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Ram Mandir History: रामो विग्रहवान धर्म, राम मंदिर का जानें इतिहास

Ram Mandir History: अयोध्या को भगवान श्री राम के पूर्वज सूर्य के पुत्र विवस्वान के पुत्र वैवस्वत मनु ने बसाया था। इसी नगरी पर सूर्यवंशी राजाओं का शासन महाभारत काल तक रहा।

Anshu Sarda Anvi
Written By Anshu Sarda Anvi
Published on: 20 Jan 2024 3:10 PM IST (Updated on: 20 Jan 2024 3:39 PM IST)
Ram Mandir 500 year old history
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Ram Mandir 500 year old history   (PHOTO:SOCIAL MEDIA )

Ram Mandir History: 'राम' लिखते ही लगता है कि यह हृदय, यह मन सब कुछ रम गया हो उस परमात्मा में जिसे सिर्फ भारतवासी ही नहीं बल्कि देश के बाहर भी अनेक देशों में पूजा जाता है। जो वाल्मीकि के भी राम हैं, जो तुलसी के भी राम हैं, जो कबीर के भी राम हैं, तो शबरी के भी राम हैं, वे गांधी के भी राम हैं, तो निराला के भी राम हैं। जिसने उन्हें जैसे देखा, जैसे सोचा वह उसके वैसे ही राम हैं। सगुण भी हैं तो निर्गुण परम ब्रह्म भी। भारतीय संस्कृति में राम शाश्वत के प्रतीक हैं, मानवता के प्रतीक हैं। 99 रास करने वाले रासेश्वर श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम भी हैं। महर्षि वाल्मीकि के अनुसार 'रामो विग्रहवान धर्म' अर्थात राम मूर्तिमान धर्म हैं। सूर्यवंशी भगवान राम के बारे में रामचरितमानस में भी लिखा है-

' आदि अंत कोउ जासु न पावा,

मति अनुमति निगम अस गावा।'

अर्थात जिसका आरंभ कब हुआ और अंत कब होगा वह कोई नहीं कहता। शास्त्रों में लिखा है कि हमारे देश की ये सात नगरियां मोक्षदायिका हैं जिनमें पहला नाम अयोध्या का है- 'अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांची अवंतिका

पुरी, द्वारिकावती ज्ञेया: सप्तैता मोक्षदायिका।'

अयोध्या को भगवान श्री राम के पूर्वज सूर्य के पुत्र विवस्वान के पुत्र वैवस्वत मनु ने बसाया था। इसी नगरी पर सूर्यवंशी राजाओं का शासन महाभारत काल तक रहा। इसी अयोध्या नगरी में सूर्यवंश में प्रकट हुए दशरथ पुत्र श्री राम का चरित्र उदात्त है, वह एक आदर्श मनुष्य के साकार रूप हैं। राम के समय की अयोध्या की शोभा एवं महत्ता की तुलना महर्षि बाल्मीकि ने इंद्रलोक से की है।



भगवान श्री राम के जल समाधि लेने पर वीरान हुई अयोध्या

भगवान श्री राम के जल समाधि लेने के पश्चात अयोध्या एक समय में वीरान हो गई थी । लेकिन उनकी जन्म भूमि पर बना उनका महल वैसे का वैसा ही था। बाद में भगवान श्री राम के पुत्र कुश ने एक बार फिर से राजधानी अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया। इसके बाद सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों ने इस पर आखिरी राजा महाराजा बृहद्वल तक शासन किया। महाभारत के युद्ध के पश्चात भी श्री राम जन्मभूमि का अस्तित्व बना रहा। ईसा के लगभग 100 वर्ष पहले उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट महाराजा विक्रमादित्य द्वितीय ने संतों के निर्देश से यहां एक भव्य मंदिर के साथ ही सरोवरों , महल और कुएँ आदि बनवाएं। कहते हैं कि उन्होंने श्री राम जन्मभूमि पर काले रंग की कसौटी के पत्थर वाला 84 स्तंभों पर विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था जिसकी भव्यता देखते ही बनती थी। इसके बाद शुंग वंश के प्रथम शासक पुष्यमित्र शुंग ने भी राम मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। गुप्त वंशीय चंद्रगुप्त द्वितीय के समय में भी अयोध्या गुप्त साम्राज्य की राजधानी थी।

