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Population Control: जनसंख्या नियंत्रण नहीं बल्कि इसका प्रबंधन समय की मांग!

Population Control: वर्ष 2015-16 राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, भारत की कुल प्रजनन दर 2.2-2.5 फ़ीसदी पहुंच गई है।

Vikrant Nirmala Singh
Written By Vikrant Nirmala SinghPublished By Chitra Singh
Published on: 27 Jun 2021 7:52 PM IST
Population Control
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जनसंख्या (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया)

Population Control: जनसंख्या नियंत्रण कानून (Population Control) पर जब भी चर्चा होती है तो इसके पक्ष और विपक्ष में बहुत से तर्क गढ़े जाते हैं। प्रथम दृष्टया तो जनसंख्या नियंत्रण कानून (Population Control Law) को समय की जरूरत बताई जाती है, लेकिन इसके मसौदे पर राय नहीं बन पाती है।

देश के विभिन्न राजनीतिक दल भी इस विषय पर एक निश्चित वोट बैंक के हिसाब से प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। हाल ही में एक बार फिर इसकी चर्चा असम और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में चालू हो गई है। तो क्या सच में जनसंख्या नियंत्रण कानून की जरूरत है? स्पष्ट हां या ना के बीच में इस विषय पर स्वस्थ बहस की आवश्यकता है। किसी एक धर्म या मजहब के खिलाफ इस कानून को ना देखते हुए, इसके जरूरी हिस्सों पर चर्चा की जानी चाहिए।

जनसंख्या वृद्धि के संदर्भ में वैश्विक आंकड़े क्या हैं?

संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग ने 'द वर्ल्ड पापुलेशन प्रोस्पेक्ट्स 2017' नाम की एक रिपोर्ट में यह पूर्वानुमान जताया गया था कि वर्ष 2020 में दुनिया की कुल आबादी 8.6 बिलियन, वर्ष 2050 में 9.8 बिलियन और 21वीं सदी के अंत में 11.2 बिलियन पहुंच जाएगी। इस रिपोर्ट के आने के बाद से जनसंख्या वृद्धि (Population Growth) पर बड़ी वैश्विक चर्चा प्रारंभ हो गई।

जनसंख्या वृद्धि (कॉन्सेप्ट फोटो- सोशल मीडिया)

लेकिन एक रिपोर्ट और है जो थोड़ा विपरित बात करती है। वर्ष 2017 में प्रतिष्ठित पत्रिका 'द लांसेट' (The Lancet) ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि दुनिया की आधी आबादी वर्तमान में जन्म दर गिरावट के दौर से गुजर रही है, जो पूर्व की वृद्धि के बिल्कुल विपरीत है। इस पत्रिका ने लिखा है कि मौजूदा जनसंख्या को बनाए रखने के लिए बच्चों की संख्या पर्याप्त नहीं है और कई देशों में बड़ी गिरावट दर्ज की जा रही है। जिसमें प्रमुख रुप से ग्रीस, बुल्गारिया, हंगरी, इटली, दक्षिण कोरिया और जापान हैं। इन सभी देशों में टोटल फर्टिलिटी रेट 1.5 फ़ीसदी के आस-पास है। इस रिपोर्ट ने चिंता व्यक्त की है कि दुनिया के विकासशील देशों में भी कम प्रजनन दर की प्रवृत्ति दिखाई पड़ रही है। उदाहरण के लिए चीन और ब्राजील में भी टोटल फर्टिलिटी रेट 2% से कम है।

कुल प्रजनन दर (टोटल फर्टिलिटी रेट) क्या है?

कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate) एक सीमा रेखा है, जिसके अंदर अगर देश बना रहे तो जनसंख्या को लेकर बहुत चिंता करने की जरूरत नहीं होती है। यह बच्चों की वह संख्या है जो बच्चे पैदा करने की उम्र में एक महिला के पास औसतन होनी चाहिए। किसी भी देश की आबादी को स्थिर रखने के लिए कुल प्रजनन दर 2.1 फ़ीसदी होनी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत काम करने वाला जनसंख्या प्रभाग इसे प्रतिस्थापन स्तर की फर्टिलिटी रेट के रूप में देखता है। इसका मतलब क्या होता है कि यदि प्रतिस्थापन स्तर की फर्टिलिटी रेट एक लंबे समय तक बनी रहती है तो देश को जनसंख्या संतुलित करने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत नहीं है। अगर इस स्तर पर किसी देश की आबादी बनी रहे तो संभवत जनसंख्या वृद्धि नहीं होगी।

भारत की मौजूदा स्थिति क्या है?

