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राजेन बाबू की जयंती पर विशेष, सादगी क्या ? ढोंगी कौन

Rajendra Prasad Jayanti Special: राजेन्द्र प्रसाद को राजेन बाबू इसी नाम से पुकारे जाते थे। वहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति जनरल आइजनहोवर ने राजेन बाबू को ईश्वर का नेक आदमी बताया था। अमेरिका आमंत्रित भी किया था। विदेश मंत्रालय ने आमंत्रण को निरस्त करवाया। विदेश मंत्री ने कारण बताया कि अवसर उपयुक्त नहीं है।

K Vikram Rao
Written By K Vikram RaoPublished By Deepak Kumar
Published on: 3 Dec 2021 8:00 PM IST
राजेन बाबू की जयंती पर विशेष, सादगी क्या ? ढोंगी कौन
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Rajendra Prasad Jayanti Special: आज पूर्व राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद की जयंती है। आज आपको हम राजेन्द्र प्रसाद के बारे में बताने वाले हैं, जो शायद किसी को पता हो। दरअसल राजेन्द्र प्रसाद को राजेन बाबू इसी नाम से पुकारे जाते थे। वे तब राजेन्द्र प्रसाद अपना गमछा तक नहीं धोते थे। सफर पर नौकर लेकर चलते थे। चम्पारण सत्याग्रह पर बापू का संग मिला तो दोनों लतें बदल गई। राष्ट्रपति भवन में भी धोती खुद धोने लगे। घुटने तक पहनी धोती उनका प्रतीक बन गई। जब सम्राट जॉर्ज पंचम से बकिंघम महल में 1931 में गांधी जी से भेंट करने गए थे तब वे सूती वस्त्र ही पहने थे। लन्दन का तापमान जीरो डिग्री था। रिपोर्टरों ने पूछा ''ठण्ड नहीं लगी?'' बापू का जवाब था ''सम्राट इतना लबादा ओढे थे जो हम सब के लिए पर्याप्त लगा।''

आजकल तो रिटायर राष्ट्रपति को आलीशान विशाल बंगला मिलता है। राजेन बाबू सीलन में सदाकत आश्रम (कांग्रेस आफिस, पटना) में रहे। दमे की बीमारी थी। मृत्यु भी श्वास के रोग से हुई। जब उनका निधन 28 फरवरी 1963 हुआ, तो उनके अंतिम संस्कार में पंडित जवाहरलाल नहीं गए। बल्कि प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन (President Dr. Radhakrishnan) से आग्रह किया था कि वे भी न जायें। डॉ. राधाकृष्णन ने(President Dr. Radhakrishnan) जवाब में लिखा कि ''मैं तो जा ही रहा हूं। तुम्हें भी शामिल होना चाहिये।'' यह पत्र अभी भी उपलब्ध है। लेकिन नेहरु नहीं गये, बल्कि अल्प सूचना पर जयपुर का दौरा लगवा लिया। वहां सम्पूर्णानन्द राज्यपाल थे। राजेन बाबू के साथी और सहधर्मी रहे। नहीं जा पाये।

उन्होंने प्रधानमंत्री से दौरा टालने की प्रार्थना की थी। पर नेहरु जयपुर गये। राज्यपाल को एयरपोर्ट पर अगवानी की ड्यूटी बजानी पड़ी। खुद जीते जी अपने को भारत रत्न प्रधानमंत्री नेहरु (Prime Minister Pandit Jawaharlal Nehru) ने दे डाला। प्रथम राष्ट्रपति को पद से हटने के बाद दिया। मौलाना आजाद ने भारत रत्न लेने से इन्कार कर दिया था, क्योंकि वे (शिक्षा मंत्री) उसे परामर्श समिति के स्वयं सदस्य थे। ऐसी हिचक प्रधानमंत्री को कभी नहीं हुई।

