×

Ram katha Artefacts: इलाहाबाद एवं मथुरा संग्रहालयों की रामकथा विषयक कलाकृतियाँ

Ram katha Artefacts: बाद के कालों की अनेक मूर्तियाँ उपलब्ध हैं, जिससे पता चलता है कि श्रीराम की महिमा एवं गरिमा में उत्तरोत्तर वृद्धि होती गई।

Monika
Published on: 18 Jan 2024 3:00 AM GMT (Updated on: 18 Jan 2024 3:01 AM GMT)
Allahabad museums , Mathura museums
X

Allahabad museum , Mathura museum   (PHOTO: SOCIAL MEDIA )

Ram katha Artefacts: भगवान श्रीराम का चरित्र एवं कथानक युगों-युगों से कलाकारों, रचनाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है। राम कथा भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व में लोकप्रिय है। विष्णु के दशावतारों में राम एवं कृष्ण का स्वरूप ही सर्वाधिक जनप्रिय तथा चित्ताकर्षक है। श्रीराम की धीर-गम्भीर, मर्यादित नायक की छवि जन-जन के हृदय में बसी हुई है।

चौथी-पाँचवी शती ई. में गुप्त शासकों के समय से राम-कथा के अनेक प्रसंगों का अंकन विविध रूपों में, विभिन्न माध्यमों में, स्पष्ट रूप से हमें मिलने लगता है। आगे चलकर राम-कथा के दृश्यों के अंकन भारत ही नहीं अपितु दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की कला, स्थापत्य में भी हमें भरपूर दिखते हैं। श्रीराम की स्वतंत्र, पूजनीय प्रतिमाएँ उत्तर भारत में अत्यल्प हैं ।परन्तु दक्षिण भारत में उनकी स्वतंत्र रूप में उपासना लगभग आठवीं शती ई. में, पल्लव राजाओं के काल में प्रारम्भ हो जाने के प्रमाण मिले हैं। इसके उपरान्त, बाद के कालों की अनेक मूर्तियाँ उपलब्ध हैं, जिससे पता चलता है कि श्रीराम की महिमा एवं गरिमा में उत्तरोत्तर वृद्धि होती गई।

'विष्णुधर्मोत्तर पुराण' एवं 'भागवत पुराण' में विष्णु के अवतारों के विभिन्न नाम एवं संख्याएँ मिलती हैं, परन्तु शिल्प में सामान्यतः दस अवतार - मत्स्य, कूर्म, नृसिंह, वराह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध एवं कल्कि का अंकन लोकप्रिय हुआ। प्रथम चित्र श्रीराम का अंकन अधिकांशतः खड़ी प्रतिमाओं के रूप में हुआ है जिनके दो हाथों में धनुष तथा बाण हैं। 'अग्नि पुराण' में उनके चार हाथ भी कहे गए हैं। इनके अनुरूप धनुष बाण के अतिरिक्त शंख एवं खड्ग भी उनके आयुध बताए गए। 'समरांगणसूत्रधार' में श्रीराम को दो, चार, एवं आठ हाथों युक्त भी बताया गया है। अतिरिक्त हाथों में शंख, चक्र, गदा आदि धारण करने का भी उल्लेख है।

इलाहाबाद राष्ट्रीय संग्रहालय में प्राचीन कलाकृतियाँ

इलाहाबाद राष्ट्रीय संग्रहालय में ऐसी कई प्राचीन कलाकृतियाँ हैं जिनसे उनके चरित्र की ऐतिहासिकता का परिपुष्ट प्रमाण तो मिलता ही है, कलाकारों के मन में विद्यमान उनके स्वरूप, लीलाओं तथा राम-कथा के प्रति आकर्षण का परिचय भी मिलता है।

संग्रहालय में श्रीराम के कथानक से अंकित एक पाषाण पट्टिका (संख्या ए.एम. 261) है जिसकी विशेषता है कि यह दुर्लभ पुराकृति श्रीराम एवं निषादराज गुह की मिलन स्थली, गंगा तट पर स्थित, ऐतिहासिक श्रृंगवेरपुर से प्राप्त हुई है। इस पाषाण पट्टिका पर अंकित दृश्य श्रीराम तथा हनुमान की ऋष्यमूक पर्वत पर हुई प्रथम भेंट से सम्बन्धित है।


