×

टोने-टोटकों का सहारा, राजनीति में बढ़ते अंधविश्वास

raghvendra
Published on: 16 Nov 2018 6:48 PM IST
टोने-टोटकों का सहारा, राजनीति में बढ़ते अंधविश्वास
X

प्रमोद भार्गव

भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस, दोनों ही दल मध्य प्रदेश के चुनाव में अंधविश्वासी नजर आ रहे हैं। चुनाव जीतने के लिए जहां भाजपा अपने भोपाल स्थित प्रदेश मुख्यालय में वास्तुदोष दूर करने के पाखंड में लगी है, वहीं कांग्रेस भाजपा की बुरी नजर से बचने के लिए अपने कार्यालय के दरवाजों पर नींबू-मिर्ची के टोटके लटका रही है। जाहिर है, हमारे नेताओं में अंधविश्वास की कमजोरी व्यापक होती जा रही है। जबकि इनका दायित्व बनता है कि ये धार्मिक पाखंड और आडंबर दूर करते हुए जनता में वैज्ञानिक सोच विकसित करें।

भाजपा ने अपने प्रदेश मुख्यालय का वास्तुदोष दूर करने के लिए हाल ही में ईशान कोण पर पानी की टंकी बनवाई है। इसके पहले यहां 2003 में भी पानी की टंकी बनवाई गई थी, लेकिन कुछ समय बाद इसे वास्तुदोष मानकर तुड़वा दिया गया। अब इस टंकी के निर्माण के परिप्रेक्ष्य में भोपाल के भाजपा सांसद आलोक संजर तर्क दे रहे हैं कि वास्तुदोष भवनों में होता है, इसलिए इसे दूर करना जरूरी है। हमारी आस्था ईश्वर और वास्तु दोनों पर है। दूसरी तरफ कांग्रेस कार्यालय में भी टोने-टोटके अमल में लाए जा रहे हैं। यहां दरवाजों और खिड़कियों पर नींबू एवं मिर्ची धागों में पिरोकर लटका दिए गए हैं, जिससे भाजपा की बुरी नजर और उसकी अला-बलाओं से कांग्रेस बची रहे। गौरतलब है कि चुनावों में कांग्रेस को नुकसान हुआ भी, तो इसलिए नहीं होगा कि भाजपा की उसे नजर लग गई है, बल्कि इसलिए होगा कि एक तो उसकी अंतर्कलह सतह पर आ गई है, दूसरे वह भाजपा की कमजोरियों को आक्रामक ढंग से जनता के सामने लाने में कमोबेश नाकाम रही है।

अकसर हमारे देश में ग्रामीण, अशिक्षित और गरीब को टोने-टोटकों का सहारा लेने पर अंधविश्वासी करार दिया जाता है। अंधविश्वास के पाखंड से उबारने की दृष्टिï से चलाए जाने वाले अभियान भी इन्हीं लोगों तक सीमित रहते हैं। आर्थिक रूप से कमजोर और निरक्षर व्यक्ति के टोनों-टोटकों को इस लिहाज से नजरअंदाज किया जा सकता है कि लाचारी के संकट से छुटकारे का आसान उपाय दैवीय शक्ति से प्रार्थना ही हो सकती है। लेकिन यह विंडबना ही है कि जिन नेताओं पर जनता को जागरूक और जनहित की नीतियों के जरिए समृद्घशाली बनाने की जिम्मेदारी है, वे खुद अंधविश्वास में जकड़े हुए हैं। दरअसल वास्तु और टोने-टोटके जैसे प्रतीक अशक्त और अपंग इनसान की बैसाखी हैं। जब इनसान सत्य और ईश्वर की खोज करते-करते थक जाता है और किसी परिणाम पर भी नहीं पहुंच पाता तो वह प्रतीक गढक़र उसी को सत्य या ईश्वर मानने लगता है। यह इनसान की स्वाभाविक कमजोरी है। यथार्थवाद से पलायन अंधविश्वास की जड़ता उत्पन्न करता है। भारतीय समाज में यह कमजोरी बहुत व्यापक और दीर्घकालिक रही है।

