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आत्मनिर्भर खनन: नए अवसरों की तलाश

भारत के खनन क्षेत्र का भाग्य अपरिवर्तित रहा, क्योंकि यह दशकों तक प्रतिबंधित (कैप्टिव) खनन और अंतिम उपयोग प्रतिबंध की बाधाओं के अधीन रहा, जिसमें कोयला ब्लॉक पहले-आओ; पहले-पाओ के आधार पर आवंटित किए जाते थे।

Prahlad Joshi
Written By Prahlad JoshiPublished By Ashiki
Published on: 11 Aug 2021 11:21 PM IST
coal mining
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 खनन (Photo- Social Media)

जब भारत ने 1991 में नई औद्योगिक नीति को अपनाया, तो हम उदार, वैश्विक और बाजार संचालित आर्थिक विश्व व्यवस्था का हिस्सा बन गए और हमारे लगभग सभी व्यापार क्षेत्र स्वस्थ प्रतिस्पर्धा, नयी कंपनियों और नए निवेश के लिए खुल गए। हालाँकि, भारत का खनन क्षेत्र, नई औद्योगिक नीति से अलग और अप्रभावित रहा। बाद में, नई औद्योगिक नीति में सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित उद्योगों की संख्या, केवल दो (परमाणु ऊर्जा और रेलवे) तक सीमित कर दी गयी थी। नई औद्योगिक नीति में की गयी कल्पना के अनुरूप, खनन क्षेत्र में न तो कोई घरेलू या विदेशी निवेश आया और न ही वाणिज्यिक खनन के लिए कंपनियों की महत्वपूर्ण भागीदारी सामने आयी।

खान एवं खनिज विकास और विनियमन अधिनियम (एमएमडीआर अधिनियम) 1957, द्वारा खानों और सभी खनिजों के विकास और विनियमन के लिए कानूनी ढांचा निर्धारित किया गया था। अधिनियम में प्रतिबंध संबंधी कई प्रावधान थे। भारत के खनन क्षेत्र का भाग्य अपरिवर्तित रहा, क्योंकि यह दशकों तक प्रतिबंधित (कैप्टिव) खनन और अंतिम उपयोग प्रतिबंध की बाधाओं के अधीन रहा, जिसमें कोयला ब्लॉक पहले-आओ; पहले-पाओ के आधार पर आवंटित किए जाते थे। परिणामस्वरूप, कोयले के लिए दुनिया का चौथा सबसे बड़ा भंडार, अबरख और बॉक्साइट के लिए 5वां सबसे बड़ा तथा लौह अयस्क और मैंगनीज के लिए 7वां सबसे बड़ा भंडार होने के बावजूद, अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए हम मुख्य रूप से आयात पर निर्भर हैं। दशकों से आयात और निम्न-स्तर के उत्पादन पर हमारी निर्भरता, सत्ता में बैठे लोगों की नीति और नियामक विफलता को दर्शाती है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में हमारी सरकार ने 2015 में एमएमडीआर अधिनियम में संशोधन पेश किया और खनन उद्योग को पारदर्शी नीलामी व्यवस्था के तहत लाया गया। 2015 के संशोधन का एक अन्य महत्वपूर्ण सुधार था - खनन पट्टाधारकों के योगदान से खनन प्रभावित क्षेत्रों के कल्याण के लिए जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ) की स्थापना करना। इन सुधारों के जरिये खनिज ब्लॉकों को मनमाने ढंग से आवंटित करने की प्रथा समाप्त कर दी गयी और एक नई खनन व्यवस्था की शुरुआत हुई, जो सामाजिक रूप से जिम्मेदार और दीर्घकालिक थी। इस प्रकार भारत के खनन क्षेत्र में महत्वपूर्ण परिवर्तनों की श्रृंखला की शुरूआत हुई। सुधार एक सतत प्रक्रिया है और भारत के खनन क्षेत्र जैसे विशाल क्षेत्र के लिए, कोई भी सुधार लाना एक प्रक्रिया के तहत ही हो सकता है, जिसमें कई चरण, परामर्श और विचार शामिल हों। पिछले दो वर्षों में समय-समय पर किये गए सुधार; आर्थिक विकास और रोजगार सृजन में तेजी लाने तथा कोविड -19 महामारी के प्रतिकूल प्रभाव का मुकाबला करने के उद्देश्य से किये गए हैं।

