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कोरोना की महामारी कहीं ना लिख दे 'उदंत मार्तन्ड काल की आर्थिक तंगी

लोकतंत्र का चौथा स्तभ हिंदी पत्रकारिता अपने तमाम उतार चढ़ाव देखते हुए 195 साल का सफर पूरा कर रहा है।

rajeev gupta janasnehi
Written By rajeev gupta janasnehiPublished By Shweta
Published on: 30 May 2021 10:29 AM IST
कॉन्सेप्ट फोटो
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कॉन्सेप्ट फोटो सोशल मीडिया

लोकतंत्र का चौथा स्तभ हिंदी पत्रकारिता अपने तमाम उतार चढ़ाव देखते हुए 195 साल का सफर पूरा कर रहा है। यह कोरोना ( corona) वर्ष 2021 आज हिंदी पत्रकारिता दिवस की खुशी इस महामारी में अनेक पत्रकारिता से जुड़े लोगों की बली ली है। फिर भी पत्रकारिता का काम सतत चालू हैं। हिंदी पत्रकारिता ने भी हर युग में वो सब देखा है जो सब क्षेत्र में देखा जाता है |

परतंत्र भारत की राजधानी कलकत्ता में अंग्रजी शासकों की भाषा अंग्रेजी के बाद बांग्ला और उर्दू का प्रभाव था। इसलिए उस समय अंग्रेजी, बांग्ला और फारसी में कई समाचार पत्र निकलते थे। हिंदी भाषा का एक भी समाचार पत्र मौजूद नहीं था। हां, यह जरूर है कि 1818-19 में कलकत्ता स्कूल बुक के बांग्ला समाचार पत्र 'समाचार दर्पण' में कुछ हिस्से हिंदी में भी होते थे।

इस हिंदी पत्रकारिता के वजूद की नींव 30 मई 1826 को कानपुर के पं. जुगल किशोर शुक्ल के देवनागरी में हिन्दी का पहला समाचार पत्र 'उदंत मार्तन्ड' से कलकत्ता से पड़ी। परंतु पैसे के अभाव में 500 प्रतिलिपि वाला अखवार एक साल भी ना चल सका। कारण दो थे एक आर्थिक तंगी दूसरा हिंदी के पाठकों का ना होना जबकि हिंदी भाषी क्षेत्र में डाक खर्च रियायत के बाद भी हिंदी वाले राज्य के पाठकों में रुचि पैदा ना कर सका।

हिंदी पत्रकारिता का उस समय लगाया गया वटवृक्ष आज इतना विशाल हो गया है कि आज इसके बिना कल्पना करना भी मुश्किल है। हिंदी पत्रकारिता ने आज अंग्रेज़ी भाषाई की पत्रकारिता को काफी पीछे छोड़ दिया। हिन्दी पत्रकारिता ने एक लंबा सफर 'उदन्त मार्तण्ड' के आरंभ से लेकर आज अनेक समाचार पत्र व पत्रिका दुनिया के समाचार , मनोरंज , ज्ञान वर्धक के साथ एक बहुत बड़े वर्ग को रोज़गार देता चला आ रहा है। हम सभी जानते है समय बदलता है समय के साथ देश की आर्थिक परिस्थिति और राजनीतिक परिवर्तन से हर क्षेत्र बदलाव आता है। मौसम के बदलाव की तरह हिन्दी पत्रकारिता भी अछूता नही रहा है। हिन्दी पत्रकारिता ने भी बहुत बसंत देखे है कभी हरा तो कभी पतझड़। आरंभ के समय किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि हिन्दी पत्रकारिता इतना लंबा सफर तय करेगी। वर्तमान की परिस्थितियां 'उदन्त मार्तण्ड' के आरंभ से आज काफी अलग हैं। आज काफी संख्या में उघोगपति पत्रकारिता पर पैसा लगा रहे हैं और अब ये केवल पत्रकारिता न रहकर एक बड़ा कारोबार बन गया है। गत 195 वर्षों में हिन्दी अखबारों व समाचार पत्रिकाओं के क्षेत्र में काफी नए शुरू हुए और बंद हुए पर हिन्दी पाठको ने अपने अखबारों को पूरा समर्थन देने में कोई कोताही नही की हैं।

