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राग - ए- दरबारी: हाशिये पर अल्पसंख्यक! अरे नहीं... इसे सुनहरा मौका मानिये परिवर्तन के लिए
संजय भटनागर
गुजरात विधान सभा चुनाव में प्रचार के दौरान कांग्रेस के नए अध्यक्ष राहुल गांधी ने 27 मंदिरों के दर्शन किये। इससे पहले कांग्रेस ने 182 की विधान सभा के लिए सिर्फ चार मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किये। पूरे चुनाव के दौरान गोधरा,अल्पसंख्यक समुदाय, मस्जिद और साम्प्रदायिकता पर चर्चाएं नहीं हुईं। कारण स्पष्ट है कि मोदी ने और बीजेपी ने चुनावी राजनीति से मुस्लिम नामक ‘वोट बैंक’ को अलग थलग कर दिया।
यह प्रक्रिया 2014 के लोक सभा चुनाव से शुरू हुई, उत्तर प्रदेश के असेंबली चुनाव में परवान चढ़ी जिसकी परिणीति गुजरात में हुई। यह आज का कटु सत्य है कि मुस्लिम वर्ग की वर्तमान चुनाव राजनीति में भूमिका उतनी महत्वपूर्ण रही नहीं जिसकी आदत इसको पड़ चुकी थी और इसी वजह से इसका अपेक्षित विकास नहीं हो सका या कहा जाये कि होने नहीं दिया गया।
आश्चर्य यह है कि हमेशा अपने आप को महज वोट बैंक समझे जाने से आहत अल्पसंख्यक समुदाय इससे दुखी और परेशान है। आखिर क्यों? यह तो मुस्लिम समुदाय के लिए सुनहरा मौका है अपनी नयी पहचान बनाने का। यही समय है अल्पसंख्यंकों के लिए कि समाज में अपना अस्तित्व शिक्षित, जागरूक और $जहीन समुदाय के रूप में स्थापित करने के लिए। मुस्लिम जनसमुदाय को अब पहचान होगी कि सही मायनों में अपने और पराये की। सालों-साल मुसलमानों के रहनुमा और सरमायेदार बने तमाम वर्ग, राजनीतिक दल और कथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं का चेहरा अब सामने आने की कगार पर है।
अब देखना है कि इनमें से कितने दल और उनके लीडरान उठ कर सामने आते हैं और कहते हैं ठीक है बहुत हो गया तुम्हारा राजनीतिक इस्तेमाल, अब वक्त आया है कि अल्पसंख्यक पठन पाठन पर ध्यान दें और भारतीय सामाजिक, राजनीतिक और आॢथक व्यवस्था में अपना बौद्धिक योगदान दें। अब तो समय आया है कि भारत के महान इतिहास में लगभग प्रत्येक क्षेत्र में अपनी भूमिका को सिद्ध करने का, यह बताने का कि हमारे बगैर भारत का सामाजिक परिवेश अधूरा है, भाड़ में जाये राजनीति। लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि समुदाय को अपनी प्राथमिकताएं बदलनी होंगी। अगर यह हो पाया तो राजनीति खुद ही बदल जायेगी।
यह बात भी सच है कि नरेंद्र मोदी ने देश का राजनीतिक परिदृश्य बदल दिया है, अब आप भी बदलिए और बदलाव से कुंठित होने के बजाय एक नए परिवर्तन रथ का सारथी बनें। इसे अपनी हार कतई न समझें बल्कि इसे जीत का आधार बनायें। इस देश को आपकी जरूरत थी, है और रहेगी।
(लेखक न्यूजट्रैक/अपना भारत के कार्यकारी संपादक हैं)