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Rana Sanga Controversy: औरंगजेबी सोच लोकतंत्र के लिए घातक, हिंदुओं के खिलाफ हो रही गहरी साजिश
Rana Sanga Controversy: राणा सांगा के विरुद्ध संसद में जो राम जी लाल सुमन ने बोला वो अकारण नहीं बोला बल्कि वामपंथियों, कांग्रेस और अखिलेश यादव द्वारा प्रायोजित और योजनाबद्ध तरीके से प्लान किया गया था।
Rana Sanga Controversy: पिछले दिनों संसद में समाजवादी पार्टी के राज्य सभा सांसद राम जी लाल सुमन (Ramji Lal Suman) ने राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीक राणा सांगा (Rana Sanga) के विषय में अशोभनीय और बेहद गंदी टिप्पणी की वो बेहद निंदनीय हैं। राणा सांगा एक व्यक्ति नहीं बल्कि राष्ट्रीय भावना के बृहद विचार पुंज है।
महाकुंभ में सनातन एकता देख सपाई बौखलाए
राणा सांगा के विरुद्ध संसद में जो राम जी लाल सुमन ने बोला वो अकारण नहीं बोला बल्कि वामपंथियों, कांग्रेस और अखिलेश यादव द्वारा प्रायोजित और योजनाबद्ध तरीके से प्लान किया गया था। इधर, महाकुंभ में जो पूरे विश्व से सनातनी आए उन्होंने जातीयता की खाई को पाट दिया।
पूरे सनातन समुदाय ने आस्था की जो डुबकी लगाई और विश्व के सबसे बड़े सनातन समागम कुंभ ने विभाजनकारी शक्तियों के पेट में मरोड़ पैदा कर दिया जिसके कारण इन लोगों ने राम जी लाल सुमन से ये जहरीला वक्तव्य दिलवाया।
दलितों पर क़हर बरपा रहे सपाई
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
दूसरी सियासी वजह थी हाल के दिनों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलित बेटियों के ऊपर मुस्लिमों ने खूब कहर बरपाया। जिससे दलित मतदाता सपा से दूर हुआ, उसके बाद सम्भल की घटना ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हिंदुओं को एकजुट कर दिया।
पीडीए (PDA) के फर्जी प्रोपोगंडा को ढहता देख अखिलेश यादव ने कलुषित मानसिकता से ग्रसित होकर अपने सांसद से न केवल ये बयान दिलवाया बल्कि रामजी लाल सुमन के बयान का समर्थन भी किया। साथ ही वीर शिवाजी के राज्याभिषेक पर अपमानजनक टिप्पणी की। और जब विभिन्न संगठनों ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त किया तो इसे जातिगत रंग देने का प्रयास किया।
राणा सांगा, महाराणा प्रताप, गुरु गोविंद सिंह और वीर शिवा जी और उनके पुत्र ने जो लड़ाइयां लड़ीं वो राष्ट्र के लिए लड़ीं, सनातन को बचाने के लिए लड़ीं और इस लड़ाई में सभी जातियों ने इन वीर सपूतों का साथ दिया।
मेवाड़ के राजकीय ध्वज में एक तरफ महाराणा प्रताप तो दूसरी तरफ भील राणा पुंजा सुशोभित थे। हमारी इसी संस्कृति को मिटाने के लिए इन सनातन विरोधी लोगों के द्वारा हमेशा षडयंत्र किया जाता रहता है।
दलितों को सनातन से अलग करने की साज़िश में सपा
सनातन को बांटने वाले लोग क्या समझ पाएंगे कि आखिर क्यों जैसे महाराणा अपने मेवाड़ के स्वाभिमान के लिए लड़ रहे थे वैसे ही भील उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर क्यों खड़े थे? उसका सिर्फ एक कारण है हमारी अति प्राचीन व्यवस्था में शुरू से ही सब बराबर है, राष्ट्र सबका है, मेवाड़ पर जितना अधिकार राणा प्रताप का था उतना ही अधिकार भीलो और वनवासियों का भी था। इन जातिवादी चिंतकों के अनुसार तो भीलों को अधिकार ही नहीं था साथ बैठने का। फिर कैसे मेवाड़ के झंडे पर एक भील आकर सुशोभित हो गया..?
