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राहुल बाबा की ताजपोशी : कांग्रेस का धन्यवाद तो बनता ही है...

raghvendra
Published on: 8 Dec 2017 10:15 AM
राहुल बाबा की ताजपोशी : कांग्रेस का धन्यवाद तो बनता ही है...
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आलोक अवस्थी

राहुल बाबा की ताजपोशी से कांग्रेस आत्मविभोर है... लगता है मानो पहाड़ी के पीछे कैद सूरज हाड़ कंपाती सर्दी से बचाने के लिए निकल आया हो...। अब सर्दी की खैर नहीं!!

लेकिन यहां प्रसंग उत्तराखंड का है... जहां उत्तर प्रदेश में वानप्रस्थ को भेज दी गई कांग्रेस... अपना इंद्रप्रस्थ बनाने में कामयाब हो गई...। कांग्रेस के जमाने के एक नेता अटल बिहारी वाजपेयी का आभार जताना नहीं भूलते...। न उन्होंने उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड को दिया होता न कांग्रेस को सर छुपाने का स्थान मिलता...। सबसे अधिक नेताओं से भरी कांग्रेस को उनके ही नेता ने कांग्रेस विहीन कर दिया... आपस में ही चाहे लड़ रहे थे पर थे तो कांग्रेसी ? अब हरीश रावत जी की कृपा से सब कमल के फूल हो गए...।

हरीश जी ने इन्हें कांग्रेस से बाहर जाने का रास्ता दिखाया तो जनता ने हरीश जी को...। फिर भी नेता तो हरीश दा ही हैं एक और सिपाही थे जिनको दस जनपथ का सबसे वफादार माना जाता था और जिन्हें प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी भी सौंपी गई...। अब इन्हें बी उत्तर प्रदेश की बंजर भूमि में कांग्रेस का धान बोने के लिए भेज दिया...। बेचारे किशोर भाई क्या करते... दस जनपथ के सिपाही जो थे वहां भी पहुंचकर राहुल बाबा की ताजपोशी का प्रस्ताव पास कराने में लग गए। पार्टी के सबसे पढ़े लिखे समझदार नेता नवप्रभात भी हैं जिन्होंने वोटिंग मशीन पर सवाल उठाए... लेकिन उन्हें भी मशीन पर हुई चर्चा से भी अलग रखा गया...।

अब कमान प्रीतम सिंह जी पर है जिन्हें मंत्री बनने का अनुभव है पर संगठन का नहीं... फिर एक कांग्रेस के जमाने के नेता की टिप्पणी... कि कांग्रेस संगठन कब थी... नारा थी... कभी... अंग्रेजों भारत छोड़ो... तो कभी गरीबी हटाओ... कभी इंदिरा लाओ देश बचाओ... आदि इत्यादि... ये मनी प्लांट है जो सत्ता के लबालब भरे तरल पदार्थ में जीवित रहता है...। यकीन न हो तो पिछला इतिहास उठा के देख लो...। बहरहाल मोदी जी के कांग्रेसविहीन भारत के स्वप्न को पूरा करने के लक्ष्य के लिए बीजेपी के नेताओं को भई हरीश रावत जी का शुक्रिया अदा करना चाहिए... बाकी आगे की जिम्मेदारी राहुल बाबा ने अब संभाल ही ली है... जय हो।

बेचारे कांग्रेसी अब क्या करें। अध्यक्ष जी हैं कि संगठन के अनुभव से विरत हैं। जिन्हें अनुभव था वह लखनऊ में वनवास काट रहे हैं। ...हरीश जी नेता ठहरे... वौ भी दो-दो जगहों से हारे हुए... जब सरकार में थे तो अपने परिवार के आगे कुछ दिखाई नहीं देता था... अब न तो अपना परिवार काम आ रहा है और न ही कांग्रेस परिवार जिनके कारण रौनक थी और विरोध स्वरूप ही सही कांग्रेस के जिंदा रहने का अहसास दिलाते थे वह अब उत्तराखंड सरकार के नवरत्नों में शामिल हो गए... घर के झगड़े निपटाते निपटाते हरीशजी ने पूरी कांग्रेस ही निपटा दी।

हरिद्वार के एक हारे हुए कांग्रेसी विधायक परेशान हैं... आंदोलन खड़ा करना है तो कोई न कोई मुद्दा तो चाहिए ही था... अब बेरोजगारी को ही मुद्दा बनाने पर तुले हुए हैं... सही भी है बेरोजगारी का दर्द कांग्रेसियों से ज्यादा कौन महसूस कर सकता है। चलो इस बहाने कुछ तो करने का मौका मिलेगा।

फिलहाल तो राहुल भइया ने जान फूंक दी है... कुछ दिन उनके नाम पर पार्टी जागरण की मुद्रा में आ जाएगी और बाकी रातें...साकिया आज मुझे नींद नहीं आएगी... सुना है तेरी महफिल में रतजगा है... गा कर काट लेंगे...।

(लेखक न्यूजट्रैक/अपना भारत उत्तराखंड के स्थानीय संपादक हैं)

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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