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एक कविता खोए हुए अपनों की याद में
Poetry: बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ में पर्यावरण विज्ञान विभाग में प्रोफेसर डा .राणा प्रताप सिंह की लिखी कविता
समय के खंडहर में दब जाएगी
मई, 2021 भी
इतनी झंझावातों के बावजूद
अनेक अन्य कालखंडों की तरह
अपने सभी अनखुले
और अधखुले रहस्यों के साथ
इतनी दर्दनाक मौतों को
कन्धे पर लादकर
समा जायेगा यह कालखंड भी
समयावशेष की अँधेरी खोह में
अपनी कराह के साथ धीरे धीरे
हम सबने खो दिए
अपने अनेक प्रिय
घरों
अस्पतालों के अंदर
और अस्पतालों की चौखट पर
बेचैनी से छटपटाते हुए
बंधी हुई साँसों की
गाँठे न खोल पाने की
हमारी तड़प को देख
मई ,2021 ने नजरें झुकाकर
चुपचाप
मुँह फेर लिया
पड़ोसियों
रिश्तेदारों
और सरकारों की तरह
तुम्हारा जाना
नहीं है किसी और के जाने जैसा
तुम बहुत दिनों तक
बहुत बहुत याद आओगे
तब तक जब तक मई ,21
दब नहीं जाएगी
इस मानव युग की समाधि में
मैं नहीं रहूँगा तब भी
लोग याद करेंगे तुम्हें भी
हमारे होने के साथ
ऑक्सीजन की तड़प के साथ
अस्पतालों की आपाधापी के साथ
दवाईयों की कालाबाजारी
और सत्ता , धन तथा वर्चस्व की भूख के
वैश्विक गठजोड़ के साथ
यह समय
व्यापार
राजनीति
और अहंकार की
हिंसक युद्ध प्रणाली के लिए भी
याद किए जायेंगे
तुम्हारे साथ साथ
जिनके राज छिपे हुए रहते हैं
चमगादड़ों की गुफा में
मकड़ी के जालों
और अँधियारी खोहो के पीछे
किसी की हिम्मत नहीं
कि एक रौशनी जलाकर
प्रवेश कर सके इस मृत्यु काल के रहस्य
इन अंधियारी खोहों के भीतर
अनुसन्धान के लिए
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लेखक डा .राणा प्रताप सिंह, बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ में पर्यावरण विज्ञान विभाग में प्रोफेसर हैं।
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