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प्रियंका की एंट्री का सही समय, अब खोने को कुछ नहीं सिर्फ आगे ही बढ़ना है
प्रियंका के सक्रिय राजनीति में उतरने के साथ यह संदेश देने का प्रयास किया गया है कि कांग्रेस ने मोर्चा संभाल लिया है। अब कांग्रेस कार्यकर्ताओं के सक्रिय होने का समय आ गया है। कांग्रेस 2019 के चुनाव में 2009 का मैजिक दोहराना चाहती है। 2009 में कांग्रेस ने यूपी की 80 सीटों में से 21 सीटों पर जीत हासिल की थी।
रामकृष्ण वाजपेयी
लोकसभा चुनाव से ऐन पहले समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन में नजरअंदाज किये जाने के बाद जब कांग्रेस ने अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने का एलान किया था, तो सहसा किसी को यकीन नहीं हुआ था कि कांग्रेस ऐसा किस आधार पर और कैसे करेगी। लेकिन प्रियंका गांधी को सक्रिय राजनीति में लाकर और ज्योतिरादित्य सिंधिया को राष्ट्रीय राजनीति में लाकर कांग्रेस ने तुरुप का पत्ता चल दिया है। या ये कहें कि सारे समीकरणों को ध्वस्त कर दिया है। यह बात सही है कि केंद्र की सत्ता का रास्ता यूपी से होकर जाता है। कांग्रेस का भी राष्ट्रीय नेतृत्व यूपी से ही निकलता रहा है। इसलिए यूपी ही नया इतिहास रचेगा तब कांग्रेस को पुनर्जीवन मिलेगा।
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प्रियंका के सक्रिय राजनीति में उतरने के साथ यह संदेश देने का प्रयास किया गया है कि कांग्रेस ने मोर्चा संभाल लिया है। अब कांग्रेस कार्यकर्ताओं के सक्रिय होने का समय आ गया है। कांग्रेस 2019 के चुनाव में 2009 का मैजिक दोहराना चाहती है। 2009 में कांग्रेस ने यूपी की 80 सीटों में से 21 सीटों पर जीत हासिल की थी।
पूर्वांचल की सीटों पर कांग्रेस की जीत की संभावनाएं मजबूत हैं इसलिए यहां के नतीजे सही दिशा में मेहनत के बाद कांग्रेस के पक्ष में जा सकते हैं। पूर्वांचल में वाराणसी, भदोही, मिर्जापुर, इलाहाबाद, फूलपूर, प्रतापगढ़, कौशांबी, फतेहपुर, गोरखपुर सदर, देवरिया, कुशीनगर, महाराजगंज, सलेमपुर, डुमरियागंज, संतकबीरनगर में कांग्रेस की दावेदारी मजबूत हो सकती है।
पहले भी कहा जा रहा था कि अगर कांग्रेस अकेले दम चुनाव मैदान में उतरती है तो वह करीब दो दर्जन सीटों पर सीधे जीत दर्ज कर सकती है। आंकड़े बताते हैं कि मोदी लहर में भी कांग्रेस ने प्रदेश की दो दर्जन सीटों पर वोटिंग प्रतिशत में सम्मानजनक स्थिति हासिल की थी। इसमें भी करीब 6 सीटों पर पार्टी ने जोरदार प्रदर्शन करते हुए भाजपा को तगड़ी चुनौती भी दी थी। अब राजस्थान मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मिली जीत के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संजीवनी मिली है और उनके हौसले बुलंद हैं।
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2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने अकेले दम पर 21 सीटें हासिल की थीं। यहां सपा ने 23 और बसपा ने 20 सीटें हासिल की थीं। भाजपा को मात्र 10 सीटें मिली थीं। लेकिन 2014 लोकसभा चुनावों में मोदी लहर ने बीजेपी को 71 के जादुई आंकड़े तक उठा दिया। कांग्रेस दो सीटों पर सिमट गई।
2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने रायबरेली और अमेठी की सीट जीतने अलावा सहारनपुर, गाजियाबाद, लखनऊ, कानपुर, बाराबंकी और कुशीनगर में भाजपा प्रत्याशी को कड़ी टक्कर दी थी। यहां कांग्रेस प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहे थे। इन स्थानों पर कांग्रेस के इमरान मसूद, राजबब्बर, श्रीप्रकाश जायसवाल, पीएल पुनिया, आरपीएन सिंह ने अपने प्रतिद्वंद्वियों को कड़ी टक्कर दी थी। अब जबकि कांग्रेस अपने बूते पर चुनाव लड़ने जा रही है ऐसे में वह न सिर्फ 2009 का इतिहास दोहरा सकती है। बल्कि उससे भी आगे निकल सकती है।
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लेकिन सबसे बड़ा सवाल अभी बाकी है कि क्या प्रियंका यूपी की राजनीति में कांग्रेस का दफन हो चुका बीता गौरव लौटा पाएंगी। ये सही है कि यूपी प्रियंका राहुल के पूर्वजों की जमीन है। जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी को लोग अभी भूले नहीं है लेकिन जातिगत आधार पर धार्मिक आधार पर समाज इतने खांचों में विभाजित भी नहीं था। आज पूरी तरह से अलहदा है। लेकिन कांग्रेस की यह जद्दोजहद काबिले नजरअंदाज योग्य भी नहीं है।