चौथे स्तभ की वैसे तो हिन्दी पत्रकारिता की शुरुआत बंगाल से हुई लेकिन हिंदी पाठकों को आकर्षित करने में इसका श्रेय राजा राममोहन राय को दिया जाता है। राजा राममोहन राय ने ही सबसे पहले प्रेस को सामाजिक उद्देश्य से जोड़ा और भारतीयों के सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक हितों का समर्थन किया।

उन्होंने समाज में व्याप्त अंधविश्वास और कुरीतियों पर प्रहार किए। आज भी हिन्दी पत्रकारिता अपने उद्देश्य राजनीतिक सामाजिक अर्थ के साथ तमाम सामाजिक जिम्मेदारी को चाहे स्वस्थ्य रीति रिवाज हो नये अविष्कार हो या खेल हो या विदेश नीति गरीब का हक या विपक्ष की बात अपने पत्रों के जरिए जनता व सरकार तक रख रहे है ।

एक समय हिन्दी पत्रकारिता मिशन था| आज व्यापार है,उस समय धन अभाव था आज मिशन है धन के लाभ में कमी ना हो |आज के दिन भी पहले जैसे मिशन वाले थे| आज भी मिशन है पर अनेक पत्रकारों ने भौतिक अवशकता के लिए राजनीतिक बिजनिस या संस्थान से समझोत कर लिया हैं।

आज कल हिन्दी पत्रकारिता का परिवर्तन युग चल रहा है। प्रिंट की जगह धीरे-धीरे इलेक्ट्रॉनिक व वेब चेंनल में परिवर्तन हो रहा है लेकिन प्रिंट का अस्तित्व हमेशा रहेगा ऐसा जनकारो का कहना है। आज भी उसे पढ़ने का एक नशा तो है उसकी संख्या इलेक्ट्रॉनिक व वेब चेंनल से अधिक हैं,इसलिए हिन्दी पत्र पत्रिका के साथ पत्रकारिता की भी माँग बढ़ी है कम दामों पर प्रतिस्पर्धा आज इस बात को भी नही नकारा जा सकता । खबर में गुणवत्ता की जगह ख़बर की संख्या ने ले ली चाहे इलेक्ट्रॉनिक ,वेब चेंनल व प्रिंट हों।

आज कोरोना महामारी से एक बार फिर हिन्दी पत्रकारिता पर संकट के बादल छा रहे है| हिंदी पाठक कोरोना वाइरस के डर से अखबार की माँग कम हो गयी। वाइरस ने विश्व में बड़े स्तर आर्थिक कमी का प्रभाव पड़ रहा है। अखबार भी आर्थिक तंगी से अछूते नहीं हैं, ऐसे में हिन्दी पत्रकारिता पर असर पड़ना स्वाभाविक है ।

आज हिंदी पत्रकारिता दिवस पर सभी पत्रकारों को ना केवल संगठित होना पड़ेगा बल्कि जो दूसरों की लड़ाई को,न्याय के लिए ,व अधिकार के लिए कोरोना महामारी में भी अपनी जान को जोखिम में डालते हुए उनके लिए लड़े हैं उन्हें अपने लिए भी लड़ना होगा चाहे उसके लिए उन्हें अपनी बात रखने के और झंडा उठाना पड़े। आज भारत सरकार को सभी पत्रकारों को कोरोना वारियस की श्रेणी में रखते हुए एक बौद्धिक श्रमिक को क्या वेतनमान ,सुविधा , सुरक्षा मिलनी चाहिए उस पर विचार करना होगा। अतः हिंदी पत्रकारिता दिवस पर हमें शपथ लेने की जरूरत है संगठित होकर आने वाली परेशानी का सामना करेंगे। अंत में सभी हिंदी पत्रकार सभी पत्रकारों को हिंदी पत्रकार दिवस की बहुत-बहुत बधाई व हार्दिक अभिनंदन।

*दिन से रात,हो धूप या बरसात

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Shweta

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