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रामलीला में हुई राहुललीला: सिद्ध हुआ, कांग्रेस के असली मालिक राहुल ही हैं

Rahul Leela in Ramleela: राहुल गांधी इस पार्टी के अध्यक्ष रहें या न रहें, बनें या न बनें, असली मालिक तो वही हैं, यह इस रैली ने सिद्ध कर दिया है।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Published on: 6 Sept 2022 10:36 AM IST
Rahul Leela in Ramleela
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Rahul Leela in Ramleela (Social Media)

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रामलीला मैदान की रैली में कांग्रेस ने काफी लोग जुटा लिये। हरयाणा से भूपेंद्र हूडा और राजस्थान से अशोक गहलोत ने जो अपना जोर लगाया, उसने कांग्रेसियों में उत्साह भर दिया लेकिन यह कहना मुश्किल है कि इस रैली ने कांग्रेस पार्टी को कोई नई दिशा दिखाई है। इस रैली में कांग्रेस का कोई नया नेता उभरकर सामने नहीं आया। कई कांग्रेसी मुख्यमंत्री और प्रादेशिक नेता मंच पर दिखाई दिए लेकिन उनकी हैसियत वही रही, जो पिछले 50 साल से थी। सारे अनुभवी, योग्य और उम्रदराज़ नेता ऐसे लग रहे थे, जैसे किसी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के मेनेजर या बाबू हों। पिछले दिनों कांग्रेस के पुनर्जन्म की जो हवा बह रही थी, वह उस मंच से नदारद थी। राहुल गांधी इस पार्टी के अध्यक्ष रहें या न रहें, बनें या न बनें, असली मालिक तो वही हैं, यह इस रैली ने सिद्ध कर दिया है।

रामलीला मैदान में हुई यह राहुललीला क्या यह स्पष्ट संकेत नहीं दे रही है कि 'भारत-जोड़ो यात्रा' का नेतृत्व कौन करेगा? आप ज़रा सोचिए कि जो पार्टी लोकसभा की 400 सीटें जीतती थी, वह सिकुड़कर के 50 के आस-पास आ जाए, फिर भी उसमें नेतृत्व परिवर्तन न हो, वह पार्टी अंदर से कितनी जर्जर हो चुकी होगी। रामलीला मैदान में भाषण तो कई नेताओं के हुए लेकिन टीवी चैनलों और अखबारों में सिर्फ राहुल गांधी ही दिखाई पड़ रहे है। इसका अर्थ यह भी लगाया जा सकता है कि ऐसा जान-बूझकर करवाया जा रहा है ताकि कांग्रेस की मज़ाकिया छवि बनती चली जाए! ऐसा नहीं है कि राहुल का भाषण बिल्कुल बेदम था। उसमें कई ठोस और उचित आलोचनाएं भी थीं लेकिन देश के श्रोताओं के दिमाग में जो छवि राहुल की पहले से बनी हुई है, उसके कारण उसका कोई खास असर होने की संभावना बहुत कम है। राहुल और सोनियाजी को पता है कि अकेली कांग्रेस मोदी के मुकाबले इस बार पासंग भर भी नहीं रहनेवाली है लेकिन इसके बावजूद राहुल ने देश की अन्य प्रांतीय पार्टियों को अपने कथन से चिढ़ा दिया है। उसने कह दिया कि इन पार्टियों के पास कोई विचारधारा नहीं है। क्या राहुल की कांग्रेस अन्य विरोधी पार्टियों के बिना मोदी का मुकाबला कर सकती है? राहुल का यह कहना भी कोरी अतिरंजना है कि संसद में विरोधियों को बोलने नहीं दिया जाता और मीडिया का गला घोंटा जा रहा है। राहुल ने न्यायपालिका को भी नहीं बख्शा। कांग्रेस के पास श्रेष्ठ वक्ताओं का अभाव है, यह बात राहुल के अलावा सबको पता है। हर सरकार मीडिया को फिसलाने की कोशिश करती है लेकिन यदि भारतीय मीडिया गुलाम होता तो क्या राहुल को आज इतना प्रचार मिल सकता था? राहुल ने मंहगाई और बेरोजगारी का रोना रोया, सो ठीक तो है लेकिन क्या यह तथ्य सबको पता नहीं है कि अपने पड़ौसी देशों में मंहगाई दो सौ और तीन सौ प्रतिशत तक बढ़ गई है। वे आर्थिक भूकंप का सामना कर रहे हैं और अमेरिका और यूरोप भी बेहाल हैं। उनके मुकाबले भारत कहीं बेहतर स्थिति में है। यदि राहुल किसी विशाल जन-आंदोलन का सूत्रपात करते तो इस रैली का महत्व एतिहासिक हो जाता लेकिन 'भारत-जोड़ो' के पहले यह 'कांग्रेस जोड़ो' जैसी कोशिश दिखाई पड़ रही थी। इस राहुललीला से कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में कुछ जोश पैदा हो जाए तो भारतीय लोकतंत्र कुछ न कुछ सशक्त जरुर हो जाएगा।

Ramkrishna Vajpei

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