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लोककथा : पैसा सब कुछ कर सकता है, इसकी बात ही कुछ और है

raghvendra
Published on: 10 Nov 2017 12:26 PM GMT
लोककथा : पैसा सब कुछ कर सकता है, इसकी बात ही कुछ और है
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इतालो काल्विनो

एक बार एक बहुत रईस शहजादे ने राजा के महल के ठीक सामने उससे भी शानदार एक महल बनवाने का निश्चय किया। महल जब बनकर पूरा हो गया तो उसने सामने की तरफ बड़े-बड़े अक्षरों में लिखवा दिया कि ‘पैसा सबकुछ कर सकता है।’

राजा ने बाहर आकर जब इसे देखा तो फौरन शहजादे को बुला भेजा जो शहर में अभी नया ही था और अभी तक उसने दरबार में हाजिरी नहीं बजाई थी।

‘मुबारक हो,’ राजा ने कहा। ‘तुम्हारा महल तो सचमुच अजूबा है। उसके सामने मेरा गरीबखाना तो झोपड़ी जैसा लगता है। मुबारक! लेकिन यह लिखाना क्या तुम्हें ही सूझा था कि : पैसा सब कुछ कर सकता है?’

शहजादे ने महसूस किया कि शायद वह हद पार कर गया था।

‘जी हां, यह मेरा ही खयाल था,’ उसने जवाब दिया, ‘लेकिन जहाँपनाह को यदि यह नागवार लग रहा हो तो मैं उसे मिटवा देता हूँ।’

‘अरे नहीं, मुझे लगा कि यह तुम्हारा खयाल नहीं रहा होगा। मैं बस तुम्हारे मुँह से सुनना चाहता था कि इस बात से तुम्हारा क्या मतलब था। मिसाल के तौर पर क्या तुम्हें ऐसा लगता है कि अपने पैसों से तुम मुझे कत्ल भी करा सकते हो?’

शहजादे को लग गया कि वह कायदे से फंस चुका था।

‘मुझे माफ कीजिए हुजूर। मैं फौरन उन लफ्जों को मिटवा देता हूँ। और अगर आपको मेरा महल नापसंद हो तो बस हुक्म कीजिए, मैं उसे भी जमींदोज करवा दूँगा।’

‘नहीं, नहीं उसे वैसा ही बना रहने दो। लेकिन चूंकि तुम दावा करते हो कि एक पैसे वाला शख्स कुछ भी कर सकता है, मुझे यह साबित करके दिखाओ। अपनी बेटी से बात करने की कोशिश करने के लिए मैं तुम्हें तीन दिन का मौका देता हूं। अगर तुम उससे बात करने में कामयाब रहे तो ठीक है, तुम्हारी उससे शादी करवा दी जाएगी। अगर नहीं। तो मैं तुम्हारा सर कलम करवा दूँगा। समझ गए?’

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शहजादा इतना परेशान हो उठा कि उसका खाना, पीना और सोना तक हराम हो गया। रात-दिन वह सोचा करता कि वह कैसे अपनी गर्दन बचाए। दूसरे दिन तक तो उसे अपनी नाकामयाबी के प्रति इतना इत्मिनान हो चुका था कि वह अपनी वसीयत करने के बारे में सोचने लगा। उसके हालात भी नाउम्मीद करने वाले थे क्योंकि राजा की बेटी सौ पहरेदारों से घिरे किले में बंद रहती थी।

किसी चिथड़े की तरह पीले और ढीले से बिस्तर पर पड़े-पड़े वह अपनी मौत का इंतजार कर रहा था जब उसकी बूढ़ी दाई उससे मिलने आई। इस जर्जर बूढ़ी दाई ने उसे बचपन में खिलाया था और अब भी उसके यहां काम कर रही थी। उसका मरियल सा चेहरा देखकर इस बूढ़ी औरत ने पूछा कि क्या गड़बड़ है। हकलाते हुए शहजादे ने उसको पूरी कहानी सुनाई।

‘तो क्या हुआ?’ दाई ने कहा, ‘तुम इस तरह उम्मीद छोड़े बैठे हो? तुम पर तो मुझे हंसी आ रही है। देखो मैं क्या कर सकती हूं!’

