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47 साल पहले जयद्रथ वध से शुरू हुआ था रामलीला मंचन का सफर

कुछ इसी तरह श्री राम लीला नाटक क्लब के पुराने पदाधिकारियों जो अब इस दुनिया में नहीं हैं के बच्‍चे आज भी इस क्‍लब से जुड़ हैं और भगवान श्री राम का संदेश लोगों तक किसी न किसी रूप में पहुंचा रहे हैं।

Manali Rastogi
Published on: 27 Jun 2023 2:02 AM GMT (Updated on: 27 Jun 2023 2:28 AM GMT)
47 साल पहले जयद्रथ वध से शुरू हुआ था रामलीला मंचन का सफर
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47 साल पहले जयद्रथ वध से शुरू हुआ था रामलीला मंचन का सफर

दुर्गेश पार्थसारथी

पठानकोट: पंजाब की कुछ पुरातन रामलीला कमेटियों में सुमार पठानकोट के भरोलीकलां की रामलीला कमेटी भी एक है। यह कमेटी जितनी पुरानी है उतना ही इसका इतिहास भी। कहा जाता है कि आज से करीब 47 साल पहले 1969 में जयद्रथ वध और सुल्‍ताना डाकू नाटक से शुरू हुआ यह सफर जिले की प्रसिद्ध रामलीला कमेटियों में शुमार है।

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श्री राम लीला नाटक क्लब के प्रधान ठाकुर विजय सिंह कौहाल कहते हैं कि वर्ष 1969 में हमारे बुजुर्गों की ओर से ड्रामे शुरू किए गए। 1972 तक क्लब की और से हर वर्ष केवल जैद्रथ वध व सुलताना डाकू सहित चार ड्रामे किए जाते थे। 1973 में क्लब के सरप्रस्त सिद्वार्थ राम और राम नाथ जोगी ने ड्रामा की बजाय दस दिनों तक राम लीला करने का फैसला किया गया।

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उस समय की राम लीला में जितने सदस्य हुआ करते थे उसमें से धीरे-धीरे सभी कलाकार साथ छोड़ गए। क्लब का निमाण करने वाले सदस्यों में से आज कोई भी इस दुनिया में नहीं है। दूसरी पीढ़ी नई पीड़ी के साथ बखूबी अपनी जिम्मेवारी को निभा रही है।

सिद्धार्थ राम ने निभाई थी रावण की भूमिका

विजय सिंह कहत हैं 1972 में पहली बार सिद्वार्थ राम ने रावण की भूमिका निभाई थी। वे कहते हैं कि उस समय रावण का किरदार निभाने को कोई तैयार नहीं था। कहते थे उनमें रावण जैसी बुराई आ जाएगी। लेकिन इन सब मिथकों को तोड़ते हुए सिद्धार्थ राम ने रामवण की भूमिका निभाई।

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उस समय वह पठनाकोट आरएमएस में किसी बड़े ओहदे पर तैनात थे। इसके बाद उन्‍होंने अगले वर्ष अपने घरेलू समस्या के कारण मुझे रावन बनने का मौका दिय। विजय सिंह कहते हैं कि इसके बाद से उन्‍होंने 43 वर्षों तक अपने किरदार को बखूबी निभाया।

विेदेश में थे, लेकिन दिल में बसती थी रामलीला

उन्‍होंने बताया कि इस दौरान उनके पिता स्वर्गीय हरबंस सिंह ने उन्हें साल 1982 में काम काज के सिलसिले में विदेश भेज दिया। छह महीने तक वहां बखूबी काम किया परंतु भारत में जब नवरात्रों शुरू हुए तो उनका मन कामकाज में नहीं लगा। क्‍योंकि दिल में तो यहां कि रामलीला और उसका किरदार बसा था।

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सो एक साल के भीतर भी अपने वतन लौट आया और फिर भरोलीकलां की रामलीला से जुड़ गया है। और अब भी कमेटी सदस्‍य के रूप में सेवाएं दे रहा हूं। इस बार 29 सितंबर को राम लीला क्लब की ओर से पहली नाइट का आयोजन किया जाएगा।

आज भी जुड़ा है सिद्धार्थ राम का परिवार

करीब दो साल पहले 90 वर्ष की उम्र में सिद्धार्थ राम का निधन हो गया। उनके निधन के बाद उनके उनका परिवार जो कि आरपीएफ में कमांडेंट, इंजीनियर और रेलवे सुरक्षा बल में बड़े वोहदे पर तैनात होने के बाद भी सिद्धार्थ राम के सभी बेटे घर आते हैं और पूरे दस दिन तक रामलीला में किसी न किसी रूप में अपनी भूमिका निभाते है।

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कुछ इसी तरह श्री राम लीला नाटक क्लब के पुराने पदाधिकारियों जो अब इस दुनिया में नहीं हैं के बच्‍चे आज भी इस क्‍लब से जुड़ हैं और भगवान श्री राम का संदेश लोगों तक किसी न किसी रूप में पहुंचा रहे हैं।

Manali Rastogi

Manali Rastogi

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