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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी : महात्मा गांधी के आदर्शों को आत्मसात करने वाले व्यक्ति

Prime Minister Narendra Modi : मैंने अपने लंबे जीवनकाल में बहुत सारे नेताओं को जाना है, लेकिन नरेन्द्र भाई के साथ मेरा जुड़ाव असाधारण है। इसकी शुरुआत वर्ष 1975 के आपातकाल के चुनौतीपूर्ण दौर में हुई थी।

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Newstrack Network
Published on: 3 Oct 2024 10:45 PM IST
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी : महात्मा गांधी के आदर्शों को आत्मसात करने वाले व्यक्ति
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सुमित्रा गांधी कुलकर्णी

मैंने अप्रैल 2024 में मतदान केंद्र पर जाकर अपना वोट डाला और जब जून 2024 में नरेन्द्र मोदी तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री बने तो मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। महात्मा गांधी या बापूजी जैसा कि मैं उन्हें बुलाती हूं, वह मेरे दादा थे। मैं उनके साथ 19 वर्ष की आयु तक रही, अब मैं 95 वर्ष की हो गई हूं और मुझे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की तुलना गांधीजी से करने और अपने विचारों को कलमबद्ध करने की आवश्यकता महसूस हो रही है। आने वाली पीढ़ियां गांधीजी के परिवार के उस सदस्य के विचार जानना चाहेंगी, जिन्हें वयस्क होने पर इन दोनों व्यक्तियों को जानने का करीबी से सौभाग्य प्राप्त हुआ।

मैंने अपने लंबे जीवनकाल में बहुत सारे नेताओं को जाना है, लेकिन नरेन्द्र भाई के साथ मेरा जुड़ाव असाधारण है। इसकी शुरुआत वर्ष 1975 के आपातकाल के चुनौतीपूर्ण दौर में हुई थी। हालांकि मुझे वास्तविक रूप से वह क्षण याद नहीं है, लेकिन नरेन्द्र भाई उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के एक युवा और ऊर्जस्वी प्रचारक थे। 1970 के दशक में अलगाववाद देश के ताने-बाने को खा रहा था। गुजरात से राज्यसभा सदस्य के रूप में पाकिस्तान से भारी घुसपैठ के कारण सीमावर्ती जिलों में हो रहे जनसांख्यिकीय परिवर्तन से मैं बहुत चिंतित थी। असम में यह घुसपैठ बहुत ज़्यादा थी। उस समय मेरी पार्टी कांग्रेस के किसी भी नेता ने इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया था। लेकिन मुझे अच्छी तरह याद है कि किस प्रकार नरेन्द्र भाई उस समय कम उम्र में भी ऐसे मामलों को गंभीरता से लेते थे। वह राष्ट्रीय मुद्दों के प्रति स्पष्ट रूप से प्रतिबद्ध थे और तत्कालीन राजनीतिक परिदृश्य ने उनका ध्यान इस मुद्दे से विचलित नहीं किया।


वह उन दिनों भी ग्रामीण महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों- व्यक्तिगत स्वच्छता; स्वच्छ पेयजल; प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल आदि से पूरी तरह परिचित थे। उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद अनुकरणीय साहस का परिचय दिया और स्वतंत्रता दिवस के अपने संबोधन में राष्ट्रीय स्वच्छता की आवश्यकता को स्पष्ट किया। उन्होंने स्वच्छ भारत अभियान की नींव रखी, जिससे स्वच्छता में काफी सुधार हुआ और इसके साथ ही पूरे देश महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा भी बढ़ोतरी हुई। मेरे दादाजी 'जन आंदोलन' में विश्वास करते थे, क्योंकि लोगों के इस प्रकार के आंदोलन स्थायी सामाजिक परिवर्तन का आधार है। नरेन्द्र भाई का 'सबका' शब्द पर अटूट विश्वास है, जैसे कि सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और विकसित भारत। ये उनके लिए महज चर्चा करने वाले शब्द नहीं हैं, बल्कि उनके प्रेरक तत्व हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान उनका 'मानवता सर्वप्रथम' युक्त नेतृत्व देश की सीमाओं तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि इसने संपूर्ण विश्व को अपने दायरे में समाहित कर लिया। एक बार फिर उन्होंने धारा के विपरीत जाकर हमें अनुच्छेद 370 की घुटन भरी स्थिति से मुक्त किया। वह व्यवस्थित रूप से उस एजेंडे को पूरा कर रहे हैं, जिसे आजादी हासिल होने के बाद पूरा किया जाना चाहिए था। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) इसका एक उदाहरण है।

सनातन धर्म की इस महान धरा पर अनेक गुरुओं- शिरडी के साईं नाथ, श्री रमण महर्षि आदि की आध्यात्मिक शक्ति से राजनीतिक स्वतंत्रता हासिल हुई और गांधीजी इसका नेतृत्व करने के साधन बने। यह कोई संयोग नहीं है कि दशकों बाद नरेन्द्र भाई हमें औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त करने का माध्यम बन गए हैं। यह स्वतंत्रता का दूसरा संघर्ष है। मेरे दादाजी हमेशा कहा करते थे, ‘आप विश्व में जो परिवर्तन देखना चाहते हैं, वह पहले खुद से करें।’ एक आरएसएस कार्यकर्ता से लेकर भारत के प्रधानमंत्री तक नरेन्द्र भाई की यात्रा को करीब से देखने के बाद मैं बिना किसी दुविधा के कह सकती हूं कि नरेन्द्र मोदी उस बदलाव का साकार रूप हैं, जिसकी हम सभी अपने प्रिय देश में कामना करते रहे हैं।


