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राग-ए-दरबारी: राहुल जी! हिंदुत्व के शेर पर सवारी आपके लिए थी ही नहीं... उतरेंगे कैसे?
संजय भटनागर
कांग्रेस गुजरात चुनाव हार गयी जैसा सोचा जा रहा था। भारतीय जनता पार्टी जीत गयी जैसा सोचा जा रहा था। लेकिन एक सत्य यह भी है कि कांग्रेस की हार में राहुल की हार नहीं देखी जा रही है लेकिन बीजेपी की जीत में सिर्फ और सिर्फ मोदी की जीत देखी जा रही है और यह एक कड़वा सत्य है।
चलिए अब इस स्थिति से आगे के परिदृश्य पर नजर डालते हैं और पाते हैं कि कांग्रेस के नए अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए नए संघर्ष का दौर शुरू होता है। कैसे? इसकी मीमांसा करते हैं।
राहुल ने पूरे गुजरात चुनाव में कांग्रेस की ओर से नयी रणनीति का प्रदर्शन किया जो पार्टी की ‘कथित’ धर्मनिरपेक्ष छवि से अलग हटते हुए ‘सॉफ्ट’ हिन्दू छवि के रूप में था। मुस्लिम राजनीति की बात कम से कम हुई, राहुल 27 मंदिर गयी जिसमे ऐतिहासिक सोमनाथ मंदिर भी शामिल था। उन्होंने अपने को शिवभक्त घोषित किया और जनेऊ और रुद्राक्ष का प्रदर्शन करने में कोई कोताही नहीं बरती। कट्टर मुस्लिमों ने इसपर आश्चर्य व्यक्त किया कि पूर्व चुनाव के परिदृश्यों के विपरीत गुजरात चुनाव में हिन्दू धर्म और हिन्दू दर्शन पर बातचीत होती रही।
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अब सवाल यह उठता है कि क्या राहुल की गुजरात में ‘प्रोजेक्ट ‘ की गयी छवि स्थाई है अथवा सिर्फ बीजेपी के मुखर हिंदुत्व के जवाब में तात्कालिक रणनीति थी। बहरहाल जो भी था, राहुल को इस छवि को झटक कर अलग करने में काफी कोशिश करनी पड़ेगी। उनके और उनकी पार्टी कांग्रेस के साथ नजर आने वाले समाजवादी पार्टी और लालू के राष्ट्रीय जनता दल जैसे तमाम राजनीतिक दलों का उनके प्रति रवैया क्या पहले जैसा रहेगा। संक्षेप में अब राहुल और कांग्रेस को ही नहीं बल्कि उनसे हाथ मिलाने वाले अनेक दलों को अल्पसंख्यक राजनीति के साक्षेप अपना ‘स्टैंड’ साफ करना ही पड़ेगा। पिछले उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में उनके साथ चुनाव लडऩे वाले अखिलेश यादव क्या 2019 के लोक सभा चुनाव में राहुल के साथ इसी तरह मंदिर-मंदिर घूमेंगे ( अगर फिर साथ आये तो ) ? अगर नहीं तो वह राहुल गाँधी का परित्याग क्या कह कर करेंगे, क्योंकि अभी तो सब खामोश हैं।
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राहुल वैसे भी उत्तर प्रदेश से सांसद हैं जहां अयोध्या भी है। क्या यह मान लिया जाये कि राहुल अगले चुनाव में अयोध्या के अलावा काशी विश्वनाथ और कृष्ण जन्मभूमि के भी उसी तरह दर्शन करेंगे जैसे उन्होंने गुजरात के मंदिरों में किये। अगर ऐसा नहीं हुआ तो कांग्रेस को यह भी स्वीकार करना पड़ेगा कि मोदी और अमित शाह की रणनीति के मायाजाल में राहुल फँस गए और ‘हिन्दू’ बनने के लिए मजबूर हो गए।
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राहुल जी, सच तो यह है कि आप गुजरात में हिंदुत्व के शेर पर सवार तो हो गए लेकिन शेर पर सवारी करना तो आसान होता है लेकिन उसकी पीठ से उतरना बहुत मुश्किल होता है। देख लीजिये, आप गुजरात की हार में अपनी जीत तो देख रहे हैं लेकिन मोदी और शाह आपके लिए मुश्किलों का पहाड़ छोड़ कर गए हैं। अब कांग्रेस के लिए भी पशोपेश की स्थिति है कि वह अपनी ‘कथित ‘ सेक्युलर पार्टी की छवि को दोबारा पाने के लिए क्या करेगी, कैसे करेगी और कब करेगी ? समय बहुत कम है। लोकसभा चुनाव तो न$जदीक है हीं, उससे भी पहले कर्नाटक, मध्य प्रदेश और राजस्थान विधानसभा चुनाव हैं।
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(लेखक न्यूजट्रैक/अपना भारत के कार्यकारी संपादक हैं)