वर्तमान समाज में अंधविश्वास का बोलबाला इतना बढ़ गया है कि महाराष्ट्र में अंध-श्रद्घा को निर्मूल करने का अभियान चलाने वाले नरेंद्र दाभोलकर की 2013 में हत्या कर दी गई थी। हालांकि बाद में उन्हीं के दिए प्रस्ताव को अंधविश्वास का पर्याय मानते हुए ठोस कानून बनाया गया। इस तरह से महाराष्ट्र अंधविश्वास के खिलाफ कानून लाने वाला पहला राज्य कहलाया। लेकिन इस कानून के अस्तित्व में आने के बाद भी महाराष्ट्र के नेताओं में खूब अंधविश्वास देखा गया और किसी के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई नहीं की गई। अंधविश्वास के खिलाफ कानून लाने में भागीदारी करने वाले मंत्री ही अंधविश्वास की गिरफ्त में देखे गए। इस कानून का उल्लंघन राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता और राज्य के तत्कालीन श्रममंत्री हसन मुशरिफ ने ही कर दिया था। इसी पार्टी के एक नाराज कार्यकर्ता ने उनके चेहरे पर काली स्याही फेंक दी थी। इस कालिख से पोत दिए जाने के कारण मंत्री महोदय कथित रूप से ‘अशुद्ध’ हो गए। इस अशुद्घि से शुद्घि का उपाय उनके प्रशंसकों ने दूध से स्नान करना सुझाया। फिर क्या था, नागरिकों को दिशा देने वाले हजरत हसन मुशरिफ ने खबरिया चैनलों के कैमरों के सामने सैकड़ों लीटर दूध से नहाकर देह का शुद्घिकरण किया। हालांकि अंध-श्रद्घा निर्मूलन कानून इतना मजबूत है कि यदि महाराष्ट्र सरकार श्रममंत्री के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करने की इच्छाशक्ति जताती, तो उन्हें लपेटे में ले सकती थी। क्योंकि इस कानून के दायरे में टोनों-टोटकों के जानकार, तांत्रिक, जादुई चमत्कार, दैवीय शक्ति की सवारी, इनसान में आत्मा का अवतरण और संतों के ईश्वरीय अवतार का दावा करने वाले सभी पाखंडी आते हैं। साथ ही मानसिक रोगियों पर भूत-प्रेत चढऩे और प्रेतात्मा से मुक्ति दिलाने के ओझा भी इसके दायरे में हैं।

राजनीतिकों के अंधविश्वास का यह कोई इकलौता उदाहरण नहीं है। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री वी.एस. येदियुरप्पा अकसर भयभीत रहते थे कि उनके विरोधी काला जादू करके उन्हें सत्ता से बेदखल न कर दें। वे सत्ता से बेदखल भी हुए और खनिज घोटालों में भागीदारी के चलते जेल भी गए। इस दौरान उन्होंने दुष्टात्माओं से मुक्ति के लिए कई मर्तबा ऐसे कर्मकांडों को आजमाया, जो उनकी जगहंसाई का कारण बने। वास्तुदोष के भ्रम के चलते येदियुरप्पा ने विधान भवन के कक्ष में तोडफ़ोड़ कराई। इसी तरह वसुंधरा राजे सिंधिया, रमन सिंह और शिवराज सिंह चौहान ने अपने मुख्यमंत्रित्व के पहले कार्यकालों में बारिश के लिए सोमयज्ञ कराए। मध्य प्रदेश के पूर्व सपा विधायक किशोर समरीते ने मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री बनाने के लिए कामाख्या देवी मंदिर में 101 भैसों की बलि दी। ये बात अलग है कि मुलायम प्रधानमंत्री नहीं बन पाए। आसाराम बापू, उनका पुत्र सत्य साईं तो अपने को साक्षात ईश्वरीय अवतार मानते थे, आज वे किस दुर्गति में हैं ये किसी से छिपा नहीं है। यह चिंतनीय है कि देश को दिशा देने वाले राजनेता, वैज्ञानिक चेतना को समाज में स्थापित करने की बजाए अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए तंत्र-मंत्र और टोनों-टोटकों का सहारा ले रहे हैं। जाहिर है, ऐसे भयभीत नेताओं से समाज को दिशा मिलने वाली नहीं है।

हरदेश के नेताओं को सांस्कृतिक चेतना और रूढि़वादी जड़ताओं को तोडऩे वाले प्रतिनिधि के रूप में देखा जाता है। इसीलिए उनसे सांस्कृतिक परंपराओं से अंधविश्वासों को दूर करने की अपेक्षा की जाती है ताकि लोगों में तार्किकता का विस्तार हो, वैज्ञानिक चेतना संपन्न समाज का निर्माण हो। लेकिन हमारे यहां यह विडंबना ही है कि नेता और प्रगतिशील सोच वाले अपने आप को बुद्घिजीवी मानने वाले लेखक-पत्रकार भी खबरिया चैनलों पर ज्योतिाीय-चमत्कार, तांत्रिक-क्रियाओं, टोनों-टोटकों और पुनर्जन्म की अलौकिक काल्पनिक गाथाएं गढक़र समाज में अंधविश्वास फैलाने में लगे हैंं। पाखंड को बढ़ावा देने वाले इन प्रसारणों पर कानूनी रोक लगाए बिना अंधविश्वास मिटना संभव नहीं है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

Next Story