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Ayodhya Ram Mandir: लम्बे संघर्षों के बाद विराजमान होंगे रामलला

Ayodhya Ram Mandir:पांच सौ सालों के लम्बे संघर्षों के बाद रामलला पुन: अपने मंदिर में 22 जनवरी 2024 को विराजमान होंगे। भव्य राम मंदिर के गर्भ गृह के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में पूरी दुनिया जहां एक ओर गवाह बनेगी, वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं रामलला की प्रथम आरती करेंगे। इस सुखद दिन तक पहुंचने के लिए सनातन धर्म ने एक लम्बी लड़ाई लड़ी है और उसका एक लम्बा इतिहास है।

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Newstrack Network
Published on: 14 Jan 2024 7:20 AM IST (Updated on: 14 Jan 2024 7:20 AM IST)
Ramlala will be seated after long struggles
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लम्बे संघर्षों के बाद विराजमान होंगे रामलला: Photo- Social Media

Ayodhya Ram Mandir: पांच सौ सालों के लम्बे संघर्षों के बाद रामलला पुन: अपने मंदिर में 22 जनवरी 2024 को विराजमान होंगे। भव्य राम मंदिर के गर्भ गृह के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में पूरी दुनिया जहां एक ओर गवाह बनेगी, वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं रामलला की प्रथम आरती करेंगे। इस सुखद दिन तक पहुंचने के लिए सनातन धर्म ने एक लम्बी लड़ाई लड़ी है और उसका एक लम्बा इतिहास है।

इतिहासकारों के मुताबिक, अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण सन् 1528 में हुआ था, जबकि हिन्दू संगठनों ने 1813 में पहली बार इस जमीन पर अपना दावा पेश किया था। उनका दावा था कि अयोध्या में राम मंदिर तोडक़र बाबरी मस्जिद बनवाई गई थी। इसके 72 साल बाद वर्ष 1885 में यह मामला उस वक्त पहली बार किसी अदालत में पहुंचा, जब महंत रघुबर दास ने राम चबूतरे पर छतरी लगाने की याचिका दायर की, जिसे फैजाबाद की जिला अदालत ने ठुकरा दिया था। इसके बाद एक-एक कर हिन्दू और मुस्लिम पक्षकार आते गए और कानूनी दांव-पेच में यह मामला उलझता चला गया। इसके बाद फैजाबाद जिला अदालत में 102 साल, इलाहाबाद हाईकोर्ट में 23 साल और सुप्रीम कोर्ट में 9 साल पहले यह मामला पहुंचा। इस तरह 134 साल से तीन अदालतों में सुनवाई के बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट में 9 नवम्बर 2019 को फैसले तक पहुंचा।

हालांकि अयोध्या में बाबरी मस्जिद के निर्माण के समय को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है। लेकिन ज्यादातर इतिहासकारों के मुताबिक, जहीरुद्दीन मोहम्मद बाबर वर्ष 1528 में इब्राहिम लोदी से युद्ध करने भारत आया था। उसने पानीपत में यह लड़ाई लड़ी थी। फिर बाबर के मुगल बादशाह बनने के बाद उसके कहने पर उसके सूबेदार मीरबाकी ने वर्ष 1528 में अयोध्या में मस्जिद बनवाई। इसे बाबरी मस्जिद नाम दिया गया। इसके बाद से यह आरोप भी लगाया जाने लगा कि यहां मंदिर को तोडक़र मस्जिद बनवाई गई है। हालांकि कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इब्राहिम लोदी के शासनकाल (1517-26 ईस्वी) में ही यह मस्जिद बनकर तैयार हो गई थी। निर्माण से संबंधित मस्जिद में एक शिलालेख भी पाया गया था, जिसका जिक्र एक ब्रिटिश अफसर ए. फ्यूहरर ने कई जगह किया है। फ्यूहरर के मुताबिक, वर्ष 1889 तक यह शिलालेख बाबरी मस्जिद में मौजूद था। बहरहाल, मुगल शासन के दौरान यह स्थिति ऐसी ही बनी रही। उस दौरान की घटनाओं के प्रमाण नहीं मिलते हैं।

