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राग - ए- दरबारी: जब नाम ही नहीं तो कैसा निष्पक्ष चुनाव?

raghvendra
Published on: 2 Dec 2017 12:49 PM IST
राग - ए- दरबारी: जब नाम ही नहीं तो कैसा निष्पक्ष चुनाव?
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संजय भटनागर

उत्तर प्रदेश के 75 जिलों के 16 नगर निगम सहित 652 नगर निकायों में चुनाव प्रक्रिया पूरी हुई। लगभग हर स्थान से वोटर लिस्ट में गड़बड़ियों की शिकायतें मिली और चुनावी प्रक्रिया की शुचिता पर प्रश्नचिन्ह लगा गयीं। सबसे अधिक शिकायतें राजधानी लखनऊ में मिलीं जहां मोहल्ले के मोहल्ले वोटर सूची से गायब पाए गए। सवाल यह उठता है कि निष्पक्ष चुनाव का अर्थ सिर्फ बूथ कैप्चरिंग और फर्जी वोटिंग रोकना मात्र है या नागरिकों को उनके लोकतांत्रिक अधिकार के अनुपालन को सहज करना भी है।

उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में, विशेषकर लखनऊ में जो हुआ इसको मह$ज प्रशासनिक चूक कह कर खारिज कर देने के बजाय इस चूक की जवाबदेही तय करना और इसका स्थाई हल ढूंढऩा समय की मांग है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में आयोग की विस्तृत भूमिका पूर्णतया परिभाषित है। इस परिप्रेक्ष्य में नगर निकाय में चुनाव के लिए राज्य चुनाव आयोग के कर्तव्यों की व्याख्या भी समय की जरूरत है। राज्य चुनाव आयोग के आयुक्त एस के अग्रवाल ने जिले के वरिष्ठ अधिकारियों पर जो गंभीर टिप्पणियां कीं (लखनऊ के विशेष तौर पर), वे क्या इस सूरत-ऐ-हाल में नाकाफी हैं।

यह सही है कि वोटर लिस्ट में इतने बड़े पैमाने पर अनियमितताएं सामान्य बात नहीं है। यह भी सही है कि जिलाधिकारी ब्लॉक स्तर अधिकारियों पर कार्रवाई करके अपने कर्तव्य की इतिश्री नहीं कर सकता है। जिलाधिकारी जिला चुनाव अधिकारी होता है और इस स्तर की चूक के लिए जिसमे लोकतांत्रिक परम्पराओं का सरंक्षण का मुद्दा हो, उसकी जवाबदेही सीधी और सा$फ होती है।

अब मिलियन डॉलर सवाल यह है कि दूरदराज की किसी भी विधान सभा में जरा सी गड़बड़ी के आरोप मात्र से चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर राजनीतिक सवाल उठने लगते हैं। इसी परंपरा से निकाय चुनाव में कमी बेशी के लिए क्या चुनाव आयोग की जिम्मेदारी नहीं है क्या? डीएम ने अधीनस्थ कर्मचारियों को निलंबित कर दिया, राज्य चुनाव आयोग ने डीएम को कोस लिया, यह कहने सुनने में आसान लगता है लेकिन लोकतंत्र के आयोजनों में ऐसी गड़बडिय़ां असामान्य नहीं बल्कि अक्षम्य भी हैं।

वक्त आ गया आ गया है कि राजनीतिक निकटताओं के आधार पर नियुक्त होने वाले राज्य चुनाव आयुक्त की जवाबदेही तय होनी चाहिए, हालिया चुनाव को देखते हुए तो इस पर बाकायदा एक बहस की आवश्यकता है। क्या राज्य की जिम्मेदारी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाना नहीं है और वोटर लिस्ट से अधिकृत मतदाताओं के नाम गायब होना निष्पक्षता को चुनौती नहीं देता नहीं देता है? चाहे प्रदेश के सरकार हो या केंद्र की, इसमें हस्तक्षेप करना ही पड़ेगा, अभी नहीं तो कुछ समय बाद। रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियां कितनी सामायिक हैं कि ‘‘जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध।’’

(लेखक न्यूजट्रैक/अपना भारत के कार्यकारी संपादक हैं)



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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