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राष्ट्रपति और विपश्यना

रामनाथ कोविंद की सादगी, विनम्रता और सज्जनता मुझे हमेशा प्रभावित करती रही थी।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Written By Dr. Ved Pratap VaidikPublished By Ragini Sinha
Published on: 24 Oct 2021 11:28 AM IST
President Ramnath Kovind profile
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राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (social media) 

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कल पटना में कहा कि लोग यदि विपस्सना करें तो उनकी कार्यक्षमता और प्रेम में वृद्धि होगी। राजनेताओं के मुख से ऐसे मुद्दों पर शायद ही कभी कुछ बोल निकलते हैं। उनकी जिंदगी वोट और नोट का झांझ कूटते-कूटते ही निकल जाती है। रामनाथ कोविंद मेरे पुराने मित्र हैं। उनकी सादगी, विनम्रता और सज्जनता मुझे हमेशा प्रभावित करती रही थी। उसका रहस्य अब उन्होंने सबके सामने उजागर कर दिया है। वह है— विपस्सना, जिसका मूल संस्कृत नाम है- विपश्यना याने विशेष तरीके से देखना। किसको देखना ? खुद को देखना ! दूसरों को तो हम देखते ही रहते हैं । लेकिन खुद को कभी नहीं देखते। हाँ, कांच के आईने में अपनी सूरत जरुर रोज़ देख लेते हैं। सूरत तो हम देखते हैं लेकिन सूरत से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है सीरत याने स्वभाव! अपने स्वभाव को देखने की कला है- विपश्यना !

यह कला गौतम बुद्ध ने दुनिया को सिखाई है। बुद्ध के पहले भी ध्यान की कई विधियां भारत में प्रचलित थीं। उनमें से कई विधियों का अभ्यास बचपन में मैं किया करता था । लेकिन आचार्य सत्यनाराणजी गोयंका ने यह चमत्कारी विधि मुझे सिखाई लगभग 21 साल पहले। गोयंकाजी मुझे अपने साथ नेपाल ले गए और बोले, 'आपको अब दस दिन मेरी कैद में रहना पड़ेगा'। उनके कांठमांडो आश्रम में दर्जनों देशों के सैकड़ों लोग विपस्सना सीखने आए हुए थे। मैंने उन दस दिनों में मौन रख, एक समय भोजन किया और लगभग दस-दस घंटे रोज विपस्सना की।

जब मैं दिल्ली लौटा तो मेरी पत्नी डा. वेदवती ने कहा कि आप बिल्कुल बदले हुए इंसान लग रहे हैं। यही बात उस आश्रम में मुझे लेने आए मेरे मित्र और नेपाल के विदेश मंत्री चक्र बास्तोला ने कही। तीसरे दिन जब प्रधानमंत्री गिरिजाप्रसाद कोइराला से भेंट हुई तो उन्होंने बताया कि खुद नेपाल नरेश वीरेंद्र विक्रम शाह उस आश्रम में गए थे । वे स्वयं भी वहां रहना चाहते थे तो उन्होंने वही कमरा खुलवाकर देखा, जिसमें मैं दस दिन रहा था। राजा और रंक, कोई भी हो, विपश्यना मनुष्य को उच्चतर मनुष्य बना देती है। ऐसा क्या है, उसमें ? वह सबसे सरल साधना है। आपको कुछ नहीं करना है। बस, आँख बंद करके अपने नथुनों को देखते रहिए। अपनी आने और जानेवाली सांस को महसूस करते रहिए। आपके चेतन और अचेतन और अवचेतन मन की सारी गांठें अपने आप खुलती चली जाएंगी। आप भारहीन हो जाएंगे। आपका मन आजाद हो जाएगा। आपको लगेगा कि आप सदेह मोक्ष को प्राप्त हो गए हैं।

आचार्य गोयंका मुझे विस्तार से बताते रहते थे कि उन्हें बर्मा में रहते हुए विपश्यना की उपलब्धि अचानक कैसे हुई है। अब उनकी कृपा से ध्यान की यह पद्धति लगभग 100 देशों में फैल गई है। लाखों लोग इसका लाभ ले रहे हैं। उन्होंने मुंबई में एक अत्यंत भव्य पेगोडा 2009 में बनवाया था, जिसके उद्घाटन समारोह में मुझे भी निमंत्रित किया था। उनके परिनिर्वाण के कुछ दिन पहले मुंबई में उनके दर्शन का दुर्लभ सौभाग्य भी मुझे मिला था। मैं तो अपने मित्र भाई रामनाथजी से कहूंगा कि राष्ट्रपति पद की जिम्मेदारियों से मुक्त होने के बाद यदि वे अपना शेष जीवन विपश्यना के प्रसार में ही खपा दें तो उनका योगदान मानवता की सेवा के लिए अतुलनीय बन जाएगा।



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Ragini Sinha

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