1813 में पहली बार हिन्दू संगठनों ने दावा किया था

वर्ष 1813 में पहली बार हिन्दू संगठनों ने दावा किया था कि बाबर ने सन् 1528 में राम मंदिर तुड़वाकर मस्जिद का निर्माण करवाया था। माना जाता है कि फैजाबाद के अंग्रेज अधिकारियों ने वर्ष 1855 में ही अपनी रिपोर्ट में इस मस्जिद में हिन्दू मंदिर जैसी कलाकृतियां मिलने का जिक्र किया था, जिसके बाद यह दावा किया गया। पूर्व आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल ने अपनी किताब ‘अयोध्या रीविजिटेड’ में इस वाकये का जिक्र करते हुए लिखा है कि वर्ष 1813 में मस्जिद में मौजूद शिलालेख के साथ जब छेड़छाड़ हुई, तभी से यह कहा जाने लगा कि मीर बाकी ने मंदिर तोडक़र मस्जिद बनवाई। कुणाल ने इस किताब में लिखा है कि मंदिर सन् 1528 में नहीं तोड़ा गया, बल्कि औरंगजेब की ओर से तैनात फिदायी खान ने सन् 1660 में इसे तोड़ा था।

हिन्दुओं के दावे के बाद से विवादित जमीन पर नमाज के साथ-साथ पूजा भी की जाने लगी। मंदिर-मस्जिद विवाद के चलते सन् 1853 में अवध के नवाब वाजिद अली शाह के समय पहली बार अयोध्या में साम्प्रदायिक हिंसा भडक़ी। बावजूद इसके, सन् 1855 तक दोनों पक्ष एक ही स्थान पर पूजा और नमाज अदा करते रहे। 1855 के बाद मुस्लिमों को मस्जिद में प्रवेश की इजाजत मिली, लेकिन हिन्दुओं को अंदर जाने की मनाही कर दी गई। ऐसे में हिन्दुओं ने मस्जिद के मुख्य गुम्बद से 150 फीट दूर बनाए गए राम चबूतरे पर ही पूजा शुरू कर दी। इसके बाद सन् 1859 में ब्रिटिश सरकार ने विवादित जगह पर तार की बाड़ लगवा दी। इसके बाद से ये मामला यूं ही चलता रहा। सन् 1855 से 1885 तक फैजाबाद के अंग्रेज अफसरों के रिकॉर्ड में मुस्लिमों की ओर से की गई शिकायतों का ब्योरा मिलता है, जिनमें विवादित जमीन पर हिंदुओं की गतिविधियां बढऩे की शिकायतें की गई थीं।

निर्मोही अखाड़े ने दाखिल की याचिका

अयोध्या विवाद की असल शुरुआत 23 दिसंबर 1949 को हुई, जब विवादित स्थल पर भगवान राम की मूर्तियां पाई गईं। यूपी सरकार ने मूर्तियां हटाने का आदेश दिया, लेकिन हिन्दुओं की भावनाओं के भडक़ने के डर से इस आदेश को पूरा करने में असमर्थता जताई गई। तब सरकार ने इसे विवादित स्थल मानकर मस्जिद पर ताला लगवा दिया।

इसके बाद इस मामले में साल 1950 में फैजाबाद सिविल कोर्ट में दो अर्जियां दाखिल की गईं, जिनमें एक में राम लला की पूजा की इजाजत और दूसरे में विवादित ढांचे में भगवान राम की मूर्ति रखे रहने की इजाजत मांगी गई। इसके बाद 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने तीसरी अर्जी दाखिल की, जिसमें निर्मोही अखाड़ा चाहता था कि उसे राम जन्मभूमि का प्रबंधन और पूजन का अधिकार मिले। इसके बाद साल 1961 में यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अर्जी दाखिल कर विवादित जगह पर उसे कब्जा दिलाने और मूर्तियां हटाने की मांग की थी। तब से यह मामला अदालत में विचाराधीन था।

सन् 1885 से 1987 तक फैजाबाद जिला अदालत में दाखिल याचिकाएं

1885 : पहली बार मामले को न्यायालय में उठाया गया। फैजाबाद की जिला अदालत में महंत रघुबर दास ने राम चबूतरे पर छतरी लगाने की अर्जी लगाई, जिसे ठुकरा दिया गया।

