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साक्षात्कार : पीठ विवाद पर दोनों शंकराचार्यों के अपने-अपने तर्क

Newstrack
Published on: 19 Jan 2018 4:13 PM IST
साक्षात्कार : पीठ विवाद पर दोनों शंकराचार्यों के अपने-अपने तर्क
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रतिभान त्रिपाठी

राजनीति हर किसी को प्रभावित करती है, क्या संत-महंत, क्या आचार्य-शंकराचार्य। सब किसी न किसी विचारधारा से प्रभावित होते हैं। अगर समाज में यह अवधारणा है कि देश के सबसे वरिष्ठ शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती कांग्रेस और शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती भाजपा की विचारधारा से प्रभावित हैं, तो गलत नहीं है। कई अवसरों उनकी यह विचारधारा झलकती भी है। हां, संत और शंकराचार्य के रूप में उनके यहां हर पार्टी से जुड़े लोग पहुंचते हैं, उनका आशीर्वाद लेते हैं, इसमें भी संशय नहीं। अयोध्या में चाहे श्रीराम मंदिर निर्माण की बात हो या फिर सरकार के कार्यों और नीतियों के सवाल हों, निस्संदेह दोनों शंकराचार्यों की विचारधारा अलग-अलग है। हिंदुत्व को लेकर दोनों शंकराचार्यों की अलग-अलग परिभाषा है। ज्योतिष्पीठ को लेकर दोनों का मतभेद जगजाहिर है। इस मसले पर दोनों हद दर्जे के सांसारिक हैं और दीवानी से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जमकर मुकदमेबाजी कर रहे हैं। पीठ विवाद पर दोनों शंकराचार्यों के अपने-अपने ठोस तर्क और व्याख्याएं हैं। दोनों से बातचीत की गई तो लगता नहीं कि वे पीठ विवाद खत्म करने को एकमत होंगे। दोनों के विचारों में इतना फासला है कि उसकी भरपाई संभव नहीं। अजब सम्मोहन यह है कि दोनों के अनुयायी अपने-अपने गुरु को सही मान रहे हैं। इस समय दोनों शंकराचार्य प्रयाग के माघ मेले में हैं। दोनों के बीच विवाद भी इस समय चरम पर है। देश, समाज, राजनीति, धर्म और मंदिर आंदोलन को लेकर दोनों शंकराचार्यों से रतिभान त्रिपाठी ने विस्तार से बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के अंश-

वासुदेवानंद में शंकराचार्य की योग्यता नहीं: स्वरूपानंद

>आप सबसे वरिष्ठ शंकराचार्य हैं। ज्योतिष्पीठ को लेकर आपकी शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती से मुकदमेबाजी चल रही है। क्या मुकदमेबाजी करना जरूरी था?

>पहली बात तो यह कि स्वामी वासुदेवानंद शंकराचार्य हैं ही नहीं। वह इस पद की योग्यता ही नहीं रखते। जब 1973 में मैं ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य के रूप में अभिषिक्त कर दिया गया तो फिर कोई विवाद ही नहीं रहा। शारदापीठ द्वारिका का शंकराचार्य तो मुझे इसके बाद बनाया गया। संतों और विद्वज्जनों के विशेष अनुरोध पर मुझे शारदापीठ के शंकराचार्य का दायित्व दिया गया।

> तो क्या आवश्यक था कि आप दो जगह के शंकराचार्य बने रहते? क्या शंकराचार्य रचित शंकर मठाम्नाय महानुशासनम् में ऐसी व्यवस्था दी गई है कि एक आचार्य दो पीठों का दायित्व संभाल सकता है?

>हां, शंकर मठाम्नाय महानुशासनम् में ऐसी व्यवस्था है। जब तक पात्र आचार्य न मिले, एक आचार्य दो पीठों के शंकराचार्य रह सकते हैं और जब मेरा अभिषेक किया गया है तो मुझे क्यों नहीं होना चाहिए। जो लोग यह कहते हैं कि एक आचार्य दो पीठों का शंकराचार्य नहीं हो सकता है, उन्हें शंकर मठाम्नाय महानुशासनम् का ज्ञान नहीं है।

> लेकिन इससे समाज में गलत संदेश जाता है कि जब संत और शंकराचार्य ही पीठों की लड़ाई लड़ रहे हैं तो ये धर्म, त्याग और आचरण का उपदेश क्या देंगे?