पिछले 5 वर्षों में हमारे अनुभव और कई हितधारकों के साथ परामर्श व उनके सुझावों के आधार पर, हमारी सरकार द्वारा खनन क्षेत्र में कुछ बहुत महत्वपूर्ण संरचनात्मक सुधार किये गए। अधिनियम और संबंधित नियमों में संशोधन के जरिये खनन क्षेत्र में 'कारोबार में आसानी' को ध्यान में रखते हुए अधिकांश परिवर्तन किये गए हैं। प्रतिबंधित (कैप्टिव) और गैर- प्रतिबंधित (नॉन-कैप्टिव) खानों के बीच अंतर के परिणामस्वरूप खनन क्षेत्र में वांछित खनन कार्य नहीं हो पाया और इससे पर्यावरण के लिए खतरा भी पैदा हुआ। हाल के खनिज सुधारों द्वारा इस अंतर को समाप्त करने के लिए एमएमडीआर अधिनियम के प्रावधानों में संशोधन किया गया है। पट्टेदार को खुले बाजार में खनिजों की बिक्री की अनुमति देने से खनन उद्योग में उत्पादन और दक्षता बढ़ाने में मदद मिलेगी। दूसरे, इन सुधारों के माध्यम से, हमारा लक्ष्य उन सरकारी कंपनियों के खनिज ब्लॉकों को मुक्त करना है, जिन्हें अभी तक विकसित नहीं किया गया है। इस संशोधन के बाद, राज्य सरकारों द्वारा कई खनिज ब्लॉकों को आरक्षित की श्रेणी से हटाया जायेगा और उन्हें नीलाम किया जाएगा। 2021 के संशोधन के माध्यम से किया गया एक अन्य महत्वपूर्ण सुधार है - एमएमडीआर अधिनियम की धारा 10 (ए) (2) (बी) के तहत विरासत के मुद्दों को समाप्त करना। इस सुधार से लगभग 500 ब्लॉक नीलामी व्यवस्था के तहत आ जायेंगे, जो अब तक लंबित मामलों के कारण बंद पड़े थे। खनन में आत्म-निर्भर बनने के लिए, हमें अपनी खनन प्रथाओं और अन्वेषण गतिविधियों में पर्याप्त सुधार लाकर अपना आयात कम करना होगा और घरेलू उत्पादन बढ़ाना होगा।

हमारी सरकार ने बार-बार इस बात पर बल दिया है कि हमारी समृद्ध खनिज सम्पदा हमारे औद्योगिक, आर्थिक एवं वाणिज्यिक विकास का केंद्र बिंदु हैI पिछले कुछ दशकों से खनिजों की वैश्विक मांग में लगातार वृद्धि हुई है और नवीनतम प्रौद्योगिकियों की भारी मांग के चलते इसमें और बढ़ोतरी होने की सम्भावना हैI अन्य क्षेत्रों के साथ-साथ उपभोक्ता उत्पादों, लोक अभियांत्रिकी (सिविल इंजीनियरिंग), रक्षा क्षेत्र, परिवहन और ऊर्जा (बिजली) उत्पादन के बुनियादी ढाँचे की जरूरतों को पूरा करने के लिए खनिजों की आपूर्ति को निरंतर बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बन गयी हैI खनिजों की बढती मांग को देखते हुए अब बहुत आवश्यक हो गया है कि देश में खनिजों के उत्पादन को बढ़ाया जाए और इसके लिए वर्तमान में जारी अथवा अर्ध-विकसित क्षेत्रों में उत्खनन किए जाएंI खनन को बढ़ाने के लिए हमारी सरकार ने 2015 में राष्ट्रीय खनन अन्वेषण न्यास (एनएमईटी) की स्थापना की थी और इस पहल को आगे बढ़ाते हुए हमने एनएमईटी को अब एक स्वायत्त शासी निकाय बना दिया हैI मान्यताप्राप्त निजी एजेंसियों को अनुमति दे दी है कि वे इस वर्ष किए गए खनन सुधारों के अनुरूप खनन कार्य शुरू करें I एनएमईटी के एक स्वायत्त शासी निकाय बनने के बाद भारत में खनन कार्यों में बहुत वृद्धि होगी और इसकी कार्य-प्रणाली में तेजी आएगी I इससे हमें अपनी भूगर्भीय-क्षमता को हासिल करने और खनन के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप काम करने में सहायता मिलेगी I 2021 के खनन सुधारों के तहत एक और बहुत महत्वपूर्ण संशोधन खनिजों के एक नए समूह का गठन है, जिसे भूस्तरीय (सतही) खनिज कहा जाता है- जिसमें चूना पत्थर, लौह अयस्क, बॉक्साइट और कोयला एवं लिग्नाइट शामिल हैं। खनिजों के इस वर्ग के लिए, खनन पट्टे के सन्दर्भ में अन्वेषण मानकों की आवश्यकताओं को युक्तिसंगत बनाते हुए इसे जी3 स्तर तक और समग्र पट्टे के लिए जी4 स्तर तक कम किया गया है तथा नीलामी व्यवस्था को आसान बनाकर; नीलामी में अधिक ब्लॉकों की शामिल करने की सुविधा प्रदान की गई है ।

