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Delhi Chunav 2025: झाड़ू से लक्ष्मी नाराज, भगवा के सूर्य का उदय
Delhi Chunav 2025: 2025 के चुनावों में भी यह परंपरा कायम रही, जहां एक तरफ आम आदमी पार्टी (AAP) अपनी झाड़ू के साथ मैदान में उतरी, वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने भगवा लहराने का संकल्प लिया।
Delhi Chunav 2025: दिल्ली विधानसभा चुनाव हमेशा से ही राजनीतिक विश्लेषकों और जनता के बीच चर्चा का विषय रहा है। 2025 के चुनावों में भी यह परंपरा कायम रही, जहां एक तरफ आम आदमी पार्टी (AAP) अपनी झाड़ू के साथ मैदान में उतरी, वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने भगवा लहराने का संकल्प लिया। लेकिन नतीजों ने यह साबित कर दिया कि इस बार ‘झाड़ू से लक्ष्मी नाराज हो गई और भगवा कोई रोक नहीं पाया।’
राजनीतिक परिदृश्य और जनता की सोच
दिल्ली के राजनीतिक मंच पर झाड़ू (AAP का चुनाव चिन्ह) और भगवा (BJP की विचारधारा) दो मुख्य प्रतीक रहे हैं। आम आदमी पार्टी ने 2015 और 2020 के चुनावों में जबरदस्त जीत दर्ज की थी, जिससे यह साबित हुआ कि दिल्ली की जनता ने शिक्षा, स्वास्थ्य और मुफ्त सेवाओं को प्राथमिकता दी। लेकिन 2025 में स्थिति बदली हुई दिखी।
इस बार दिल्ली की जनता ने आर्थिक स्थिरता और प्रशासनिक मजबूती पर अधिक जोर दिया। महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे सामने आए, जिससे AAP की लोकलुभावन नीतियों पर सवाल उठने लगे। जनता को लगा कि मुफ्त सुविधाओं से ज्यादा जरूरी है एक सशक्त आर्थिक नीति। इस असंतोष ने AAP की पकड़ को कमजोर किया और बीजेपी को फायदा मिला।
चुनावी मुद्दे और उनका प्रभाव
इस चुनाव में कई मुद्दे प्रभावी रहे, जिनमें महंगाई, रोजगार, महिला सुरक्षा, सरकारी योजनाओं की प्रभावशीलता और धार्मिक ध्रुवीकरण शामिल थे। बीजेपी ने अपने राष्ट्रीय नेतृत्व और मोदी सरकार की योजनाओं को सामने रखकर प्रचार किया। दूसरी ओर, AAP ने अपनी पुरानी योजनाओं का गुणगान किया, लेकिन जनता के बदलते मिजाज को भांपने में असफल रही।
1. मुफ्त योजनाएं बनाम आत्मनिर्भरता
AAP की योजनाएं जैसे मुफ्त बिजली, पानी और महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा 2015 और 2020 में काफी प्रभावी रहीं, लेकिन 2025 में जनता ने यह सोचना शुरू कर दिया कि इन योजनाओं का दीर्घकालिक लाभ क्या होगा। मुफ्त योजनाओं का भार करदाताओं पर पड़ रहा था, और सरकारी खजाने पर दबाव बढ़ता जा रहा था।
2. धार्मिक और राष्ट्रीय मुद्दों की लहर
बीजेपी ने इस बार अपने हिंदुत्व एजेंडे को खुलकर रखा। राम मंदिर के उद्घाटन, कश्मीर में अनुच्छेद 370 की बहाली न होने देना और भारत की वैश्विक पहचान को चुनावी प्रचार में जोड़ा गया। इसके साथ ही ‘विकास और स्थिरता’ के नारे ने मतदाताओं को आकर्षित किया।
3. भ्रष्टाचार के आरोप और प्रशासनिक कमजोरी
AAP सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप और शराब नीति विवाद ने भी उसकी छवि को नुकसान पहुंचाया। दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री और अन्य नेताओं की गिरफ्तारी से पार्टी की साख को झटका लगा। दूसरी ओर, बीजेपी ने ‘भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन’ का वादा किया, जिससे जनता का झुकाव उसकी ओर बढ़ा।चुनावी माहौल में ‘झाड़ू का तेज कुंद हो गया और भगवा का सूर्य उदय हो गया।’ यह स्पष्ट रूपक है, जिसमें AAP की हार और बीजेपी की जीत को प्रतीकात्मक रूप से दर्शाया गया है।‘बिजली, बस और बजट की बात, जनता ने ठुकराई सौगात।’‘दिल्ली की राजनीति शतरंज की बिसात की तरह हो गई, जहां हर चाल निर्णायक थी।’
चुनाव परिणाम और भविष्य की संभावनाएं
चुनाव के नतीजों में बीजेपी ने बढ़त बनाई, जबकि AAP को बड़ा झटका लगा। कांग्रेस अब भी हाशिए पर रही। दिल्ली की राजनीति में यह बदलाव बताता है कि जनता अब केवल मुफ्त सुविधाओं पर निर्भर नहीं रहना चाहती, बल्कि स्थायी विकास और प्रशासनिक मजबूती की ओर देख रही है।
आने वाले वर्षों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या AAP अपनी रणनीति में बदलाव करेगी या क्या बीजेपी इस जीत को अगले लोकसभा चुनावों में भुनाने में सफल होगी।दिल्ली के चुनावी नतीजों ने यह स्पष्ट कर दिया कि ‘झाड़ू से लक्ष्मी नाराज हो गई और भगवा कोई रोक नहीं पाया।’ राजनीतिक परिदृश्य में यह बदलाव बताता है कि जनता अब ज्यादा परिपक्व हो रही है और सरकारों को सिर्फ वादों से नहीं, बल्कि परिणामों से परखा जाएगा।
डॉ सुनील कुमार राजनीतिक विश्लेषक असिस्टेंट प्रोफेसर जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग वीर बहादुर पूर्वांचल यूनिवर्सिटी जौनपुर