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कांग्रेस का सियासी मौनः सिपाही की उपेक्षा, फिर तो जीत चुके जंग
बेंगलुरु हिंसा पर कांग्रेस का केन्द्रीय नेतृत्व सप्ताहांत से मौन है। पार्टी अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया। वे कर्नाटक (बेल्लारी) से सांसद रह चुकी हैं। महामंत्री प्रियंका वाड्रा का बयान बहुत आता रहता है, परन्तु बेंगलुरु पर नहीं।
के. विक्रम राव
यह मुद्दा कांग्रेस पार्टी के शीर्ष राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा जनपद-स्तरीय कार्यकर्ता से लगाव, जुड़ाव का है। गत बुधवार (12 अगस्त 2020) को बेंगलुरु की कावल बाइरासंद्रा बस्ती में कट्टर इस्लामी संगठन “सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया” के सैकड़ों सशस्त्र दंगाइयों ने एक दलित कांग्रेसी विधायक अखण्ड श्रीनिवास मूर्ति के मकान पर हमला किया। सब जला दिया। टीवी, मेज, कुर्सी, पलंग, रसोई आदि देखते-देखते सब ख़ाक हो गए। विधायक घर से बाहर थे अतः उनकी चिता नहीं जली।
कारण यह था कि उनके भांजे 35-वर्षीय पी. नवीन ने फेसबुक पर कोई पोस्ट डाला था जो पैगम्बरे इस्लाम हजरत मोहम्मद, हुजूरे अकरम, सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम पर आपत्तिजनक था।
नतीजन कांग्रेसी पार्षद इरशाद बेगम के पति और प्रमुख पार्टी अगुवा कलीम पाशा ने भीड़ जमा की। नारा-ए-तदबीर लगाकर धावा बोल दिया। कलीम पाशा पूर्व कांग्रेसी मंत्री के. जोसेफ़ जॉर्ज के गाढ़े साथी हैं। बेंगलुरु महानगर में वे काफी रसूखदार राजनेता हैं।
देवेगौड़ा ने कहा दंगाइयों से निर्ममता से पेश आएं
इस पूरे काण्ड पर पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौडा ने भाजपाई मुख्य मंत्री वाई.एस. येद्दीयूरप्पा से कहा कि “दंगाइयों से निर्ममता और बेहिचक कठोरता से शासन पेश आएं।” उनके पुत्र और जनता दल के पूर्व मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी ने संदेह व्यक्त किया कि यह हमला “स्पष्टतया पूर्व नियोजित था।”
हालाँकि SDPI ने कहा कि “हमारे दल का इस काण्ड में कोई हाथ नहीं है।” मगर पुलिस की प्राथमिकी में SDPI के वरिष्ठ सरबराह मुजम्मिल पाशा का नाम है। यह भी उल्लेखनीय है कि वे हजार से अधिक लोगों को लेकर हमले पर गए थे। उन्होंने पुलिस की कारों और बसों को भी जला दिया। हिन्दू इलाके में बलवा कराया। अब हिरासत में हैं।
पुलिस बल ने कहा कि CCTV कैमरा में साफ दिख रहा है कि मुजम्मिल पाशा दंगाइयों को नगदी बाँट रहे हैं। उनकी तुलना ताहिर हुसैन से की जा रही है, जिनकी किरदारी दिल्ली के दंगों में बड़ी चर्चित रही।
जद सेक्युलर का पूर्ण समर्थन
स्थिति इतनी गंभीर हो गयी थी कि कर्नाटक के गृहमंत्री बसवराज बोम्मई ने बताया कि पड़ोसी हैदराबाद (तेलंगाना) और चेन्नई से केन्द्रीय आरक्षी पुलिस दल के छः प्लाटून बंगलूर मंगवाये गए। रेपिड एक्शन बल तथा गरुड़ कमान्डोज भी दंगा पीड़ित इलाके में तैनात किये गए। पुलिस फायरिंग में तीन दंगाई मारे गए। करीब सवा सौ लोग गिरफ्तार हुए।
अंततः जनता दल (सेक्युलर) विपक्ष ने भाजपा सरकार को हालत पर काबू करने के लिए “पूर्ण समर्थन” देने का वादा किया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डी. के. शिवकुमार ने पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धरामैय्या से एक निजी अनुरोध किया। इसीलिए चोटी के नामी कांग्रेसी नेता जमील अहमद घटना से दूर रहे। अहमद की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है।
राहुल ने ही प्रत्याशी नामित किया था
श्रीनिवास मूर्ति को बेंगलुरु के पुलकेशिन नगर क्षेत्र से स्वयं राहुल गाँधी ने प्रत्याशी नामित किया था, और वे निर्वाचित हो गए। वे जनता दल (सेक्युलर) में थे। उनके आरक्षित चुनाव क्षेत्र का नाम चालुक्य वंशज सम्राट पुलकेशिन के नाम पर है, जिन्होंने महाराजाधिराज हर्षवर्धन को हराया था, अपने वीर सैनिकों की मदद से।
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फिलहाल जिला और प्रदेश कांग्रेस नेता जो भी कहें या करें, पार्टी के मुस्लिम-बहुल गुलबर्गा-वासी वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मापन्ना मल्लिकार्जुन खड्गे कहीं भी, कुछ भी कहते नहीं सुनाई पड़े। वे गतमाह ही राजसभा के लिए चुने गए थे।
लोकसभा में नेता विपक्ष रहे और मनमोहन सिंह काबीना में रेलमंत्री। मगर गत वर्ष लोकसभा चुनाव हार गए थे। भारी भरकम दलित नेता हैं। पर सजातीय श्रीनिवास मूर्ति पर एक हर्फ़ भी नहीं बोले।
किसी ने एक शब्द नहीं बोला
केन्द्रीय नेतृत्व सप्ताहांत से मौन है। पार्टी अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया। वे कर्नाटक (बेल्लारी) से सांसद रह चुकी हैं। महामंत्री प्रियंका वाड्रा का बयान बहुत आता रहता है, परन्तु बेंगलुरु पर नहीं।
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राहुल को घटना की जानकारी रही या नहीं, ज्ञात नहीं। इसीलिए स्थानीय पार्टीजन में रोष होना स्वाभाविक है। शायद सभी दुविधा में हों कि दलित और मुस्लिम संघर्ष में किसका पक्ष लें? दोनों कांग्रेस के आत्मीय हैं।
इतना खौफ ?
वोट बैंक की दुविधा से आक्रांत !
शायद ऐसी ही विडंबना का नतीजा है कि राजनीति को हरजाई कहते हैं। बेंगलुरु का शिकार हुआ दलित विधायक अब यह भली भांति समझ गया होगा।
K Vikram Rao
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