यद्यपि मैं संतों की जीवनी में विश्वास नहीं करती हूं, लेकिन मुझे निष्पक्ष रहना चाहिए। बापूजी और नरेन्द्र भाई के बीच सबसे बड़ी समानता यह है कि उनका सार्वजनिक जीवन सनातन धर्म के आध्यात्मिक मूल से जुड़ा है। वे दोनों- स्थितप्रज्ञ हैं और प्रशंसा तथा आलोचना दोनों से ही उनका ध्यान अपने लक्ष्य के प्रति कभी नहीं डगमगाया है। ऐसा ही व्यक्ति जानता है कि अंततः सत्य की जीत होती है और इसलिए उसके रास्ते में धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करने में कोई भी बाधा नहीं आती है। यह नरेन्द्र भाई की अपने राजनीतिक विरोधियों के लगातार हमलों के खिलाफ खामोशी की विशेषता को दर्शाता है। यह एक राजऋषि का लक्षण है।

हमारे शास्त्रों के अनुसार धर्म की पुनर्स्थापना से पहले हमेशा ही मंथन हुआ है और इस मंथन से पहली बार नकारात्मकता ही उत्पन्न होती है और ये नकारात्मक शक्तियां सत्य का विरोध करती हैं। अपने दैनिक जीवन में हम इस प्रकार की नकारात्मकता के साक्षी बनते हैं। राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए राष्ट्रीय हितों से भी समझौता किया जाता है। ऐसी परिस्थितियों में गरीबों और राष्ट्र हितों को सर्वोपरि रखने के लिए एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत होती है, जिसकी सत्ता में पूर्णतः कोई रुचि न हो और जो भ्रष्टाचार से परे हो। इसलिए यह स्वीकार करना हमारा कर्तव्य है कि भले ही नरेन्द्र भाई ने जो प्रयास किए हैं, हम उन परिणामों का आनंद ले रहे हैं, लेकिन उन्हें उचित चुनावी जनादेश नहीं मिला, मगर वे इससे अप्रभावित हैं और चुपचाप अपना कर्तव्य निभा रहे हैं। मैं बिना किसी हिचकिचाहट के यह कहना चाहती हूं कि अगर आज बापूजी आज जीवित होते, तो वह नरेन्द्र भाई के बहुत बड़े समर्थक होते। बापूजी सबसे पहले वह व्यक्ति होते जो हमें उनके नाम का दुरुपयोग करने वाले बारे में चेतावनी देते और जिन्होंने अपने राजनीतिक लाभ के लिए हमें आपस में बांटने के लिए इसका दुरुपयोग करना अपने जीवन का मिशन बना लिया है।

मेरे दादाजी और नरेंद्र भाई के कई आलोचकों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि नरेन्द्र भाई ने वास्तव में आधुनिक भारत के विकास एजेंडे में गांधीजी के आदर्शों को एकीकृत करके उन्हें फिर से जीवित किया है। राज्य की नीति के निर्देशक सिद्धांत देश की नीति बन गए हैं। ऐसा करके उन्होंने यह सुनिश्चित किया है कि गांधीजी की विरासत हमारी राष्ट्रीय सोच में प्रबल और निरंतर रूप से समाहित होती रहे।

मेरे दादाजी की तरह नरेन्द्र भाई को भी जन आकांक्षाओं की कसौटी पर खरा उतरना होगा। लेकिन जैसा कि भगवान कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया था कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अपना कर्म करो और उसका परिणाम सत्य पर छोड़ दो- जिसकी अंततः विजय होगी। मुझे विश्वास है कि इतिहास अंततः बापूजी और नरेन्द्र भाई दोनों के साथ न्याय करेगा।

(लेखिका महात्मा गांधी की पोती हैं)



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Rajnish Verma

Rajnish Verma

Content Writer

वर्तमान में न्यूज ट्रैक के साथ सफर जारी है। बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की। मैने अपने पत्रकारिता सफर की शुरुआत इंडिया एलाइव मैगजीन के साथ की। इसके बाद अमृत प्रभात, कैनविज टाइम्स, श्री टाइम्स अखबार में कई साल अपनी सेवाएं दी। इसके बाद न्यूज टाइम्स वेब पोर्टल, पाक्षिक मैगजीन के साथ सफर जारी रहा। विद्या भारती प्रचार विभाग के लिए मीडिया कोआर्डीनेटर के रूप में लगभग तीन साल सेवाएं दीं। पत्रकारिता में लगभग 12 साल का अनुभव है। राजनीति, क्राइम, हेल्थ और समाज से जुड़े मुद्दों पर खास दिलचस्पी है।

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