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PM Narendra Modi: मोदी लोकतंत्र-प्रहरी के साथ, रहे ! निहाल हुए हम सब !!

PM Narendra Modi: मेरे विषय में मोदी जी के उद्गार आकाशवाणी-दूरदर्शन के रिकॉर्ड में दर्ज हैं। इतनी श्लाघा ! मैं तो सुनकर कुप्पा हो गया था। (वीडियो सुनें।) प्रधानमंत्री ने उस सभा में कहा : “मैं बरसों से विक्रम को जानता हूं, सालों से जानता हूं। कितना जुल्म हुआ था विक्रम पर ? बहुत कम लोगों को शायद मालूम होगा। उसका गुनाह यह था कि वह पत्रकार था।

K Vikram Rao
Written By K Vikram Rao
Published on: 16 Oct 2023 3:44 PM GMT
Prime Minister Narendra Modi stay with guardian of democracy K Vikram Rao article in hindi
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लोकतंत्र-प्रहरी के साथ, रहे ! निहाल हुए हम सब: Photo-Newstrack

PM Narendra Modi: प्रसंग गत बुधवार (11 अक्टूबर 2023) का है जब बिसराई याद ताजा हो गई, आठ साल पुरानी। मानों ऊंट की निगाह राई पर पड़ी हो। बल्कि अरबी भाषा में “ज़र्रानवाज़ी” हो, अर्थात नाचीज़ की कद्र। दिन था रविवार (11 अक्टूबर 2015)। तब नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने नई दिल्ली के भव्य विज्ञान भवन में हम लोगों का अभिनंदन किया था। इंदिरा गांधी के फाशिस्टी आपातकालीन-राज में जेल में हम नजरबंद थे। उस समारोह की अध्यक्षता एम. वेंकैया नायडू (बाद में उपराष्ट्रपति) ने की। मुझ सामान्य श्रमजीवी पत्रकार के साथ मंच पर थे : अकाली पुरोधा सरदार प्रकाश सिंह बादल, यूपी के कल्याण सिंह, वजूभाई वाला जो कर्नाटक के राज्यपाल तथा गुजरात विधानसभा के अध्यक्ष रहे और इंदौर के सोशलिस्ट ने नेता आरिफ बेग भी। मोदी जी ने सरदार बादल को “हिंदुस्तान का नेल्‍सन मंडेला” बताया।

मैं बरसों से विक्रम को जानता हूं, सालों से जानता हूं- पीएम मोदी

मेरे विषय में मोदी जी के उद्गार आकाशवाणी-दूरदर्शन के रिकॉर्ड में दर्ज हैं। इतनी श्लाघा ! मैं तो सुनकर कुप्पा हो गया था। (वीडियो सुनें।) प्रधानमंत्री ने उस सभा में कहा : “मैं बरसों से विक्रम को जानता हूं, सालों से जानता हूं। कितना जुल्म हुआ था विक्रम पर ? बहुत कम लोगों को शायद मालूम होगा। उसका गुनाह यह था कि वह पत्रकार था। उसका गुनाह यही था कि वह labour leader था। आज बहुत वर्षों के बाद मैं उनसे मिला। उनसे गुजरात में तो मिला था। मेरा सौभाग्‍य था। जॉर्ज साहब के साथ मुझे काम करने का अवसर मिला। इमरजेंसी में भारत का लोकतंत्र तपा और ज्यादा निखर करके उभरा। जयप्रकाश जी और उनके साथियों का जो contribution है उसी कारण हुआ। उस समय मैं भूमिगत था। “मुक्‍तवाणी” नाम का एक अखबार चलाता था, उपनाम से। उस अखबार को मैं लोगों के पास पहुंचाता था। इमर्जेंसी के बाद मैंने एक किताब भी लिखी।”

नरेंद्र मोदीजी कैद तो नहीं हुए मगर बाहर रहकर उन्होंने तथा उनके स्वयंसेवक साथियों ने मीसा बंदियों के संतप्त परिवार की बड़ी सेवा की। मसलन उनके मकान का किराया, बच्चों की स्कूल की फीस, राशन पहुंचाना, घरेलू सहायता इत्यादि। मोदी जी का में सदैव आभारी रहूंगा क्योंकि मुझे बड़ौदा सेंट्रल जेल की तन्हा कोठरी में दैनिक समाचारपत्र उन्हीं के द्वारा मिलता था। मानो मछली को पानी मिलता हो। जब बड़ौदा सेंट्रल जेल से हमें नई दिल्ली के तिहाड़ सेंट्रल जेल में ले जाया गया तो अखबार बंद हो गए थे। बड़ी पीड़ा हुई। नरेंद्र मोदी ने विज्ञान भवन के अपने भाषण में मेरे साथी जॉर्ज फर्नांडिस, जो हमारे बड़ौदा डाइनामाइट केस के अभियुक्त नंबर एक थे, की बारंबार तारीफ की थी। (मैं दूसरे नंबर पर अभियुक्त था। कुल 25 थे।)

