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प्रवासी सम्मेलन- भारत की जान बसती भारतवंशियों में

Pravasi Sammelan: पिछले दो सालों से कोरोना के कारण आयोजित नहीं हो पा रहा प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन आगामी 8-10 जनवरी को इंदौर में होने जा रहा है।

RK Sinha
Written By RK Sinha
Published on: 6 Jan 2023 1:06 PM GMT
Pravasi Bharatiya Divas Sammelan
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प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन। (Social Media)

Pravasi Sammelan: पिछले दो सालों से कोरोना के कारण आयोजित नहीं हो पा रहा प्रवासी भारतीय दिवस (पीबीडी) सम्मेलन आगामी 8-10 जनवरी को इंदौर में होने जा रहा है। यह सुखद संयोग ही है। प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन के अंतिम दिन तीन देशों के राष्ट्रपति एक साथ इंदौर में मौजूद रहेंगे। भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के साथ सूरीनाम के राष्ट्रपति चंद्रिका प्रसाद संतोखी और गुयाना के राष्ट्रपति मोहम्मद इरफान अली भी अतिथि के रूप में रहेंगे।

8 जनवरी से शुरू होगा 17वें प्रवासी भारतीय दिवस का आयोजन

भारत की राष्ट्रपति दोनों राष्ट्राध्यक्षों के साथ अलग-अलग मुलाकातें भी करेंगी। 17वें प्रवासी भारतीय दिवस के आयोजन का सिलसिला 8 जनवरी से शुरू होगा। इस दिन अतिथि के रूप में आस्ट्रेलिया की सांसद जेनेटा मेस्क्रेंहेंस मंच पर देश के विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ मौजूद रहेंगी। दूसरे दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, दोनों प्रवासी विदेशी राष्ट्राध्यक्षों के साथ मंच पर मौजूद रहेंगे। यह सच में गर्व का विषय है है कि गुयाना और सूरीनाम के राष्ट्रपति भी प्रवासी सम्मेलन में शामिल रहेंगे। इन दोनों देशों में 150 साल से भी पहले भारतीय गिरमिटिया मजदूर के रूप में चले गए थे।

गिरमिटिया मज़दूर

ब्रिटेन को 1840 के दशक में गुलामी प्रथा का अंत होने के बाद श्रमिकों की जरूरत पड़ी जिसके बाद भारत से मजदूर बाहर के देशों में जाने लगे। भारत के बाहर जाने वाला प्रत्येक भारतीय अपने साथ रामचरित मानस,हनुमान चालीसा आदि के रूप में एक छोटा भारत ले कर जाता था। इसी तरह भारतवंशी अपने साथ तुलसी, रामायण, भाषा, लोकगीत खानपान एवं परंपराओं के रूप में भारत की संस्कृति ले कर गए थे। उन्हीं ही मजदूरों की संतानों के कारण फीजी, त्रिनिडाड, गयाना, सूरीनाम और मारीशस आदि लघु भारत के रूप में उभरे। इन देशों में ले जाए गए मजदूरों से गन्ने के खेतों में काम करवाया जाता था। इन श्रमिकों ने कमाल की जीवटता दिखाई और घोर परेशानियों से दो-चार होते हुए अपने लिए जगह बनाई। इन भारतीय श्रमिकों ने लंबी समुद्री यात्राओं के दौरान अनेक कठिनाइयों को झेला। अनेक ने अपनी जानें भी गवाई I अपने देश से हजारों किलोमीटर दूर जाकर बसने के बावजूद इन्होंने अपने संस्कारों को छोड़ा नहीं। इनके लिए अपना धर्म, भाषा और संस्कार बेहद खास थे।