वर्ष 2015-16 राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey) के अनुसार, भारत की कुल प्रजनन दर 2.2-2.5 फ़ीसदी पहुंच गई है। अधिकांश भारतीय राज्य तो कुल प्रजनन दर के मानक से काफी नीचे जा चुके हैं। हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, पंजाब, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश जैसे 13 राज्यों की टोटल फर्टिलिटी रेट 2 फ़ीसदी से नीचे है। आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार अगले दो दशकों भारत की जनसंख्या वृद्धि में तेज़ गिरावट देख जाएगी। दक्षिण और पश्चिम भारत के राज्यों में जनसंख्या वृद्धि में बड़ी कमी देखी जा रही है। यहां के राज्यों में कुल प्रजनन दर अब 1.4 से 1.6 के बीच पहुंच चुका है। इसका अर्थ है कि इन जगहों पर दो कम बच्चे अच्छे माने जा रहे हैं।

2011 की जनगणना और अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (Census and International Institute of Population Sciences) के शोध के अनुसार, वर्ष 2031 तक भारत में जनसंख्या की वृद्धि दर घटकर 1 फ़ीसदी हो जाएगी और 2041 यह 0.5 फीसद रह जाएगी। यानी भारत जनसंख्या वृद्धि के मामले में दुनिया के विकसित देशों के बराबर पहुंच जाएगा। अब जनसंख्या नियंत्रण के संदर्भ में एक और अहम पहलू समझते हैं। केरल और पंजाब में कुल प्रजनन दर 1.6 फ़ीसदी जबकि बिहार और उत्तर प्रदेश में कुल प्रजनन दर क्रमश 3.4 और 2.7 फ़ीसदी है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया)

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2014-15 में 10 वर्ष से ऊपर की आयु की केवल 22.8% महिलाएं ही बिहार में स्कूल गईं। उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा 32.9 फ़ीसदी था। इसके विपरीत केरल में 72.2 फ़ीसदी और पंजाब में 55.1 फीसदी महिलाओं ने स्कूली शिक्षा हासिल किया। यानी कि स्कूली शिक्षा प्राप्त नहीं करने वाली महिलाओं के औसतन 3.1 बच्चे होते हैं और शिक्षा प्राप्त करने वाली महिलाओं के बीच यह आंकड़ा 1.7 बच्चों का है। यह विश्लेषण हमें जनसंख्या नियंत्रण में शिक्षा के महत्व को समझाता है।

जनसंख्या नियंत्रण नहीं बल्कि प्रबंधन की जरूरत

आंकड़ों का अध्ययन करने पर हम यही निष्कर्ष निकालते हैं कि भारत को वर्तमान में जनसंख्या नियंत्रण से कहीं ज्यादा जरूरत जनसंख्या प्रबंधन की है। हर समस्या के लिए बढ़ती आबादी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है बल्कि इसके बेहतर प्रबंधन और उपयोग पर गंभीर चर्चा होनी चाहिए।

जनसंख्या नियंत्रण (कॉन्सेप्ट फोटो- सोशल मीडिया)

भारत में बेरोजगारी की समस्या (Unemployment Problem in India)

आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2021 से 2031 के बीच भारत की 97 करोड़ आबादी और 2031 से 2041 के बीच लगभग 42 करोड़ आबादी काम करने की ऊर्जा से भरपूर होगी। इसके लिए भारत को अगले दो दशकों में प्रतिवर्ष 1.5 करोड़ रोजगार की जरूरत पड़ेगी। लेकिन वर्तमान समय में भारत की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी है। रोजगार देने में असफल हो चुकी सरकारें अब जनसंख्या विस्फोट को अपनी असफलता का कारण बता रही हैं। भारतीय युवा रोजगार मांगने की जगह पर जनसंख्या नियंत्रण के संप्रदायिक पहलुओं को अधिक दिलचस्पी से चर्चा का केंद्र बना रहा है। लेकिन वह इस तथ्य से वाकिफ नहीं है कि आने वाली दो दशकों में भारत की जनसंख्या पूर्व में किए गए तमाम प्रयासों की वजह से बिल्कुल नियंत्रित स्थिति में होने जा रही है। सरकार अगर परिवार नियोजन की योजनाओं को ऐसे ही मजबूती के साथ चलाती रही तो जनसंख्या वृद्धि कोई समस्या नहीं है।

आज जरूर जनसंख्या प्रबंधन पर सवाल करने का है। सरकारों से यह पूछा जाना चाहिए कि वह आने वाले 20 वर्ष में प्रतिवर्ष डेढ़ करोड़ आबादी को रोजगार कैसे दिलाएंगे? उनसे नए रोजगार अवसरों का ब्लूप्रिंट मांगा जाना चाहिए। मौजूदा फर्टिलिटी रेट के आधार पर वर्ष 2041 तक भारत की युवा आबादी का अनुपात अपने सर्वोच्च स्तर पर पहुंच जाएगा और इसके बाद भारत के बुढ़े होने की शुरुआत होगी। वर्तमान प्रजनन दर के आधार पर दक्षिण भारत के राज्यों में बुढ़ापा 2030 से ही शुरू हो जाएगा। एक नागरिक के रूप में हमें और हमारी मुखिया के रूप में सरकार को यह समझना चाहिए कि अगर आबादी के बेहतर प्रबंधन पर ध्यान नहीं दिया गया तो भारत अपनी सबसे बड़ी युवा पीढ़ी को व्यर्थ कर देगा। जनसंख्या नियंत्रण कानून के बेवजह शोर-शराबे के बीच हमें अपनी आबादी के उचीत प्रबंधन की जरूरत है।

Chitra Singh

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