गुप्तकालीन महाकवि कालिदास ने भी 'रघुवंशम्' में अयोध्या का कई बार उल्लेख किया है। इसके बाद पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में अयोध्या का नाम 'साकेत ' हुआ जो कि प्रमुख बौद्ध केंद्र के रूप में विकसित हुई। सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार यहां पर 20 बौद्ध मंदिर और 3000 के लगभग भिक्षुओं का वास था। 11वीं शताब्दी में कन्नौज के सम्राट जयचंद ने इस मंदिर पर सम्राट विक्रमादित्य के प्रशस्ति शिलालेख को उखड़वा कर अपना नाम लिखवा दिया। पानीपत के युद्ध के बाद भारत पर आक्रांताओं का आक्रमण बढ़ गया । आक्रमणकारियों ने काशी और मथुरा के साथ-साथ अयोध्या में भी लूटपाट की। मूर्तियां तोड़ी। लेकिन 14वीं सदी तक अयोध्या में राम मंदिर को तोड़ने में वे सफल नहीं हो पाए। विभिन्न आक्रमणों के बाद भी सभी तूफानों को झेलते हुए श्रीराम की जन्मभूमि पर बना भव्य मंदिर सिकंदर लोदी के शासनकाल के दौरान तक बचा रहा। 14वीं शताब्दी में हिंदुस्तान पर मुगलों का अधिकार हो गया। उसके बाद अंततः 1527-28 में बाबर के सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में श्री राम जन्म स्थान पर स्थित प्राचीन और भव्य मंदिर को तोड़कर एक मस्जिद बनवाई जो कि 1992 तक वहां थी।


औरंगजेब ने मस्जिद का निर्माण करा उसका नाम बाबरी मस्जिद रख दिया

हालांकि कहा जाता है कि अकबर और जहांगीर के शासनकाल में हिंदुओं को यह भूमि एक चबूतरे के रूप में पूजा करने के लिए सौंप दी गई थी। उस काल में भारत आने वाले विदेशी यात्री विलियम फिंच और विलियम हॉकिन्स ने अपने यात्रा-वृतांत में राम जन्मभूमि और अयोध्या के बारे में लिखा है। लेकिन औरंगजेब ने यहां मस्जिद का निर्माण करा उसका नाम बाबरी मस्जिद रख दिया था। पहली बार 1822 में फैजाबाद अदालत के एक अधिकारी ने यह दावा किया कि मस्जिद एक मंदिर की जगह थी। उसके बाद निर्मोही अखाड़ा संप्रदाय ने 19वीं शताब्दी के अंत में इस स्थल पर दावा करते समय इस कथन का हवाला भी दिया, जिसके कारण 1855 में इस स्थल पर धार्मिक हिंसा की पहली घटना दर्ज की गई।

1859 में ब्रिटिश प्रशासन ने विवादों से बचने के लिए मस्जिद के बाहरी प्रांगण को अलग करने के लिए एक रेलिंग बनवा दी। 1949 तक यह स्थिति यथावत बनी रही। 1934 से 1949 के दौरान बाबरी मस्जिद वाली इमारत की चाबी मुस्लिम पक्ष के पास रहती थी जो कि पुलिस पहरे में जुम्मे की नमाज के लिए ही खुलती थी। इस दौरान बैरागी साधुओं द्वारा शोर मचाए जाने से नमाज में खलल भी पड़ता था और तनाव बढ़ता था। विवादित स्थल पर आखिरी नमाज 16 दिसंबर, 1949 को हुई थी। कहा जाता है कि हिंदू महासभा के कार्यकर्ताओं द्वारा कथित गुप्त रूप से रामलला की मूर्ति को मस्जिद के अंदर रखा गया। इससे वहां हंगामा मच गया और दोनों पक्षों ने उस जमीन पर अपना-अपना दावा करते हुए दीवानी मुकदमा दायर कर दिया। मस्जिद में मूर्तियों की स्थापना को देखते हुए इस स्थल को विवादित घोषित कर दिया गया तथा प्रशासन ने नमाज पढ़ना बंद करवा दिया।


