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राग-ए-दरबारी: बात स्वेटर की थी ...आप तो संवेदनशीलता की बात करने लगे

raghvendra
Published on: 12 Jan 2018 1:43 PM IST
राग-ए-दरबारी: बात स्वेटर की थी ...आप तो संवेदनशीलता की बात करने लगे
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संजय भटनागर

बात स्वेटर की नहीं है, बात कड़ाके की ठंड में बच्चों के स्वेटर की भी नहीं है, बात सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों को मुफ्त स्वेटर दिए जाने की भी नहीं है, बात यह भी नहीं है कि उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों के एक करोड़ 54 लाख बच्चों को मिला या नहीं, मिला तो कब मिला , बात नहीं है कि एक करोड़ 54 लाख बच्चों में से कितने लाख बच्चों के पास एक भी स्वेटर नहीं है। बात संविधान के नीति निदेशक सिद्धांतों के अनुपालन में अलिखित कल्याणकारी राज्य होने के दम्भ की भी नहीं है।

बात इतनी सी है कि उत्तर प्रदेश सरकार के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने बच्चों को मुफ्त स्वेटर देने की बात कही और आधी सर्दियाँ बीतते हुए यह काम नहीं हो सका। बात यह भी नहीं है कि प्राथमिक शिक्षा विभाग के मुखिया ने शायद कमीशनखोरी पर लगाम लगाने के लिए तमाम जतन कर डाले। अब तो बात यह भी नहीं रही कि सरकार ने स्कूलों के प्रबंधन को यह कार्य अंजाम करने को दिया। बात यह भी नहीं रही कि मात्र दो सौ रुपए में क्या स्वेटर आ सकता है?

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बात तो अब कोई भी नहीं रही सिवाय इसके कि मुख्यमंत्री की घोषणा के बावजूद बच्चों को समय पर स्वेटर नहीं मिल सके। बात तो सिर्फ यह रही कि यह संवेदनहीनता का कालखंड है और जहाँ प्रशासनिक तंत्र की भागीदारी है वहां तो संवेदनशीलता की वैसे भी कोई गुंजाइश नहीं रहती है। यह एक सरकारी कामों में से एक था लेकिन कम्बख्त उस बच्चे को यह बात नहीं पता थी कि उसका गरीब बाप बेवजह ही सरकार पर भरोसा करके स्वेटर का इंतज़ार कर रहा है। सरकारी कामों में बेवजह के जज़्बात अच्छे नहीं होते हैं और सरकारी स्कूलों के बच्चों की क्या बिसात कि वह स्वेटर के लिए जवाब तालाब करें वह भी साहब बहादुरों से। अरे!

मुख्यमंत्री की घोषणा का पालन होगा, इस सर्दियों में या अगली सर्दियों में, यह सब पूछने का हक किसी को भी नहीं है, सर्दी में ठिठुर रहे बच्चों को तो बिलकुल नहीं। अब हम बच्चों को यह बताते फिरेंगे कि हमने समय से टेंडर करवा दिए थे, अब उसी में ठीक-ठाक नहीं रहा तो हम क्या करें? वैसे भी टेंडर की प्रक्रिया कौन सी बच्चों के पाठ्यक्रम में है जिसे जानना उन्हें जरूरी है।

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तो बात अंतत: आ कर रुकी कि मुख्यमंत्री योगी की घोषणा का परिपालन अगर समय पर हो जाये तो फिर नौकरशाही कैसी? और फिर घोषणाएं तो होती रहती हैं, और फिर विभाग की मंत्री ने तो कह ही दिया था कि जब तक स्वेटर नहीं बटेंगे, वह भी स्वेटर नहीं पहनेंगी। शायद उन्होंने ऐसा किया भी हो या हो सकता है कि शाल भी न ओढ़ी हो उन्होंने। सारी बातें यहीं समाप्त हो जाती हैं कि भले ही पैसा जनता का हो, तुम्हारे लिए तो स्वेटर मुफ्त ही है। अब हो या न हो, देर से मिले या जल्दी मिले, 200 का हो या 2000 रुपए का, तुम्हारे लिए तो मुफ्त ही है। हम तो बाँट कर अहसान कर ही रहे थे, तुम दान की बछिया के दांत गिनने लगे। यह तो तयशुदा नहीं था । ठीक है, कल्याणकारी राज्य व्यवस्था में हम बेगार समझ कर बहुत से काम ऐंवे ही कर देते हैं, इसका मतलब यह नहीं कि आप हमसे जवाबदेही की उम्मीद रखो।

जब मुख्यमंत्री ने हमसे जवाब मांगने की कोई पेशकश नहीं की तो आप तो जनता हैं और वह भी टुइँया से बच्चे। कल्याणकारी राज्य व्यवस्था की यह शर्त तो कतई कतई बर्दाश्त नहीं है। और अभी तो हमने 36000 करोड़ की ऋण माफी की है, अब मुफ्त स्वेटर। हम तो तुम्हारे साथ ऐसा ही बर्ताव करेंगे, तुम क्या कर लोगे। बात सिर्फ इतनी से ही है...

(लेखक न्यूजट्रैक/अपना भारत के कार्यकारी संपादक हैं)

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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