आज भी भारत के एंबेसडर हैं प्रवासी भारतीय

प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन का आयोजन बहुत जरूरी है। भारत उन भारतीयों से दूर नहीं जा सकता जो अपनी जन्मभूमि या पुरखों की भूमि को छोड़कर अन्य जगहों में बस गए हैं। भारत से बाहर जाकर बसे भारतवंशी और प्रवासी भारतीय (एनआरआई) देश के स्वतः स्फूर्त ब्रांड एंबेसेडर हैं। यह कहना होगा कि देश में नरेन्द्र मोदी सरकार के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद विदेश नीति के केन्द्र में आ गए हैं विदेशों में बसे भारतीय। मोदी सिडनी से लेकर न्यूयार्क और नैरोबी से लेकर दुबई जिधर भी गए वे वहां पर रहने वाले भारतीय मूल के लोगों से गर्मजोशी से मिले। उनसे पहले यह कतई नहीं होता था। वैसे भारतवंशियों से कोई रिश्ता न रखने की यह नीति पंडित जवाहरलाल नेहरू के दौर से ही चली आ रही थी। कहते हैं कि नेहरू जी ने संसद में 1957 में यहाँ तक कह दिया था कि देश से बाहर जाकर बसे भारतीयों का हमारे से कोई संबंध नहीं है। वे जिन देशों में जाकर बसे हैं, उनके प्रति ही अपनी निष्ठा दिखाएं। यानी कि उन्होंने विदेशों में उड़ते अपने पतंग की डोर स्वयं ही काट दी थी। उनके इस बडबोलेपन से विपक्ष ही नहीं तमाम राष्ट्रवादी कांग्रेसी भी आहत हुए थे। उन्हें ये सब कहने की आवश्यकता तक नहीं थी। जो भारतीय किसी अन्य देश में बस भी गया है, तब भी वह भावनात्मक स्तर पर तो भारतीय ही रहता है जिंदगीभर।

अवतार सिंह सोहल

नेहरू जी की सोच के जवाब में मैं यहां पर अवतार सिंह सोहल तारी का अवश्य जिक्र करूंगा। सारी दुनिया के हॉकी प्रेमी अवतार सिंह सोहल तारी का नाम बड़े सम्मान से लेते हैं। उन्हें फिलवक्त संसार का महानतम सिख खिलाड़ी माना जाता है। उन्होंने 1960, 1964, 1968 और 1972 के ओलंपिक खेलों के हॉकी मुकाबलों में केन्या की नुमाइंदगी की है। फुल बैक की पोजीशन पर खेलने वाले तारी तीन ओलपिंक खेलों में केन्या टीम के कप्तान थे। वे लगातार भारत आते रहते हैं। वे कहते हैं कि मैं पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय हॉकी संघ के पदाधिकारी के रूप में घूमता हूं। मैं हर जगह भारतवंशियों को भारतीय टीम को सपोर्ट करते हुए ही देखता हूं। वे उस देश की टीम को सपोर्ट नहीं करते जिधर वे या उनके परिवार लंबे समय से बसे हुए हैं। मुझे लगता है कि भारतवंशियों के लिए भारत एक भौगोलिक एन्टिटी ( वास्तविकता) ही नहीं है। ये समझना होगा।

अगर बात सिखों की करूं तो भारत हमारे लिए गुरुघर है। इसलिए इसके प्रति हमारी अलग तरह की निष्ठा रहती ही है। शेष भारतवंशियों के संबंध में भी कमोबेश यही कहा जा सकता है। इसलिए वे केन्या, कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन वगैरह में बसने के बाद भी अपने को भारत से दूर नहीं कर पाते। इसका उदाहरण हमें इंगलैंड, आस्ट्रेलिया या दक्षिण अफ्रीका में देखने को मिलता है। इन देशों में बसे भारतवंशियों का समर्थन स्थानीय टीम के साथ नहीं होता। हो सकता है कि आने वाले 50-60 वर्षों के बाद भारतवंशियों की सोच बदले। हालांकि वहां बसे भारतीय उन देशों के निर्माण में अपना अहम रोल निभा रहे हैं।

खिलाड़ी प्रवासियों को भी बुलायें

खैर,प्रवासी सम्मेलन में उन भारतवंशियों को भी आमंत्रित किया जाना चाहिए जो खेल,बिजनेस, शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में श्रेष्ठ कार्य कर रहे हैं। दुनिया के चोटी के भारतवंशी जैसे विश्व विख्यात फीजी के गॉल्फर विजय सिंह तथा फ्रांस की फुटबॉल टीम के खिलाड़ी रहे विकास धुरासू जैसे प्रख्यात प्रवासी भारतीय भी प्रवासी सम्मेलन में आते तो अच्छा होता। काश! कभी सलमान रश्दी को बुलाया गया होता ? मुझे नहीं लगता कि कभी महान लेखक वी.एस.नॉयपाल को बुलाने के बारे में किसी ने सोचा हो? साउथ अफ्रीका से नेल्सन मंडेला के साथी मैक महाराज और उन पर फिल्म बनाने वाले अनंत सिंह के भी सम्मेलन में आने की कोई खबर नहीं है। प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन के दौरान सात समंदर पार बसे भारतीयों के मसलों को हल करने पर तो विचार होगा ही। ख्याति प्राप्त प्रवासियों का उचित सम्मान भी होना चाहिये I

Deepak Kumar

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