1980 में शुरू हुआ मंदिर निर्माण का अभियान

1980 में विश्व हिंदू परिषद ने मंदिर निर्माण का अभियान शुरू किया। 1986 में एक जिला न्यायाधीश ने विवादित ढांचे के द्वार फिर से खोलने और हिंदुओं को वहां पूजा करने की अनुमति प्रदान करने का फैसला सुनाया। इसका समर्थन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भी किया। सितंबर 1990 में भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी ने एक रथ यात्रा शुरू का जो कि सोमनाथ से अयोध्या तक की थी, जिसके द्वारा वे प्रस्तावित मंदिर के लिए समर्थन उत्पन्न करना चाह रहे थे। आडवाणी को अयोध्या पहुंचने से पहले ही बिहार की लालू प्रसाद यादव सरकार ने गिरफ्तार कर लिया, इसके बावजूद कारसेवकों का एक बड़ा हिस्सा अयोध्या पहुंच गया। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार ने 30 अक्टूबर, 1990 को अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलाने के आदेश दिये, जहां भारतीय जनता पार्टी के आह्वान पर देशभर से लाखों कारसेवक अयोध्या पहुंचे हुए थे। 6 दिसंबर, 1992 को विश्व हिंदू परिषद, भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी संगठनों ने विवादित स्थान से 200 मीटर की दूरी पर एक रैली का आयोजन किया, जिसमें लगभग डेढ़ लाख के करीब लोग शामिल हुए।

रैली में भीड़ हिंसक हो गई और सुरक्षा बलों पर हावी हो गई। उसने आगे बढ़कर विवादित ढांचे को गिरा दिया। इस विध्वंस के परिणामस्वरुप पूरे भारत में हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिक दंगे हुए, जिसमें काफी लोग मारे गए। 6 दिसंबर को ही तत्कालीन प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव नीत केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया। 16 दिसंबर 1992 को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस विध्वंस की जांच के लिए सेवानिवृत्ति न्यायाधीश एमएस लिब्रहान की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया। 16 वर्षों में 399 बैठकों के बाद आयोग ने 30 जून 2009 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी 1029 पेज की रिपोर्ट सौंपी। अप्रैल 2017 में एक विशेष सीबीआई अदालत ने लालकृष्ण आडवाणी, डॉ मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटिहार और अन्य कई लोगों के खिलाफ आपराधिक साजिश के आरोप तय किये। 30 सितंबर, 2020 को सभी 33 आरोपियों को अनिर्णायक सबूतों के कारण बरी कर दिया गया।


भारतीय पुरातत्व संरक्षण ने भी मस्जिद जिस जमीन पर है, वहां पहले एक गैर इस्लामिक संरचना होने की पुष्टि की थी। 9 नवंबर 2019 को उच्चतम न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि 2.77 एकड़ की विवादित जमीन रामलला की जन्मभूमि है जिसे राम जन्मभूमि ट्रस्ट को सौंपा जाए। एक अलग पांच एकड़ की जमीन उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वफ्फ बोर्ड को दी जाए जहां वह एक मस्जिद का निर्माण करवा सकें। इसके बाद ही रामलला के भव्य मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ हो सका। रामलला 22 जनवरी, 2024 में अपने दिव्य भव्य मंदिर में विराजमान हो जाएंगे।

मंदिर में साल 1989 में 2,75,000 गांवों में पूजन अर्चन करने के बाद राम नाम की शिला अयोध्या लाई गई थीं, वे शिलाएं मंदिर में लगाई गई हैं। वर्षों तक इस देश के अन्यतम आराध्य श्री रामलला वर्षा, धूप, सर्दी में खुले आसमान के नीचे टैंट में विराजमान थे। जिन्हें बाद में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अस्थाई मंदिर में विराजमान करवाया। भारतीय संस्कृति के पुराण पुरुष, जन-जन के प्रेरणा स्त्रोत श्री राम अब जब अपने भव्य मंदिर में विराजमान होंगे, इस मंदिर निर्माण आंदोलन में आहुतियां देने वाले उन सैकड़ों लोगों की आत्मा को शांति मिलेगी और वे लोग भी जिनके अथक प्रयासों से साढ़े पांच सौ वर्ष पुराना यह संकल्प साकार हो रहा है, अवश्य ही शांति और गौरव का अनुभव करेंगे। जय सियाराम।

(लेखिका पूर्वोत्तर के अग्रणी हिंदी समाचार पत्र 'दैनिक पूर्वोदय' में छः वर्षों से नियमित रूप से साप्ताहिक स्तंभ लेखन कार्य। विभिन्न राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों और पुस्तकों में प्रेरक साहित्य लेखन, विशेष रूप से स्त्री विमर्श विषयों पर स्वतंत्र लेखन कार्य। काव्य रचना, साक्षात्कार, अनुवाद, समीक्षा आदि विधाओं में लेखन। दूरदर्शन गुवाहाटी, नार्थ ईस्ट लाइव आदि चैनलों एवं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के कार्यक्रमों में सक्रिय उपस्थिति। ईमेल: anshusarda11@gmail.com)



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Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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