास कौन जाता है इस पर विचार करना होगा। जब तक हिन्दू समाज में अस्पृश्यता की स्थिति बनी रहेगी तब तक हिन्दू समाज न तो संगठित हो सकता और न ही उसे मतांतरित होने से बचाया जा सकता है।

इस देश के महापुरूषों ने स्वामी दयानन्द, स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गांधी, डा. भीमराव आम्बेडकर और महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने मतांतरण का सदैव विरोध किया है।

महात्मा गांधी मिशनरियों के हर प्रकार के प्रचार के कट्टर विरोधी थे। उनकी प्रमुख आपत्ति इस बात पर थी कि ईसाई मिशनरी अपने धर्म का प्रचार अस्पृश्यों के बीच कर रहे हैं। गांधी जी कहते थे कि मिशनरी सामाजिक कार्य को निष्काम भाव से नहीं करते। चिकित्सकीय सहायता वह इसलिए करते हैं कि मरीज ईसाई बन जाय।

अम्बेडकर ने लिखा था कि जातिवाद ईसाईयों के जीवन पर भी उतना ही छाया हुआ है जितना की हिन्दुओं के जीवन पर। उनमें भी आपस में रोटी बेटी का व्यवहार नहीं चलता। हिन्दुओं की भांति वे भी जातिवाद से ग्रस्त हैं। ईसाई गिरजाघरों में भी उनके साथ भेदभाव होता है। भारत में जो ईसाई मतांतरित हुए हैं वे दलित समाज से आते हैं। मतांतरित होने के बाद उनकी आर्थिक स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आता है। वह अस्पृष्य से स्पृश्य भी नहीं हुए।

वर्तमान में देखा जाय तो हिन्दुओं को मुस्लिमों से ज्यादा खतरा ईसाईयों से हैं। क्योंकि मुस्लिम मानसिकता से हर हिन्दू भलीभांति परिचित है। इसलिए कोई भी हिन्दू मुस्लिम बनने को जल्दी तैयार नहीं होता है । लेकिन ईसाई मिशनरियां सफेद बगुले की तरह होती हैं। वह सेवा का आवरण ओढ़कर सेवा की आड़ में अपने मिशन को अंजाम देते हैं।

चूंकि ईसाईयों की चालों से लोग अपरिचित हैं। इसलिए उनके जाल में फंस जाते हैं। इसलिए जो निर्धन व वंचित वर्ग है विशेषकर अनुसूचित समाज की समस्याएं विकट हैं। शिक्षा व रहन सहन के स्तर में अन्य समाज से वह काफी पीछे हैं। आज उनके बीच ज्यादा शक्ति से काम करने की आवश्यकता है।

(लेखक पत्रकारिता से जुड़े हैं)



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Durgesh Sharma

Durgesh Sharma

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