> मैं धर्म के लिए ही लड़ाई लड़ रहा हूं। धर्म की रक्षा ही तो कर रहा हूं। गलत संदेश तो दूसरे लोग दे रहे हैं। उनका उद्देश्य ही विवाद खड़ा करना है। पात्र के बजाय अपात्र को शंकराचार्य जैसा महत्वपूर्ण पद कैसे सौंपा जा सकता है। पिछले दिनों जब हाईकोर्ट ने फैसला दिया तो उसके बाद काशी में फिर से ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य के रूप में मेरा अभिषेक कर दिया गया। इस तरह मैं पुन: अपने पद पर हूं। इसके बाद भी मेला प्रशासन मुझे शंकराचार्य नहीं मान रहा। मेरे लिए मेला क्षेत्र में जरूरी इंतजाम तक नहीं कराया गया।

>गंगा की स्वच्छता को लेकर इस सरकार के कार्यों से आप कितना सहमत हैं?

>कौन कर रहा है गंगा की सफाई। क्या चमड़े की फैक्ट्रियों का दूषित पानी गंगा में गिरना बंद हो गया? क्या गंदे नाले रोके गए? क्या आज तक गंगा साफ हुईं? बांधों से पानी छोड़ा गया क्या? कुछ नहीं हुआ। कहने मात्र से गंगा की सफाई नहीं हो पाएगी। काम करना पड़ेगा, जो किसी को दिख रहा हो तो बताए। इस सरकार ने जनता से जो वादे किए थे क्या उन्हें पूरा कर दिया। क्या बेरोजगारी और गरीबी दूर हो गई।

>अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण की समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है। आपके नजरिए से यह कैसे संभव है?

> हम तो रामालय ट्रस्ट के जरिये इसके लिए काम कर ही रहे हैं। हमने काफी अच्छा माहौल बनाया था। सभी पक्षों को तैयार कर रहे थे, लेकिन सारी समस्या की जड़ विश्व हिंदू परिषद है। वह नहीं चाहता कि राम मंदिर बने। विश्व हिंदू परिषद की हिंदुत्व की परिभाषा ही गलत है। वह कहता है कि भारत में पैदा होने वाले सभी लोग हिंदू हैं। यह कैसे हो सकता है। जब समाज जातियों में विभाजित है, संप्रदायों और मतों में विभाजित है तो मुसलमान हिंदू कैसे हो सकते हैं।

>तो आप मानते हैं कि विहिप और सरकार से जुड़े लोग इसमें अड़चन डाल रहे हैं?

>अब आप मेरे सवालों का जवाब दीजिए। क्या देश में गौहत्या बंद हुई क्या? देश से गोमांस का निर्यात बंद हुआ क्या? गंगा की सफाई हुई क्या? गरीबी और बेरोजगारी दूर हुई क्या? जब यह सब नहीं हो पाया तो आपको समझ लेना चाहिए कि समस्या कहां से है। यह सरकार खुद ही समस्या पैदा करती है। कभी नोटबंदी करके, कभी जीएसटी लागू करके।

>साईं बाबा को लेकर आप विवादास्पद बात क्यों बोलते हैं?

>मेरी बातों में विवाद कहां। सच्चाई कहता हूं। साईं मुसलमान था, वह भगवान नहीं। अगर हनुमान चालीसा है तो लोग उसी तर्ज पर साईं चालीसा बना देते हैं। शंकर जी, दुर्गा जी और राम जी के मंदिरों में साईं की प्रतिमाएं लगाई जा रही हैं। आखिर अधर्म कौन कर रहा है? साईं के बारे में सच बोलकर मैं सनातन धर्म की रक्षा की ही बात करता हूं और हमेशा करता रहूंगा। साईं को भगवान का दर्जा देने वाले अज्ञानी हैं और वह सनातन धर्म के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं। अगर इन लोगों ने यह अधर्म बन्द नहीं किया तो देश और समाज का बहुत नुकसान होगा।

पेंशन लेने वाला शंकराचार्य हो ही नहीं सकता: वासुदेवानंद

> आप ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य हैं। यह पीठ आपके और स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के बीच विवाद की वजह क्यों बनी हुई है?

>यह सवाल तो आपको स्वामी स्वरूपानंद से पूछना चाहिए था कि पहले अदालत कौन गया। स्वामी ब्रह्मानंद के बाद स्वामी शांतानंद महाराज शंकराचार्य बनाए गए। इसके बाद स्वामी विष्णुदेवानंद जी को इस पद पर अभिषिक्त किया गया और उसके बाद मुझे बनाया गया तो विवाद कहां है। विवाद तो स्वामी स्वरूपानंद ने पैदा किया है।

> स्वामी स्वरूपानंद जी ने कहा कि ज्योतिष्पीठ पर उनका अभिषेक फिर से हो गया है?