रामायण का प्रसंग है कि सीता की खोज में वनवासी राम एवं लक्ष्मण जब ऋष्यमूक पर्वत की ओर जा रहे थे, तो उनके तेजस्वी व्यक्तित्व को देखकर सुग्रीव सशंकित हो गया। सुग्रीव अपने भाई बलि के भय से ऋषि मतंग के आश्रम-जो कि उसके लिए सुरक्षित स्थान था—में हनुमान आदि वानर मित्रों के साथ रह रहा था। कहीं ये बालि के भेजे हुए योद्धा तो नहीं हैं ? ऐसा सोच उसने हनुमान से उनकी सच्चाई का पता लगाने हेतु आग्रह किया। हनुमान ने ब्राह्मण का वेष धारण किया तथा अपनी विद्या-बुद्धि से श्रीराम का सही परिचय प्राप्त किया। श्रीराम ने सुग्रीव के मन में विश्वास का संचार कर उसे भयमुक्त किया। अन्ततः हनुमान ने श्रीराम एवं सुग्रीव की दृढ़ मैत्री कराई।

संग्रहालय की इस सन्दर्भित कलाकृति में वल्कल वस्त्रधारी श्रीराम, लक्ष्मण तथा उनके वानर सखा-सेवक हनुमान तथा सुग्रीव एक पंक्ति में खड़े अंकित हैं। वन प्रांतर का प्रभाव देने के लिए पीछे की ओर नाग केसर, अशोक तथा केले के वृक्षों का अंकन है। श्रीराम एवं लक्ष्मण के बाएँ कंधों पर विशाल धनुष तथा दाएँ कंधों पर तीरों से भरे तरकश कसे हुए हैं। वक्ष पर गुप्तकालीन मूर्तियों में प्रायः पाया जाने वाला चौड़ा छन्नवीर है जिसके मध्य भाग पर एक गोल पदक जड़ा है। श्रीराम का दायाँ हाथ अभय-प्रदाता के रूप में ऊपर उठा है। हनुमान और सुग्रीव के नीचे की ओर दो शिशु वानरों को अंकित किया गया है। शैलीगत विशेषताओं के आधार पर कलाकृति को छठीं शती ई. में निर्मित माना गया है।

इलाहाबाद संग्रहालय के संकलन में ही दो स्तम्भों के बीच खड़े श्रीराम की एक स्वतंत्र पाषाण प्रतिमा है जो लालिमायुक्त पत्थर में, लगभग 11- 12वीं शती ई. में निर्मित है। (ए.एम. 1359)। द्विभुजी श्रीराम सिर पर किरीट मुकुट धारण किए हुए हैं। बाएँ कंधे पर धनुष तथा दोनों हाथों से बाण को पकड़े हैं। पत्थर की समानता के आधार पर यह रीवां (म.प्र.) में स्थित गुर्गी के पुरास्थल से प्राप्त प्रतीत होती है।

यद्यपि श्रीराम की कुषाणकालीन मूर्तियाँ अभी तक संज्ञान में नहीं आई हैं । परन्तु रामकथा से जुड़े ऋषि शृंगी के जन्म एवं दशरथ पुत्री शांता से उनके विवाह सम्बन्धी कथानक का अंकन मथुरा कला के विभिन्न कुषाणकालीन वेदिका स्तम्भों पर हुआ है, जो आज की चर्चा में प्रासंगिक है। शृंगी ऋषि की कथा में उल्लेख है कि उनका जन्म एक हिरणी के गर्भ से हुआ था। सिर पर एक श्रृंग (सींघ) होने के कारण उनका नाम शृंगी या एक श्रृंग पड़ा।

मथुरा संग्रहालय

मथुरा संग्रहालय में इस कथा से सम्बन्धित दो पुरावशेष संकलित हैं। प्रथम मथुरा के गोविन्दनगर पुरास्थल से प्राप्त एवं वेदिका स्तम्भ (संख्या एम.एम. 76.40) है, जिस पर श्रृंगी के जन्म का दृश्य उत्कीर्ण है। ऊपर से देखने पर बुद्ध के उष्णीष की उपासना दृश्य के उपरांत दूसरे दृश्य में श्रृंगी के पिता विभाण्डक ऋषि तथा एक हिरणी का अंकन है। तीसरे दृश्य में हिरणी के गर्भ से नवजात श्रृंगी का जन्म तथा विभाण्डक ऋषि द्वारा उसे ग्रहण करते दिखाया गया है। अंतिम चौखटे में शृंगी के विवाह का दृश्य है।


एक अन्य वेदिका स्तम्भ खण्ड पर विमोहितावस्था में ऋषि श्रृंगी का अंकन है (एम.एम. 00 जे 7)। जैसा कि कथानक है वन, आश्रम में पले बढ़े ब्रह्मचारी श्रृंगी के मन में यौन आकर्षण का भाव पहली बार तब प्रस्फुटित हुआ। जब स्त्री के रूप में उन्होंने एक राजकुमारी शांता को देखा। वे काम की प्रथम अनुभूति से विमोहित होकर एक वृक्ष के नीचे खड़े हो गए। बाद में उनका विवाह उसी कन्या से सम्पन्न हुआ।