वह डगमगाते कदमों से शहर के सबसे काबिल सुनार के पास पहुंची और उससे ठोस चांदी का एक हंस बनाने के लिए कहा जो अपनी चोंच खोले-बंद करे। हंस को आदमकद और अंदर से खोखला होना था। ‘और हां, यह कल तक तैयार हो जाना चाहिए’, उसने जोड़ा।

‘कल? तुम होश में तो हो!’ सुनार चिल्लाया।

‘मैनें कहा न कल!’ उस बूढ़ी औरत ने सोने की अशॢफयों से भरा एक बटुआ निकाला और बोलती गई ‘जरा सोचो। यह पेशगी रकम है। बाकी तुम्हें कल मिल जाएगी जब तुम हंस तैयार करके मेरे सुपुर्द कर दोगे।’

सुनार हक्का-बक्का रह गया। ‘यही चीज तो है दुनिया में जिसकी बात ही और है,’ उसने कहा। ‘मैं कल तक हंस तैयार करने की भरसक कोशिश करूंगा।’

अगले दिन तक हंस तैयार हो गया और बहुत बढिय़ा तैयार हुआ।

बूढ़ी औरत ने शहजादे से कहा, ‘अपनी वायलिन लेकर हंस के भीतर बैठ जाओ। जैसे ही हम सडक़ पर पहुंचें तुम वायलिन बजाने लगना।’

हंस के भीतर बैठा शहजादा वायलिन बजाता रहा और बूढ़ी दाई चांदी के उस हंस को एक रस्सी के सहारे खींचती हुई शहर का चक्कर लगाने लगी। उसे देखने के लिए सडक़ों पर लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। शहर में ऐसा कोई भी न बचा जो उस खूबसूरत हंस को देखने के लिए दौड़ा न आया हो। यह बात उस किले तक भी पहुंची जहां राजा की बेटी बंद थी, उसने अपने अब्बा हुजूर से बाहर निकलकर यह अनोखा दृश्य देखने की अनुमति मांगी।

राजा ने कहा, ‘उस शेखीबाज शहजादे को मिला मौका कल खत्म हो जाने दो। तब तुम बाहर निकलना और हंस देख लेना।’

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लेकिन राजा की बेटी ने सुन रखा था कि कल तक हंस वाली बूढ़ी औरत चली जाएगी। इसलिए राजा ने हंस को किले के अंदर ले जाने दिया ताकि उसकी बेटी हंस को देख सके। बूढ़ी दाई को इसी बात की उम्मीद थी। जैसे ही शहजादी ने चांदी के उस हंस के साथ अकेले में उसकी चोंच से निकल रहे संगीत का आनंद लेना शुरू किया, अचानक हंस खुल पड़ा और उसमें से एक नौजवान ने बाहर कदम रखा।

‘डरो मत,’ उस आदमी ने कहा, ‘मैं वही शहजादा हूं जो अगर तुमसे बात न कर सका तो कल सुबह तुम्हारे अब्बा हुजूर मेरा सर कलम करवा देंगे। तुम उनसे यह बताकर मेरी जान बचा सकती हो कि तुम मुझसे बात कर चुकी हो।’

अगले दिन राजा ने शहजादे को बुला भेजा। ‘हां, तो क्या मेरी बेटी से बात करने में तुम्हारा पैसा तुम्हारे कोई काम आया?’

‘जी हां जहांपनाह,‘ शहजादे ने जवाब दिया।

‘क्या! तुम्हारा मतलब तुमने उससे बात की?’

‘उसी से पूछ लीजिए।’

शहजादी आई और उसने बताया कि कैसे वह चांदी के हंस में छुपा हुआ था जिसे खुद राजा के हुक्म पर किले में घुसने दिया गया था।

इस पर राजा ने अपना मुकुट उतारकर शहजादे के माथे पर रख दिया। ‘इसका मतलब तुम्हारे पास सिर्फ पैसा ही नहीं बल्कि एक अच्छा दिमाग भी है। जाओ खुश रहो! मैं अपनी बेटी का हाथ तुम्हारे हाथों में सौंपता हूँ।’ १

अनुवाद - मनोज पटेल

(एक इतालवी लोककथा पर आधारित)

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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