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रामजन्मभूमि पूजनः कुछ हम किये, कुछ तुम करो

राम के लिए लोक का सुख सबसे महत्वपूर्ण है। लोक में कोई छूटता नहीं। पर मंदिर निर्माण की शुरुआत के बाद लोक के बाक़ी पक्षों को भी खुद को बदलना होगा। लोक के बदलाव की बड़ी नज़ीर यह हो सकती थी कि राम मंदिर का निर्माण अदालती फ़ैसले की जगह लोक के लोग मिलकर कर लेते।

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Published on: 6 Aug 2020 4:21 PM IST
रामजन्मभूमि पूजनः कुछ हम किये, कुछ तुम करो
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रामजन्मभूमि पूजनः उत्साह, आह्लाद, भावों पर संयम, मर्यादा की जीत

योगेश मिश्र

यह सचमुच बेहद धर्मनिरपेक्ष दिन था। यह सबसे बड़ा लोकतांत्रिक दिवस था। यह परीक्षा में सहिष्णुता के खरा उतरने का दिन था। लंबे समय की साधना, लंबे समय के संघर्ष, तमाम लोगों के शहीद होने, 76 युद्धों के बाद उगी हुई नई सुबह का दिन था। नये भोर का दिन था। ऐतिहासिक व भावपूर्ण क्षण नहीं, दिन था। आनंद का दिन था। यह आनंद संकल्प के बाद झेले गये कष्ट के बाद का दिन था। यह पाँच सदी पुराने संताप से मुक्ति का आनंद है। खुली आँखों देखे गये सपने के पूरे होने का आनंद है। उत्साह , आह्लाद, भाव विभोर होने का अवसर है। पर सबको भगवान राम की मर्यादा के अनुकूल ही रखा गया। कोई कहीं मुखर नहीं हुआ।

अद्भुत मर्यादा

इस दिवस को देश के बहुसंख्यक समाज ने उस तरह नहीं मनाया जैसा मनाया जाना चाहिए। जिस उत्साह का अतिरेक दिखना चाहिए था, वह नहीं दिखा। संयम रखा। यह संयम तब भी रखा जब सर्वोच्च अदालत का फ़ैसला मंदिर के पक्ष में आया।

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उस समय तो अल्पसंख्यक जिस राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को निशाने पर लेता रहता है, उसके ही लोगों ने देश के लोगों को फ़ैसले की प्रसन्नता अपने द्वार, अपने मंदिर में सिर्फ़ दीप जलाकर व्यक्त करने को तैयार किया। मैं स्वयं दत्तात्रेय हासबोले जी से उस समय मिला।

कुछ मीडिया के साथियों के साथ उनसे बात थी। वह हम लोगों को यह बता रहे थे कि मीडिया जनमानस को शांत प्रतिक्रिया को तैयार करने का काम करें।किया भी। 5 अगस्त, 2020 के ऐतिहासिक दिन भी केवल एक और विजय का उल्लास लोगों में पढ़ा गया। दिखाया नहीं गया। दिखाना नहीं था।

रामजन्मभूमि पूजनः उत्साह, आह्लाद, भावों पर संयम, मर्यादा की जीत

इसे अल्पसंख्यकों को मिसाल के तौर पर लेना चाहिए । क्योंकि राम मंदिर देश की सनातनी संस्कृति व हिंदू आस्था के ललाट पर विजय तिलक है। राम देश के लोकभावना की संजीवनी हैं। भारतीयों के अपराजित पौरूष हैं। वह हमारी साँसों में हैं। हमारी संस्कृति में हैं। वह हमारी प्रेरणा हैं।

अब तो समझ जाओ

हम हर प्रेरणा के लिए उनकी ओर ही देखते हैं।अब तो समझ में आ जाना चाहिए कि भगवान राम बनाम मीर बाक़ी व बाबर नहीं किया जाना चाहिए था। 492 साल की लंबी क़ानूनी लड़ाई नहीं लड़ी जानी चाहिए था। छोटे बड़े 76 युद्ध को अवसर नहीं देना चाहिए था ।