आयकर का भुगतान सुनिश्चित करने के लिए PMO से राजेन बाबू को मिला था नोटिस

एक बार प्रधानमंत्री कार्यालय से राजेन बाबू को नोटिस मिला कि अपना आयकर का भुगतान सुनिश्चित करें। राजेन बाबू ने याद दिलाया कि वे केवल आधा वेतन लेते हैं। यूं भी राष्ट्रपति आयकर से मुक्त रहते हैं। सबसे दुखद घटना राजेन बाबू के साथ हुई जब उनका एक महत्वपूर्ण भाषण होना था। विधि संस्थान में ''राष्ट्रपति बनाम प्रधानमंत्री'' की शक्तियों वाला विषय था। संपादक दुर्गादास की आत्मकथा के अनुसार नेहरु खुद सभा स्थल पहुंच गये और राष्ट्रपति के भाषण की सारी प्रतियां जला दीं। राष्ट्रपति के निजी सचिव वाल्मीकि बाबू बमुश्किल केवल एक प्रति ही बचा पाए।

जनरल आइजनहोवर ने राजेन को बताया- ईश्वर का नेक आदमी

अमेरिकी राष्ट्रपति जनरल आइजनहोवर (US President General Eisenhower) ने राजेन बाबू को ''ईश्वर का नेक आदमी'' बताया था। अमेरिका आमंत्रित भी किया था। विदेश मंत्रालय ने आमंत्रण को निरस्त करवाया। विदेश मंत्री ने कारण बताया कि अवसर उपयुक्त नहीं है। (दुर्गादास : ''इंडिया फ्रॉम कर्जन टू नेहरू एण्ड आफ्टर'' : पृष्ठ—331.339, अनुच्छेद 13, शीर्षक राष्ट्रपति बनाम प्रधानमंत्री)।

ब्रिटिश गवर्नर जनरल माउन्टबेटन के बाद सी. राजगोपालाचारी बने प्रथम भारतीय राष्ट्राध्यक्ष

सर्वाधिक रुचिकर प्रश्न है कि यह अदना बिहारी ग्रामीण गणतंत्र का प्रथम नागरिक कैसे निर्वाचित हुआ? ब्रिटिश गवर्नर जनरल माउन्टबेटन (British Governor General Mountbatten) के बाद प्रथम भारतीय राष्ट्राध्यक्ष सी. राजगोपालाचारी (C. Rajagopalachari) बने थे। उन्हें नेहरु पहला राष्ट्रपति बनाना चाहते थे। सरदार वल्लभभाई पटेल (Sardar Vallabh Bhai Patel) का मत भिन्न था। उन्हें याद रहा कि राजगोपालाचारी ने 1942 के ''भारत छोड़ो'' आन्दोलन का विरोध किया था। बल्कि जिन्ना की पाकिस्तान वाली मांग का पूरा समर्थन कर विभाजन के पक्ष में अभियान भी चलाया था।

औपचारिकता वश बस प्रधानमंत्री द्वारा राजेन बाबू को सूचित किया गया था कि राजगोपालाचारी गवर्नर जनरल से राष्ट्रपति पद संभालेंगे। चकित होकर राजेन बाबू बोले कि वे सरदार पटेल के आग्रह पर नामांकन दायर कर चुके है। अपने हठ में नेहरु ने राजेन बाबू से राजगोपालाचारी के पक्ष से प्रस्ताव वापस लेने का आग्रह किया। राजेन बाबू का बस एक ही वाक्य था : ''क्या मैं राष्ट्रपति पद के लायक नहीं हूं?''

सोमनाथ मंदिर राष्ट्र के गौरव और विजय का प्रतीक: सरदार पटेल

जब सरदार पटेल ने पुनर्निर्मित सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन (Somnath Temple Inauguration) समारोह पर राष्ट्रपति को आमंत्रित किया तो नेहरु ने कहा कि ''सेक्युलर राष्ट्र के प्रथम नागरिक के नाते आपको धर्म से दूर रहना चाहिये।'' पर राजेन बाबू गुजरात गये। सरदार पटेल ने बताया राजेन बाबू को कि जब - जब भारत मुक्त हुआ है, तब - तब सोमनाथ मंदिर का दोबारा निर्माण हुआ है। यह राष्ट्र के गौरव और विजय का प्रतीक है।

उस दौर में बहस चली थी कि राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री, कौन संविधान के तहत अधिक ताकतवर है? लखनऊ के काफी हाउस में डॉ. राममनोहर लोहिया (Dr. Ram Manohar Lohia) से एक ने पूछा तो जवाब मिला ''निर्भर करता है कि नेहरु किस पद पर आसीन हैं।'' संविधान को बस खिलौना बना डाला गया। तो यह गाथा है राजेन बाबू की।

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Deepak Kumar

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