>अगर वह शंकराचार्य थे तो उन्हें फिर से अभिषेक कराने की जरूरत ही क्या थी। आप स्वयं समझ लीजिए कि वह कैसे हैं। वास्तव में इस विवाद की जड़ में स्वामी करपात्री जी रहे हैं जिन्हें लोग धर्मसम्राट कहते हैं। चारों पीठों को उन्होंने बर्बाद कर दिया। स्वरूपानंद तो उनके चंगू-मंगू रहे हैं। स्वामी स्वरूपानंद कहते हैं कि मैं कांग्रेसी हूं। जो खुद को कांग्रेसी कहता हो वह संत कैसे हो सकता है। क्या यह किसी संत को शोभा देता है कि वह दो पीठों पर कब्जा करने की कोशिश करे। किसी भी मुद्दे पर विवाद स्वरूपानंद ही पैदा करते हैं। जहां तक पीठ की बात है, हम तो ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य हैं ही। नियम-कानून और आध्यात्मिक व भौतिक रूप से भी। जो लोग सरकारी पेंशन ले रहे हैं, वह शंकराचार्य हो ही नहीं सकते हैं।

> राम मंदिर विवाद का समाधान कब तक हो पाएगा?

> देश का संविधान है। कानून है। इस समस्या का भी समाधान होगा। किसी राजसत्ता से क्यों आशा करनी चाहिए। हम किसी भी सरकार से कभी भी अपेक्षा नहीं करते थे। हम हिंदू समाज से अपेक्षा करते हैं। वर्तमान में अदालत ने जो आदेश दिया है, उससे यह तय है कि वह भूमि हिंदू समाज की है। कोर्ट ने भूमि का जो बंटवारा किया है, वह उचित नहीं। मूर्ति नाबालिग होती है और वहां मूर्ति है। क्या किसी नाबालिग की भूमि का बंटवारा हो सकता है। नहीं हो सकता। हम सुप्रीम कोर्ट से आशा करते हैं कि वह भूमि का बंटवारा खत्म करके राम जी के पक्ष में फैसला दे। विवाद कोर्ट में है, तो वहीं से समाधान होगा। कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद जैसे कुछ कानूनविद तो इस विवाद को 2019 के बाद के बाद तय करने को कहते हैं। यह आखिर क्यों? कांग्रेस की सरकार थी, तब तो सबकुछ किया उन्होंने। केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और प्रदेश में सपा की सरकार थी। लाठियां चलीं, गोलियां चलीं। किसको नहीं पता। तब राजसत्ता ने समाधान क्यों नहीं निकाला।

> आपको क्या लग रहा है कि योगी और मोदी की सरकार इस बारे में सहयोग कर रही है?

> जब विवाद कोर्ट में है तो हम राजसत्ता पर क्यों निर्भर रहें। सरकार की जिम्मेदारी तो तब आती है जब अदालती विवाद खत्म हो जाए।

> आज के समय में आपको देश की सबसे बड़ी समस्या क्या लग रही है और उसका समाधान क्या है?

> गोवंश की रक्षा और उसका उपयोग बहुत जरूरी है। हम ऋषि और कृषि प्रधान देश हैं। हमारे ऋषियों ने भी गाय और गोवंश की रक्षा व उसके सदुपयोग की बात कही है। कृषि यंत्रों के चलते हमने गोवंश का उपयोग बंद कर दिया है। अनेक समस्याएं इसी से पैदा हो रही हैं।

> लेकिन देश की इतनी बड़ी आबादी का पेट भरने के लिए यंत्रों के सहारे ज्यादा अन्न उपजाना भी तो जरूरी है?

> आखिर कब तक और उसकी क्या सीमा होगी? क्या हम प्राकृतिक संसाधनों के सहारे यह नहीं कर सकते। कर सकते हैं,लेकिन लोग करना नहीं चाहते।

> इस तरह के कामों के लिए क्या आप सरकार को जिम्मेदार नहीं मानते?

> सरकार को छोडि़ए, ऐसी गलतियों के लिए समाज ही असल जिम्मेदार है। हमें सरकार के भरोसे सारे काम नहीं रखने चाहिए। समाज को खुद जिम्मेदारियां उठानी होंगी। निष्क्रियता छोड़ कर्मठ बनना होगा। अगर यह नहीं हुआ तो एक दिन ऐसा भी आएगा जब प्रकृति सबको समझा देगी। मनरेगा की सुविधा मजदूरों को दी गई। उनके नाम पर काम कोई कर रहा है, पैसा कोई ले रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि समाज में अकर्मण्यता बढ़ी है। लोग सबकुछ पाना चाहते हैं। समाज को अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभानी चाहिए, तभी समस्याओं का समाधान संभव है।

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