सभी जानते हैं कि रामकथा का एक प्रमुख स्थल शृंगवेरपुर उन्हीं ऋषि श्रृंगी के नाम से जुड़ा है और वहाँ पर श्रृंगी और शांता का मंदिर भी है।

मूर्तिशिल्प में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के अनन्य भक्त अंजनी सुत हनुमान की ऐतिहासिकता का परिचय हमें नौवीं दसवीं से मिलना प्रारम्भ होता है। उत्तर तथा दक्षिण भारत के अनेक स्थानों से मिले हनुमान के आरंभिक अंकन आज लोकप्रिय 'द्रोणगिरि एवं गदाधारी' स्वरूप से कतिपय भिन्न हैं। दक्षिण भारत में धर्मगुरु मध्वाचार्य के 'मध्व' वैष्णव सम्प्रदाय में हनुमान के पंचमुखी रूप की कल्पना की गई, जो लोकप्रिय हुआ। इसके माध्यम से पाँच प्रमुख देवताओं की शक्तियों और गुणों को हनुमत् मूर्ति में समेकित करने की कल्पना अद्भुत थी।

इलाहाबाद संग्रहालय में हनुमान की पाषाण निर्मित

उत्तर भारत की प्राचीन मूर्तियों में हनुमान का स्वरूप अदम्य बलशाली सेवक एवं रक्षक का है, जिसके हृदय में श्रीराम का वास है। इलाहाबाद संग्रहालय में हनुमान की पाषाण निर्मित दो स्वतंत्र मूर्तियाँ हैं (ए.एम. 1075 तथा ए.एम. 670) दोनों मूर्तियों के कुछ अंश खण्डित हैं। मूर्तियों में हनुमान का दायाँ हाथ, मस्तक के पास अभिवादन की मुद्रा में दिखाया गया है। दायाँ हाथ मुड़ा हुआ वक्ष के समीप स्थित है। उन्हें तर्जनी उँगली से ऊपर की ओर कुछ इंगित करते हुए दिखाया गया है। सम्भवतः वे हृदय में आराध्य देव श्रीराम की उपस्थिति को दर्शा रहे हैं। उनके मस्तक पर कई वलयों वाला मुकुट, गले में कंठहार, मणिमाल, बाहों में भुजबंध तथा कमर में कटिवलय तथा उरुजालक आदि अनेक आभूषण प्रदर्शित किए गए हैं। पेटी द्वारा कमर पर कसी हुई रत्नजड़ित कटार दायीं जंघा पर लटक रही है। हनुमान के मुख पर शांत एवं सरल भाव विद्यमान हैं। नेत्रदृष्टि अन्तर्मुखी है। ऐसा प्रतीत होता है कि वे अपने आराध्य के ध्यान में निमग्न हैं।

इलाहाबाद संग्रहालय के संकलन में ही मध्यकालीन वीथिका में प्रदर्शित एक विशालकाय कैपिटल, वास्तु का भाग है (संख्या ए.एम. 1144), जिस पर चार दिशाओं की ओर मुख किए, उन चार चतुर्भुज देवताओं को भारवाहक के रूप में अंकित किया गया है जिनकी उपासना पशु रूप में होती है। ये हैं गणेश (हाथी), नृसिंह (सिंह), वराह (शूकर) तथा हनुमान (वानर)। हनुमान तथा अन्य देवताओं का, भारवाहक के रूप में यह अंकन अत्यन्त दुर्लभ तथा कल्पनापूर्ण है।श्रीराम तथा उनके प्रिय भक्त हनुमान एवं अन्य चर्चित, अधिकांशतः कलाकृतियाँ इलाहाबाद एवं मथुरा संग्रहालय की वीथिकाओं में प्रदर्शित हैं तथा सभी उत्सुक शोधकर्ताओं एवं दर्शनार्थियों की जिज्ञासा शांति हेतु सहज उपलब्ध हैं।

( लेखक इलाहाबाद राष्ट्रीय संग्रहालय के उप संग्रह पाल रहे हैं। यह लेख ‘कला व संस्कृति में श्रीराम’ पुस्तक से लिया गया है। यह पुस्तक उत्तर प्रदेश के संस्कृति विभाग द्वारा मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के संरक्षक , संस्कृति व पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह के मार्ग दर्शन , प्रमुख सचिव पर्यटन व संस्कृति मुकेश कुमार मेश्राम के निर्देशन, संस्कृति निदेशालय के निदेशक शिशिर तथा कार्यकारी संपादक तथा अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक डॉ लव कुश द्विवेदी के सहयोग से प्रकाशित हुई है। )

Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

Next Story