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प्रियंका ने थाम तो ली पंजे की चुनावी कमान, क्या बन सकेंगी कांग्रेस की संजीवनी?

कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि प्रियंका को प्रचार की कमान राहुल के वाक द टाक के तीन दिन बाद ही शुरू करनी थी, जो हो नहीं सका। संभवत: प्रियंका इतनी जल्दी प्रचार के लिए राजी नहीं हो पा रही थीं। लेकिन अब कांग्रेस की खराब हालत और 27 साल से यूपी बेहाल के नारे के बावजूद पार्टी को सुधारने की जिम्मेदारी प्रियंका पर डाली जा रही है

zafar
Published on: 22 Oct 2016 9:14 AM GMT
प्रियंका ने थाम तो ली पंजे की चुनावी कमान, क्या बन सकेंगी कांग्रेस की संजीवनी?
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vinod kapoor Vinod Kapoor

नई दिल्ली: कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के तमाम प्रयासों के बावजूद पार्टी की हालत नहीं सुधरने के बाद अब प्रियंका गांधी वाड्रा यूपी विधानसभा चुनाव में प्रचार के लिए तैयार हो गई हैं। कांग्रेस सूत्रों के अनुसार अब तक प्रचार के लिए तैयार नहीं होने पर प्रियंका ने पार्टी से माफी भी मांगी है। यूपी में लोकसभा चुनाव हों या विधानसभा, प्रियंका ने अब तक प्रचार के लिए अपने को रायबरेली और अमेठी तक ही सीमित रखा था। रायबरेली उनकी मां और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी तो अमेठी उनके भाई राहुल गांधी का संसदीय क्षेत्र है।

प्रियंका की 'हां'

कांग्रेस सूत्रों के अनुसार प्रियंका सक्रिय राजनीति में आने से खुद को अपने भाई के कारण ही रोकती रही हैं। कांग्रेस के पुराने नेता प्रियंका में उनकी दादी इंदिरा गांधी की छवि देखते हैं। रायबरेली और अमेठी से बाहर निकल प्रियंका ने अपना जलवा दिखाया भी है। जब 1999 के लोकसभा चुनाव में वो एक दिन के प्रचार के लिए सुलतानपुर गईं और चुनाव में एक नंबर पर चल रहे पिता राजीव गांधी के पुराने सखा अरूण नेहरू को चुनाव हरवा दिया। उन्होंने मंच से सिर्फ एक लाइन ही कही, 'आपने मेरे पिता के साथ गद्दारी करने वाले को यहां घुसने कैसे दिया।' बस यही एक अपील काम कर गई और अरूण नेहरू पहले स्थान से पांचवें स्थान तक पहुंच गए।

इसके अलावा उन्होंने लोकसभा चुनाव में बाराबंकी में पीएल पुनिया के पक्ष में प्रचार किया।

ना ना करते 'हां'

दरअसल प्रियंका से सक्रिय राजनीति में आने की मनुहार कांग्रेसी बहुत पहले से कर रहे हैं। खासकर यूपी में कांग्रेस की बुरी हालत को देख प्रियंका को लाने की मांग तो पहले से उठ रही है, लेकिन वो हमेशा इंकार करती रही हैं।

राहुल गांधी ने जब यूपी चुनाव की प्रचार कमान रणनीतिकार प्रशांत किशोर को सौंपी तो उन्होंने भी प्रियंका गांधी वाड्रा को सीएम चेहरा बनाने का सुझाव दिया था जिसे कोई भी मानने को तैयार नहीं हुआ। पहले तो पियंका ही नहीं मानीं। प्रशांत किशोर जो पीके के नाम से भी जाने जाते हैं, उनका कहना था कि यदि प्रियंका को सीएम फेस नहीं बनाया गया तो पार्टी बुरी हालत से उबर नहीं सकती।

राहुल गांधी ने 29 जुलाई को लखनऊ में 'वाक द टाक' किया। उन्होंने सभा में आए लोगों के सवालों के जवाब दिए। इसमें एंकर रीता बहुगुणा जोशी थीं, जो कांग्रेस और राहुल को भला बुरा कह कर अब बीजेपी में शामिल हो चुकी हैं।

गलत निशाने

इसके अलावा उन्होंने 6 सितंबर को देवरिया से एक महीने की खाट पंचायत की जिसे उतना फायदा नहीं मिला जिसकी उम्मीद की जा रही थी। खाट पंचायत में वो किसानों से बात कर रहे थे। लेकिन उनके निशाने पर पीएम नरेंद्र मोदी रहे। जबकि किसानों की नाराजगी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी से थी। इस किसान यात्रा और खाट पंचायत का समापन 6 अक्तूबर को दिल्ली में हुआ था।

कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि प्रियंका को प्रचार की कमान राहुल के वाक द टाक के तीन दिन बाद ही शुरू करनी थी, जो हो नहीं सका। संभवत: प्रियंका इतनी जल्दी प्रचार के लिए राजी नहीं हो पा रही थीं।

लेकिन अब कांग्रेस की खराब हालत और 27 साल से यूपी बेहाल के नारे के बावजूद पार्टी को सुधारने की जिम्मेदारी प्रियंका पर डाली जा रही है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर, सीएम चेहरा शीला दीक्षित और प्रभारी गुलाम नबी आजाद भी पूरे प्रयासों के बावजूद कुछ नहीं कर पा रहे हैं।

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