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एक-एक कदम बढ़ा कर आत्म विश्वास से फहह हुआ माउंट एवरेस्ट 29 मई
एक पैर गंवा चुकने के बावजूद अरूणिमा ने 21 मई 2013 को 29028 फुट ऊंचे माउंट एवरेस्ट को फतह कर एक नया इतिहास रचा।
हर साल, दुनिया भर से हजारों लोग माउंट एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने का प्रयास करते हैं। हालांकि, ऐसा करने के लिए अनुकूल मौसम की एक बहुत छोटी सी अवधि है | मानसून की शुरुआत से पहले बहुत से लोग अपने इस सपने को जीते हुए अपनी तीव्र इच्छाशक्ति के दम पर इस चोटी पर पहुंच पाए हैं।
कई भारतीय महिला माउंटेनीयर्स माउंट एवरेस्ट पर चढ़ कर विभिन्न श्रेणियों में ऐसा करने वाली पहली महिला भी बन गई हैं। महिलाओ को सुकोमल नारी कही जाने वाली स्त्रियों विश्व का कौन सा काम है जो नही कर रही | देश के विकास के साथ रक्षा ,बच्चों को जन्म देने से, परिवार के लिए काम करके कमाने से लेकर ऊँचे से ऊँचे पहाड़ों पर चढ़ने तक, महिलाओं ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी जो पहचान बनाई है वह सराहनीय है।
कौन है अरुणिमा सिंहा
आज हम बात करेंगे अरुणिमा सिंहा की जो एक कायस्थ परिवार से हैं | वह अपने प्रदेश के अंबेडकर नगर की निवासी हैं| और केंद्रीय अद्योगिक सुरक्षा बल (सी आई एस एफ) में हेड कांस्टेबल के पद पर 2012 से कार्यरत हैं। इनकी कहानी बड़ी रोंगटे खड़े करने वाली बात 12 अप्रैल 2011 को लखनऊ से देहरादून जाते समय उसके बैग और सोने की चेन खींचने के प्रयास में कुछ अपराधियों ने बरेली के निकट पदमवाती एक्सप्रेस से अरुणिमा को बाहर फेंक दिया था, जिसके कारण वह अपना एक पैर गंवा बैठी, लेकिन एक पैर गंवा चुकने के बावजूद अरूणिमा ने गजब के जीवट का परिचय देते हुए 21 मई 2013 को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (29028 फुट) को फतह कर एक नया इतिहास रचते हुए ऐसा करने वाली पहली विकलांग भारतीय महिला होने का रिकार्ड अपने नाम कर लिया। एक पैर के सहारे दुनिया की छह प्रमुख पर्वत चोटियों पर तिरंगा लहराकर विश्व कीर्तिमान स्थापित कर चुकी भारत की महिला पर्वतारोही अरुणिमा सिन्हा ने अपने नाम एक और बड़ी उपलब्धि दर्ज कर ली है। उन्होंने दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटियों में शामिल अंटार्कटिका के 'विन्सन मैसिफ़' हिल पर भी तिरंगा फहराने में कामयाबी हासिल कर ली है। मात्र दो साल इतना बड़ा इतिहास रच दिया जिसके लिए उन्हें पद्मश्री से नवाज़ा गया |आप (believe system ki theory ) ने जन्म दिया हर mba और मोटिवेशन स्पीच का हिस्सा बन गई ।
माउंट एवरेस्ट चढ़ाई की पहली सफलता
माउंट एवरेस्ट के अनेक रोमांच से भरपूर क़िस्से व रेकार्ड है । माउंट एवरेस्ट चढ़ाई की पहली सफलता साल 1953 में एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे ने हासिल की। ऐसा नहीं है कि इसके लिए पहले प्रयास नहीं किए गए। साल 1921 में इसके लिए पहला असफल प्रयास किया गया था। एवरेस्ट पर चढ़ाई दुनिया के सबसे कठिन और संघर्षपूर्ण कामों में से एक है। एवरेस्ट पर चढ़ने के पहले प्रयास से लेकर अब तक 308 से ज्यादा पर्वतारोहियों की मौत हो चुकी है |
अंतरराष्ट्रीय माउंट एवरेस्ट दिवस
29 मई, 1953 को नेपाल के तेनजिंग नोर्गे शेरपा और न्यूजीलैंड के एडमंड हिनेरी ने पहली बार माउंट एवरेस्ट पर चढ़े थे | इस दिन को विश्व में अंतरराष्ट्रीय माउंट एवरेस्ट दिवस माना गया।नेपाल ने वर्ष 2008 से इस दिवस को मनाने का निणर्य लिया था |जब महान पर्वतारोही एडमंड हिलेरी का निधन हो गया था।यह दिवस काठमांडू और एवरेस्ट क्षेत्र विशेष कार्यक्रमों के साथ मनाया जाता है।
यही वह दिन है जब दुनिया की सबसे ऊची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट को इंसान ने फतह किया। एडमंड हिलरी और तेनजिंग नॉर्गे इसी दिन 1953 में माउंट एवरेस्ट पर पहुंचने वाले पहले व्यक्ति बने थे। उसकी याद में इस दिन को माउंट एवरेस्ट दिवस के तौर पर मनाया जाता है। 29 मई भारत के इतिहास में एक अहम तारीख हैं,इसी दिन किसानों की आवाज बुलंद करने वाले नेता चौधरी चरण सिंह का 1987 में निधन हुआ था। वह देश के पांचवें प्रधानमंत्री थे।
आगरा वसियों की तरफ़ से सभी पर्वतारोहियों कोमबधाई व शुभकामनाएँ देते है साथ ही जो लोग इस मिशन में अपनी जान गवा बैठे है ईश्वर से उनकी आत्मा की शांति की प्रार्थना करते है ।
(नोट- ये लेखक के निजी विचार हैं)