मोदीजी ने कहा : “आज प्रात: (11 अक्तूबर 2015) मुझे आदरणीय जॉर्ज साहब के यहां जा करके और आदरणीय अटल जी के यहां जा करके, उनके आशीर्वाद लेने का सौभाग्य मिला। मैं इन सबको इसलिए स्मरण करता हूं कि जयप्रकाश जी के साथ संपूर्ण समर्पण के साथ, पूर्ण commitment के साथ, अपने आप को खपा देने वाले ये महापुरूष रहे हैं।”



हिंसा और राजद्रोह का आरोप

मोदी जी के उस लंबे भाषण के दौरान पुरानी यादें ताजा हुईं। टीस भी उठीं। दर्दनाक हादसे याद आ गये। कितना असहाय था मैं। उन पांच जेलों में तेरह महीनों तक। मेरी खराब ग्रह दशा प्रारंभ हुई जब इंदिरा सरकार में विद्याचरण शुक्ल सूचना एवं प्रसारण मंत्री बने। “टाइम्स” प्रबंधन तो शुक्ल के दबाव में रहा। अंततः मार्च 1976 मुझे बड़ौदा से नागपुर ट्रांसफर कर दिया। फिर सप्ताह भर में कैद कर लिया गया। हिंसा और राजद्रोह का आरोप लगाया। अहमदाबाद, बड़ौदा, मुंबई, बंगलौर फिर दिल्ली के तिहाड़ में कैद रखा। बड़ी फुर्ती से “टाइम्स” प्रबंधन ने मेरा निलंबन पत्र बड़ौदा जेल में भिजवा दिया था। मेरी बर्खास्तगी का आदेश तिहाड़ जेल में। सरकार खुश हुई।

आपातकाल के दो परिदृश्य भी याद आए। मार्च के प्रथम सप्ताह (9 मार्च 1977, मेरे संपादक-सांसद स्व. पिता श्री के. रामा राव की सोलहवीं पुण्यतिथि पर) डॉ. सुधा मेरे दोनों बच्चों (विनीता और सुदेव) के साथ मुझसे भेंट करने तिहाड़ जेल दिल्ली आईं। वहां चार-वर्षीया विनीता ने जेल गार्ड से पूछा : “मेरे पिताजी घर कब आएंगे।” गार्ड बोला : “तुम्हारी शादी पर, या शायद कभी नहीं।” रूंधे गले से सुधा ने बताया : “यह आखिरी मुलाकात है क्योंकि इन्दिरा गाँधी चुनाव जीत रहीं हैं और फिर जार्ज फर्नांडिस तथा आपको फाँसी हो जाएगी।” मैं हंसा। कांग्रेस का सूपड़ा हिन्दी-भाषी प्रदेशों में साफ हो रहा था। राज नारायण जी रायबरेली से जीतने जा रहे थे। जनता पार्टी की सरकार बन रही थी। अभियान प्रक्रिया में विनीता और सुदेव की भी भागीदारी थी। वे घर-घर जाकर नागरिकों से कहा : “आपका एक वोट हमारे पिताजी को जेल से मुक्त कराएगा।” अस्सी प्रतिशत वोट पड़े। तानाशाह तो रायबरेली में हार गई थी। फिर चुनाव परिणाम आये। मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। उनकी काबीना का प्रथम निर्णय था कि बड़ौदा डायनामाइट केस वापस ले लिया जाय। इसमें गृहमंत्री चरण सिंह, वित्त मंत्री एच.एम. पटेल, कानून मंत्री शान्ति भूषण तथा विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अहम भूमिका थी। केस वापस हुआ। जार्ज फर्नांडिस ने मंत्री पद की शपथ ली। हम सभी लोग (22 मार्च 1977 को) रिहा कर दिये गये।

ऐसी रही हमारी दोस्ती

फिर “टाइम्स ऑफ़ इण्डिया प्रबंधन” ने मुझे लखनऊ ब्यूरो प्रमुख बनाकर (फरवरी 1978) नियुक्त किया। मगर इसमें भी प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को हस्तक्षेप करना पड़ा। जनता पार्टी काबीना का महत्वपूर्ण निर्णय था कि जो भी लोग इमर्जेंसी का विरोध करने पर बर्खास्त हुये हैं उन्हें बकाया वेतन के साथ पुनर्नियुक्त कर दिया जाय। प्रधानमंत्री ने “टाइम्स ऑफ़ इण्डिया” के चेयरमैन अशोक जैन को खुद आदेश दिया कि काबीना के इस निर्णय के तहत के. विक्रम राव को सवेतन वापस लिया जाय।

फिर 2002 में मुख्यमंत्री मोदीजी ने हमारे इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट (IFWJ) के अधिवेशन का गांधीनगर में उद्घाटन किया। मैंने अध्यक्षता की। मोदीजी तपाक से मिले थे। ऐसी रही हमारी दोस्ती।

के. विक्रम राव Twitter ID: @Kvikramrao

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