हमारे सनातन संस्कृति के महत्वपूर्ण अंग दलित भाइयों को हिंदुत्व से तोड़ने का प्रयास और षड्यंत्र कांग्रेसियों वामपंथियों और अखिलेश यादव जैसे तथा कथित समाजवादी लोग करते रहते हैं, पर इतिहास उन्हें सदैव हम से जोड़े रखेगा क्योंकि ये परम्परा शुरू होती है, हम सबके आराध्य प्रभु श्री राम से जो निषादराज को अपने गले लगा कर कहते हैं कि जितना मुझे भरत प्रिय है उतना ही तुम प्रिय हो निषादराज, और जब बात भक्ति पर आई तो वन में बैठी बूढ़ी भीलनी अम्मा शबरी के दिये झूठे फल भी खाये थे।
महर्षि बाल्मीकि ने रामायण की रचना किया।
विदुर की नीतियों के बिना महाभारत अधूरा है।
'स्वयं भगवान कृष्ण ने दुर्योधन की मेवा त्यागी साग विदुर घर खाया था'।
महाराणा प्रताप हिंदू एकता के शिल्पकार थे।
भगवान वेद व्यास ने महाभारत की रचना किया।
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
रघुकुल की इसी परंपरा का निर्वहन किया राणा सांगा और उनके वंशज महाराणा प्रताप ने, महाराणा प्रताप आज से साढ़े चार सौ साल पहले हिन्दू एकता के सिद्धांत के शिल्पकार थे, प्रताप का घोष था- भीली जायो-राणी जायो भाई-भाई! जिसका मतलब हैं भीलों और राजपूतों के पुत्र आपस में भाई-भाई हैं, यह सोच थी बप्पा रावल के वंशजों की। मेवाड़ के लिए महाराणा प्रताप अकेले ही संघर्षरत नहीं थे। बल्कि मेवाड़ की हर जाति वर्ण उनके साथ अपने अपने सामर्थ्यनुसार संघर्षरत था, जो युद्ध लड़ सकते थे वो युद्ध लड़े और भामाशाहों ने आर्थिक सहयोग दिया। तो किसानों ने अन्न से सहयोग किया। भीलों ने तीर कमान संभाले और युद्ध किया। गड़िया लुहारों ने लोहे के अस्त्र शस्त्र बना के महाराणा को सहयोग दिया।
इतना ही नहीं, उन्होंने प्रतिज्ञा तक ली कि जब तक महाराणा पुनः चित्तौड़ के सिंहासन पर आरूढ़ नहीं होंगे तब तक वो महाराणा के साथ वन-वन रहेंगे, घरों में नहीं रहेंगे और ये गड़िया लुहार के वंशज जिनके पूर्वजों का त्याग पूज्यनीय हैं विगत 450 वर्षों से महाराणा को दिए अपने वचन का मान रख रहे हैं। आज तक खानाबदोश घुमन्तु यायावर जीवन जी रहे हैं ।
विभाजनकारी शक्तियों और आक्रांताओं के पैरोकारों से देश को बचाना आवश्यक है, आज जरूरत है कि इनके झूठे नरेटिव को एकजुट होकर ध्वस्त करने की, वास्तविक इतिहास से लोगों को परिचित कराने की, आक्रांताओं के प्रतीकों को नष्ट करने की औरंगजेबी मानसिकता को कुचलने से ही राष्ट्र और लोकतंत्र का भला होगा।
पिछले 2500 वर्षों में भारत ने लगभग 25 विभाजन की विभीषिका झेली हैं, अकेले पिछले तीन सौ सालों में ही देश के सात विभाजन हुए हैं। हमारी सभ्यता, संस्कृति, और हमारे धर्म के खिलाफ बोलने वालों, धर्मांतरण और लव जिहाद और घुसपैठियों के खिलाफ कठोर कानून की आवश्यकता है।
अस्तित्व पर आ सकता है संकट
अगर हम समय रहते नहीं चेते तो हमारे अस्तित्व पर संकट आएगा ही आयेगा, आज असम, पश्चिम बंगाल नागालैंड सहित देश के कई राज्यों में जो डेमोग्राफिक परिवर्तन हुए हैं उसका कारण आप सभी जानते हैं। आज लगभग 20 से- 25 करोड़ की जनसंख्या होगी जिनके पूर्वज सनातनी थे। भारतीय संस्कृति को मानने वाले थे। लेकिन दबाव और प्रलोभन से उनका धर्मांतरण करवाया गया। ध्यान रहे बाबर आया तो उसने इस्लाम का प्रचार किया, ब्रिटिश आए तो क्रिश्चियन को बढ़ावा दिया, इनका उद्देश्य सत्ता के द्वारा धर्म को विस्तार देना था।
बदलती डेमोग्राफी है बड़ी चुनौती
आज भारत मां के सपूतों की सरकार हैं, जिसने नक्सलवाद, धर्मांतरण, घुसपैठ, लव जिहाद और सांप्रदायिक दंगों भ्रष्टाचार और जनसंख्या विस्फोट के द्वारा डेमोग्राफिक परिवर्तन पर बहुत हद तक नियंत्रण किया है। वर्तमान केंद्र की और भाजपा शासित सरकारों ने विशेषकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इस पर प्रभावी नियंत्रण किया और जिसका परिणाम है कि उत्तर प्रदेश से संगठित अपराध खत्म हो गया है, पिछले आठ सालों में एक भी सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ। भय भूख और भ्रष्टाचार से ऊपर उठकर आज विकास युक्त प्रदेश की पहचान बन चुका हैं, योगी सरकार ने दंगाइयों और उपद्रवियों को समझा दिया गया है कि कायदे में रहोगे तो फायदे में रहोगे।
हमारी भारत भूमि की ये विशेषता रही है कि मां भारती ने सदैव ही ऐसे पुत्र जन्मे जिन्होंने पूरे देश को जोड़ने ओर सबको साथ लेकर चलने का व्रत धरा, जिन पर पूरा भारतवर्ष सदैव गर्व करता रहेगा। इसलिए सदैव विभाजनकारी शक्तियों के मंसूबे सफल नहीं हो पाते हैं।
एक अति प्राचीन और गौरवशाली राष्ट्र के रूप में हमारे पास असीम ऊर्जा और संभावनाएं हैं। और हम सब मिलकर देश को आत्मनिर्भर और सशक्त राष्ट्र के रूप परिवर्तित करने के लिए अपना सम्पूर्ण अस्तित्व समाज और राष्ट्र की सुरक्षा में निहित करके "वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः" के भावों को आत्मसात करके आगे बढ़ते रहेंगे और अपने पूर्वजों, महापुरुषों के प्रति राष्ट्र सदैव कृतज्ञ रहेगा।
(लेखक उत्तर प्रदेश सरकार में पूर्वांचल विकास बोर्ड के सदस्य हैं।)