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जनसंख्या विस्फोट में क्यों भड़क रहे हैं मौलाना, जबकि सच्चाई ये है
जनसंख्या विस्फोट को लेकर मौलाना भड़क जाते हैं। इसे एकतरफा या मजहबी रुख पहना दिया जाता है। जबकि कानून किसी एक के लिए नहीं सभी के लिए समान होगा और जबकि नतीजे खुद सारी पोल खो रहे हैं तो आप बेचैन क्यों हैं। जनसंख्या विस्फोट के लिए दो बच्चों का कानून बनाने का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत का बयान आने के बाद सियासत गरमा गई है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 अगस्त 2019 को ही स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से जनसंख्या विस्फोट पर चिंता जता चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को पिछले हफ्ते ही नोटिस भी जारी कर दिया है।
गौरतलब है कि अटल बिहारी सरकार की ओर से 2000 में गठित वेंकटचलैया आयोग ने जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने की सिफारिश की थी, मगर 2004 के चुनाव में हार के चलते एनडीए सरकार के बाहर होने से यह कानून नहीं बन सका था।
भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि वाजपेयी सरकार में 11 सदस्यीय संविधान समीक्षा आयोग (वेंकटचलैया आयोग) ने 2 वर्ष की मेहनत के बाद संविधान में अनुच्छेद 47A जोड़ने और जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने का सुझाव दिया था। अब तक 125 बार संविधान संशोधन हो चुका है, कई बार सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी बदला जा चुका है। सैकड़ों नए कानून बनाये गए लेकिन देश के लिए सबसे ज्यादा जरूरी जनसंख्या नियंत्रण कानून नहीं बनाया गया, जबकि “हम दो-हमारे दो” कानून से देश की 50 फीसद समस्याओं का समाधान हो जाएगा।
डेढ़ अरब आबादी
मौजूदा समय 124 करोड़ भारतीयों के पास आधार कार्ड है। लगभग 20 प्रतिशत नागरिक (विशेष रूप से बच्चे) बिना आधार के हैं तथा 5 करोड़ बंगलादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिये अवैध रूप से भारत में रहते हैं। इससे स्पष्ट है कि हमारे देश की जनसंख्या 135 करोड़ नहीं बल्कि 150 करोड़ से ज़्यादा है और हम चीन से आगे निकल चुके हैं। यदि संसाधनों की बात करें तो हमारे पास कृषि योग्य भूमि दुनिया की लगभग 2% और पीने योग्य पानी 4% है, लेकिन जनसंख्या 20% है। यदि चीन से तुलना करें तो क्षेत्रफल चीन का लगभग एक तिहाई है लेकिन जनसंख्या वृद्धि की दर चीन की तीन गुना है। चीन में प्रति मिनट 11 बच्चे और भारत में प्रति मिनट 33 बच्चे पैदा होते हैं।
ये है जनसंख्या विस्फोट के नतीजे
ग्लोबल हंगर इंडेक्स में हम 103वें स्थान पर, साक्षरता दर में 168वें स्थान पर, वर्ल्ड हैपिनेस इंडेक्स में 140वें स्थान पर, ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स में 130वें स्थान पर, सोशल प्रोग्रेस इंडेक्स में 53वें स्थान पर, यूथ डेवलपमेंट इंडेक्स में 134वें स्थान पर, होमलेस इंडेक्स में 8वें स्थान पर, लिंग असमानता में 76वें स्थान पर हैं। इसी तरह न्यूनतम वेतन में 64वें स्थान पर, रोजगार दर में 42वें स्थान पर, क्वालिटी ऑफ़ लाइफ इंडेक्स में 43वें स्थान पर, फाइनेंसियल डेवलपमेंट इंडेक्स में 51वें स्थान पर, करप्शन परसेप्शन इंडेक्स में 78वें स्थान पर, रूल ऑफ़ लॉ इंडेक्स में 66वें स्थान पर, एनवायरनमेंट परफॉरमेंस इंडेक्स में 177वें स्थान पर पर हैं। पर कैपिटा जीडीपी में 139वें स्थान पर हैं लेकिन जमीन से पानी निकालने के मामले में हम दुनिया में पहले स्थान पर हैं, जबकि हमारे पास पीने योग्य पानी मात्र 4% है जो जनसंख्या विस्फोट की स्थिति भयावह बना रहा है।
भागवत को नतीजे भुगतने की धमकी
अब मोहन भागवत के बयान पर राकांपा ने तंज कसते हुए नतीजा भुगतने की चेतावनी दी है। राकांपा नेता नवाब मलिक का कहना है कि मोहन भागवत दो बच्चों का कानून चाहते हैं। शायद उनको नहीं पता कि महाराष्ट्र में पहले से ही इस पर कई कानून है। कई दूसरे राज्यों में भी ऐसा ही है। फिर भी यदि भागवत जी जबरदस्ती पुरुष नसबंदी चाहते हैं तो मोदीजी को इस पर कानून बनाने दें। हमने देखा है कि अतीत में इसका क्या हस्र हुआ था।
सुप्रीम कोर्ट ने जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। इस याचिका को भाजपा नेता और वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने ही दायर किया है। अश्विनी उपाध्याय इस मामले पर हाई कोर्ट में भी गये थे जहां यह याचिका खारिज हो गई थी। वह पीएमओ में भी जनसंख्या नियंत्रण को लेकर साल 2018 में प्रजेंटेशन भी दे चुके हैं।