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तक़रीबन 25 पीढ़ियों को प्रतीक्षा में नहीं खड़ा रखना चाहिए था। क्योंकि 1949 से 1992 के दौरान वहाँ कभी नमाज़ नहीं पढ़ी गयी। खुदाई में सातवीं शती के मंदिर के अवशेष मिल गये थे। आस्ट्रिया के एक पादरी 1740 से 1785 तक भारत में रहे। 45 साल के भारत भ्रमण पर किताब लिखी है।

अयोध्या के बारे में लिखा है, “रामकोट में गुंबदों वाला ढाँचा है, जिसमें 14 काले कसौटी के पत्थर के खंभे लगे हैं। इसी स्थान पर भगवान श्रीराम ने अपने तीन भाइयों के साथ जन्म लिया था। इस स्थान पर बने मंदिर को बाबर ने तुड़वाया। “

पंत से राजीव तक

मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत एक उप चुनाव में मंदिर बनाने की बात कह चुके थे। राजीव गांधी ताला खुलवा व शिलान्यास करवा चुके थे, उनके झाँसे में नहीं आना चाहिए था।

अयोध्या तो इस अवसर पर पुलकित रही। उसकी मनोरम छटा बरनि न जाई जैसी हो उठी थी। रविंद्र जैन का संगीत, धार्मिक गाने, राम चरित मानस व हनुमान चालीसा बज रहे थे। भजन गाये व बजाये जा रहे थे।

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सरयू पुल से फ़ैज़ाबाद शहर के अंतिम छोर की दिवारों पर राम वन गमन से जुड़े दृश्य, राम दरबार, राम परिवार की पेंटिंग बदलाव की बयार का अहसास कराने के लिए अकार दी गयी है।

संकल्प सिद्ध हुआ

कार्यशाला गुलज़ार हो उठी है। देश के लोगों का व्रत फलित हुआ। संकल्प सिद्ध हुआ। श्रीराम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सियापति रामचंद्र कह कर बता दिया कि सीता की भी मूर्ति मंदिर में होगी।

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36 धर्म पंथों के 136 संतों महंतों की उपस्थिति में वैदिक मंत्रों के साथ पूजा अर्चना व भूमि पूजन का दृश्य देखते बन रहा था। भक्त, भगवान और भावना का संगम प्रधानमंत्री ने सियापति रामचंद्र के आगे साष्टांग दंडवत होकर प्रदर्शित किया।

प्रधानमंत्री ने सही कहा-“कन्याकुमारी से क्षीरभवानी तक, कोटेश्वर से कामाख्या तक, जगन्नाथ से केदारनाथ तक, सोमनाथ से काशी विश्वनाथ तक, सम्मेद शिखर से श्रवणबेलगोला तक, बोधगया से सारनाथ तक, अमृतसर से पटना साहिब तक, अंडमान से अजमेर तक, लक्ष्यद्वीप से लेह तक, आज पूरा भारत,राममय है।”

सीधा संदेश

मोदी कहते हैं कि,” राम काजू कीन्हें बिनु मोहि कहाँ विश्राम ।” इसमें सीधा संदेश है कि मंदिर निर्माण के बाद जो राम के काम हैं उसे प्रधानमंत्री ने हाथ में ले लिया है। अब केवल राम राज्य का काम बचता है।

राम राज्य में विश्वास को विद्यमान से जोड़ने, नर को नारायण से जोड़ने, लोक को आस्था से जोड़ने, वर्तमान को अतीत से जोड़ने और स्वं को संस्कार से जोडऩे के काम वह हाथ में लेने वाले हैं।

राम के लिए लोक का सुख सबसे महत्वपूर्ण है। लोक में कोई छूटता नहीं। पर मंदिर निर्माण की शुरुआत के बाद लोक के बाक़ी पक्षों को भी खुद को बदलना होगा। लोक के बदलाव की बड़ी नज़ीर यह हो सकती थी कि राम मंदिर का निर्माण अदालती फ़ैसले की जगह लोक के लोग मिलकर कर लेते।

लम्हों की ख़ता से सदियों ने सजा पाई है। अब हम सब को लम्हों को अपनी रहनुमाई का अवसर ही नहीं देना है।नहीं देना चाहिए ।

योगेश मिश्र

लेखक वरिष्ठ पत्रकार व न्यूजट्रैक/अपना भारत के संपादक हैं।



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