जिन सुधारों का उल्लेख किया गया है, वे एमएमडीआर (संशोधन) अधिनियम, 2021 द्वारा लाए गए क्रांतिकारी परिवर्तनों की झलक भर हैं और हम भारत के खनन उद्योग और सभी खनिज समृद्ध राज्यों में पहले से हो रहे सकारात्मक विकास को देख रहे हैं। जिन खदानों में काम नहीं हो रहा है, उनके लिए सम्बन्धित राज्य पुन: आवंटन की प्रक्रिया प्रारम्भ कर कर रहे हैं, और सार्वजनिक उपक्रमों की उन खदानों, जिनमें अभी तक उत्पादन शुरू नहीं किया गया है, की भी राज्य सरकारों द्वारा नीलामी की जा रही है। इन कानूनी संशोधनों के बाद बड़ी संख्या में ब्लॉकों को नीलामी प्रक्रिया में शामिल करने में मदद मिली है और हमने चालू वर्ष में खनन क्षेत्र का बेहतरीन प्रदर्शन देखा है। केंद्र सरकार के निरंतर प्रयासों और राज्य सरकारों के सहयोग के कारण, यह गर्व की बात है कि 17 ब्लॉकों की नीलामी की गई है, 27 नए एनआईटी जारी किए गए हैं और आने वाले महीनों के लिए 103 एनआईटी हेतु प्रक्रिया चालू कर दी गई है।

प्रधानमंत्री श्री मोदी के सक्रिय नेतृत्व में सरकार बनने के बाद से हमने हमेशा ही सहकारी संघवाद और सबका-साथ, सबका-विकास के आदर्श वाक्य का पालन किया है। ये सुधार, केंद्र और खनिज-संपन्न राज्यों के बीच मजबूत सहकारी संघवाद के प्रतीक हैं और राज्यों ने गर्मजोशी से इन खनन सुधारों का स्वागत किया है। ऊर्जा क्षेत्र की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने और भविष्य में खनिजों की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए, भारत को स्थायी और सामाजिक रूप से उत्तरदायित्व को ध्यान में रखते हुए अन्वेषण और उत्पादन दोनों को बढ़ाने की जरूरत है। एमएमडीआर अधिनियम, 1957, एमईएमसी नियम और खनिज (नीलामी) नियम में संशोधन के जरिये हमारी सरकार द्वारा खनन क्षेत्र में सुधार किये गए हैं। पिछले कुछ महीनों में नीलामी प्रक्रिया का सफल कार्यान्वयन हुआ है और इसके सकारात्मक परिणाम सामने आये हैं। यह उस यात्रा की शुरुआत है, जिसे भारत इन सुधारों के साथ प्रधानमंत्री मोदी के आत्म-निर्भर खनन क्षेत्र और आत्म-निर्भर भारत की दिशा में शुरू कर रहा है।

(केंद्रीय कोयला, खान और संसदीय कार्य मंत्री श्री प्रहलाद जोशी)



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