1934 : अयोध्या में दंगे भडक़े। बाबरी मस्जिद का कुछ हिस्सा तोड़ दिया गया। इसके बाद विवादित स्थल पर नमाज बंद करा दी गई।

1949 : मुस्लिम पक्ष का दावा है कि बाबरी मस्जिद के मध्य वाले गुम्बद के नीचे हिन्दुओं ने रामलला की मूर्ति स्थापित कर दी। इसके सात दिन बाद ही फैजाबाद जिला अदालत ने बाबरी मस्जिद को विवादित भूमि घोषित कर दिया और इसके मुख्य दरवाजे पर ताला लगा दिया गया।

1950 : हिन्दू महासभा के वकील गोपाल ‘विशारद’ ने फैजाबाद जिला अदालत में अर्जी दाखिल कर रामलला की मूर्ति की पूजा करने का अधिकार दिए जाने की मांग की।

1959 : निर्मोही अखाड़े ने विवादित स्थल पर अपना मालिकाना हक जताया।

1961 : सुन्नी वक्फ बोर्ड (सेंट्रल) ने मूर्ति स्थापित किए जाने के खिलाफ कोर्ट में अर्जी लगाई और मस्जिद व आसपास की जमीन पर अपना हक जताया।

1986 : फैजाबाद डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने बाबरी मस्जिद का ताला खोलने का आदेश दिया।

1987 : फैजाबाद जिला अदालत से पूरा मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट को ट्रांसफर कर दिया गया।

अयोध्या विवाद : सन् 1526 से अब तक की खास घटनाएं

1526 : इतिहासकारों के मुताबिक, बाबर इब्राहिम लोदी से जंग लडऩे सन् 1526 में भारत आया था। बाबर के सूबेदार मीरबाकी ने सन् 1528 में अयोध्या में मस्जिद बनवाई और इसे ‘बाबरी मस्जिद’ नाम दिया गया।

1853 : अवध के नवाब वाजिद अली शाह के समय पहली बार अयोध्या में साम्प्रदायिक हिंसा भडक़ी। हिंदू समुदाय ने कहा कि मंदिर तोडक़र मस्जिद बनाई गई।

1949 : विवादित स्थल पर सेंट्रल डोम (मध्य गुम्बद) के नीचे रामलला की मूर्ति स्थापित की गई।

1950 : हिंदू महासभा के वकील गोपाल ‘विशारद’ ने फैजाबाद जिला अदालत में अर्जी दाखिल कर रामलला की मूर्ति की पूजा करने का अधिकार प्रदान किए जाने की मांग की।

1959 : निर्मोही अखाड़े ने विवादित स्थल पर मालिकाना हक जताया।

1961 : सुन्नी वक्फ बोर्ड (सेंट्रल) ने मूर्ति स्थापित किए जाने के खिलाफ कोर्ट में अर्जी लगाई और मस्जिद व आसपास की जमीन पर अपना हक जताया।

1981 : उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने जमीन के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया।

1985 : फैजाबाद की जिला अदालत ने राम चबूतरे पर छतरी लगाने की अर्जी ठुकराई।

1989 : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित स्थल पर यथास्थिति बरकरार रखने को कहा।

1992 : अयोध्या में विवादित ढांचा ढहा दिया गया।

2002 : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित ढांचे वाली जमीन के मालिकाना हक को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।

2010 : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2:1 से फैसला दिया और विवादित स्थल को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच तीन हिस्सों में बराबर-बराबर बांट दिया।

2011 : सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई।

2016 : सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण की इजाजत मांगी।

2018 : सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद को लेकर दाखिल विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।

6 अगस्त 2019 : सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर हिंदू और मुस्लिम पक्ष की अपीलों पर सुनवाई शुरू की।

16 अक्टूबर 2019 : सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई पूरी हुई।

09 नवम्बर 2019 : सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया। फैसले में विविादित भूमि राम लला विराजमान को देने और मुस्लिम पक्ष को पांच एकड़ जमीन अन्यत्र दिए जाने की व्यवस्था दी।

(भास्कर दूबे)

Shashi kant gautam

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