याचिका खारिज करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि हम सरकार के कार्यों को अंजाम नहीं दे सकते। जनसंख्या नियंत्रण कानून पर अमल करवाना अदालत का कार्यक्षेत्र नहीं है।
देश में राष्ट्रीय स्तर पर परिवार नियोजन को बढ़ावा देने के लिए दो बच्चों की नीति आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिशा और राजस्थान जैसे कुछ राज्यों में आंशिक रूप से पहले से लागू है। सबसे अधिक आबादी वाले बिहार और उत्तर प्रदेश में हालांकि यह नीति लागू नहीं है। इसका कारण राज्य में इस नीति का विरोध अहम है।
क्या मुस्लिम नेता कौम के दुश्मन हैं या सशंकित
ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के अध्यक्ष बदरुद्दीन अजमल का कहना है कि किसी नीति से मुस्लिमों को बच्चे पैदा करने से नहीं रोका जा सकता है।
वास्तव में 1970 के दशक में कांग्रेस का बड़ा लोकप्रिय नारा था हम दो हमारे दो लेकिन इमरजेंसी के दौरान जब जबरन परिवार नियोजन शुरू किया गया तो नारा बदल गया नसबंदी के तीन दलाल इंदिरा, संजय, बंसीलाल। इस दौरान बड़े पैमाने पर लोगों की जबरन नसबंदी की गई थी। वास्तव में वो तरीका गलत था तो इस समय ये विरोध का तरीका भी गलत है। सभी को इस देश के संसाधनों और अपनी क्षमता के अनुरूप अपने परिवार का आकार रखना चाहिए।
क्या कहते हैं बरेलवी मसलक से जुड़े उलेमा
तंजीम उलेमा ए इस्लाम के राष्ट्रीय महासचिव मौलाना शहाबुद्दीन का कहना है कि पापुलेशन कंट्रोल के सिलसिले में शरियत इस्लामिया ने कोई पाबन्दी नही रखी है, इस्लाम पाबन्दी की इज्जत नही देता है। उन्होंने कहा अगर लोग अपने तौर पर खुद ऐहतियात बरते है तो इसमे भी कोई हर्ज नही है,और ये नाजायज भी नही होगा। मगर हुकूमत किसी जोर जबरदस्ती के ज़रिए पापुलेशन कम करने की बात करती है तो ये नाजायज होगा। अगर इसकी कोशिश की गई तो एक बहुत बड़ा तबका विरोध करने पर भी उतर आएगा। अगर इस तरह की कोई पॉलिसी आते है तो हम लोग विरोध करेंगे और मुस्लिम संगठन भी विरोध करेंगे।
समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान ने पापुलेशन कानून के सवाल पर तंज कसते हुए कहते हैं कि जिस परिवार में दो-तीन से ज्यादा बच्चे हैं उन पति-पत्नी को फांसी दे देना चाहिए, क्योंकि नहीं रहेगा बांस और नहीं बजेगी बांसुरी।
एआईएमआईएम के प्रवक्ता आसिम वकार कहते हैं कि एक तरफ प्रधानमंत्री जनसंख्या नियंत्रण की बात कहते हैं, वहीं दूसरी तरफ आरएसएस प्रमुख और बीजेपी सांसद साक्षी महाराज हिंदुओं से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील करते हैं, ऐसे में प्रधानमंत्री इस बात को साफ करें कि जनसंख्या नियंत्रण का मामला सिर्फ मुसलमानों के लिए ही है या दूसरे धर्म भी इसके दायरे में आते हैं।
देवबंदी उलेमा का मत
देवबंदी उलेमाओ का साफ कहना है कि जनसंख्या विस्फोट पर न तो कोई फतवे की जरूरत है और न ही कानून की। उन्होंने कहा इसके लिए कोई एक समुदाय, कोई धर्म जिम्मेदार नहीं है। इस पर खुद लोग सोचे समझे।
मदरसा जामिया शेखुल हिंद के मोहतमिम मौलाना मुफ्ती असद कासमी का कहना है कि युवा पीढ़ी रोजगार के लिए भटक रही है। वादे के मुताबिक केंद्र सरकार युवाओं को रोजगार देने की तरफ सार्थक कदम नहीं उठा रही है। युवाओं का ध्यान भटका कर उन्हें सांप्रदायिकता में उलझाना चाहती हैं। ताकि मुस्लिम और हिंदू आपस में लड़ता रहे। मुफ्ती असद कासमी ने कहा कि सबसे पहले देश के विकास की तरफ ध्यान देने की जरुरत हैं।
मुफ्ती असद कासमी ने कहा कि भारत में जनसंख्या विस्फोट का जिम्मेदार कोई नहीं है। सब लोगों को मिल-जुलकर एक साथ चलना चाहिए। उसमें कोई समुदाय कोई धर्म उसका जिम्मेदार नहीं है तमाम लोग है। कहा कि हिंदुस्तान एक ऐसा मुल्क है जिसकी गंगा-जमुनी तहजीब है और आपस में मिल जुलकर जब तक हम एक साथ नहीं चलेंगे जब तक इसके अंदर कामयाबी नहीं होगी।
क्या है सर्वेक्षण की रिपोर्ट
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक मुस्लिम महिलाओं की प्रजनन दर (1992-93) 4.4 थी जो 1998-99 में गिरकर 3.6 रह गई। 2005-06 में घटकर 3.6 रह गई और 2015-16 में 2.6 है। हिन्दुओं के मुकाबले मुस्लिम महिलाओं में प्रजनन दर हमेशा से ज्यादा रही है लेकिन अब ये अंतर घट रहा है। ये नई पीढ़ी में आ रही जागरुकता का असर है। वह शिक्षित होकर आगे बढ़ना चाहते हैं।
भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी का भी कहना है कि पिछले बीस सालों के आंकड़ों से स्पष्ट है कि मुस्लिम आबादी की रफ्तार बढ़ी नहीं घटी है। मुस्लिम विकास दर में तीस फीसद की कमी आई है जो कि सकारात्मक संकेत हैं।