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प्रवासी भारतीय और विश्व संस्कृति
इस समय दुनिया के देशों में भारतीय प्रवासियों की संख्या लगभग सवा तीन करोड़ है। इतनी आबादी तो ज्यादातर देशों की भी नहीं है। भारतीय पहले तो मोरिशस, फिजी, सूरिनाम और गयाना- जैसे देशों में ले जाकर इसलिए बसाए गए थे कि क्योंकि इन देशों में अंग्रेज शासकों को मजदूरों की जरुरत थी। इन सभी देशों में हमारे मजदूरों के बेटे, पोते और पड़पोते आज प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति हैं।
Pravasi Bharatiya Divas: 9 जनवरी को भारत में भारतीय प्रवासी दिवस (Bharatiya Pravasi Divas) मनाया जाता है। लेकिन आज इसे लेकर देश में ज्यादा हलचल नहीं दिखाई दी, क्योंकि एक तो नेता लोग चुनाव-अभियान में व्यस्त हैं और दूसरा कोरोना महामारी (Corona Virus Mahamari) की वजह से पिछले साल भी प्रवासी सम्मेलन (Pravasi Sammelan) नहीं हो पाया था। इस महान संस्था की नींव प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) ने 2003 में रखी थी। प्रसिद्ध विधिवेत्ता और समाजसेवी डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी और राजदूत जगदीश शर्मा के प्रयत्नों से इस संस्था की स्थापना हुई थी। इस काम को बालेश्वर प्रसाद अग्रवाल की स्वायत्त संस्था अन्तरराष्ट्रीय सहयोग परिषद पहले से कर रही थी। लेकिन उसे बड़ा और व्यापक रुप देने में अटलजी ने यह उत्तम पहल की थी।
इस समय दुनिया के देशों में भारतीय प्रवासियों (Bharatiya Pravasi Number) की संख्या लगभग सवा तीन करोड़ है। इतनी आबादी तो ज्यादातर देशों की भी नहीं है। ये भारतीय पहले तो मोरिशस, फिजी, सूरिनाम और गयाना- जैसे देशों में ले जाकर इसलिए बसाए गए थे कि क्योंकि इन देशों में अंग्रेज शासकों को मजदूरों की जरुरत थी। इन सभी देशों में हमारे मजदूरों के बेटे, पोते और पड़पोते आज प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति हैं। इनके अलावा दर्जनों देशों में पिछले 100 वर्षों में हजारों-लाखों भारतीय शिक्षा, व्यापार, नौकरी और जीवन-यापन के लिए जाकर बसते रहे हैं। कुछ लोग वहीं पैदा हुए हैं और कुछ लोग यहां से जाकर वहां के नागरिक बन गए हैं।
ऐसे सभी प्रवासियों की संख्या सवा तीन करोड़ तो हो ही गई है, इसके साथ-साथ दर्जनों देशों में वे अल्पसंख्या में रहते हुए भी राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री, सांसद आदि पदों पर शोभयमान हो रहे हैं। अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस (Kamala Harris) हैं। ये लोग वहां रहकर ऐसा जीवन जीते हैं, जिसका अनुकरण सभी विदेशी लोग करना चाहते हैं।
विदेशियों के मुंह भारतीयों की चर्चा
भारतीयों के पारिवारिक जीवन, उनकी सहजता, सादगी, परिश्रम, ईमानदारी आदि की चर्चा मैंने विदेशियों के मुंह से कई बार सुनी है। विदेशों में रहने वाले भारतीयों में आप जाति, मजहब, भाषा और ऊंच-नीच का भेदभाव भी नहीं देख पाएंगे। दुनिया का कोई महाद्वीप ऐसा नहीं है, जहां भारतीयों को आप नहीं पाएंगे। अब से 50-55 साल पहले न्यूयार्क जैसे बड़े शहर में किसी से हिंदी में बात करने के लिए मैं तरस जाता था लेकिन अब जब भी मैं दुबई जाता हूं तो मुझे लगता है कि मैं किसी छोटे-मोटे भारत में ही आ गया हूं। अमेरिका में इस समय लगभग 45 लाख भारतीय मूल के लोग रहते हैं।
लगभग सभी प्रवासी भारतीय उन देशों के आम लोगों से अधिक संपन्न, सुशिक्षित और सुखी हैं। उन्होंने भारत को इस साल साढ़े छह लाख करोड़ रु. भेजे हैं। अपने प्रवासियों से धन प्राप्त करनेवाले देशों में भारत का नाम सबसे ऊपर है और ऐसा पिछले 14 साल से हो रहा है। भारतीयों की खूबी यह है कि विदेशी जीवन-पद्धतियों से ताल-मेल बिठाने के साथ-साथ वे भारतीय मूल्यमानों को भी अपने दैनिक आचरण में गूंथे रखते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि 21 वीं सदी के पूरे होते-होते सारी दुनिया में भारतीय संस्कृति (Bhartiya Sanskriti) विश्व-संस्कृति (Vishwa Sanskriti) के तौर पर स्वीकृत हो जाए।
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