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RSS History: राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ परिवर्तन की ओर
RSS History: आरआरएस की स्थापना वर्ष 1925 में डा. केशव बलिराम हेडगेवर ने नागपुर शहर में की थी। तब उनका उद्देश्य एक ऐसे युवा संगठन को संगठित करके आत्मनिर्भर बनाना था, जो हिंदु संस्कृति को अपनाते हुए अपने श्रेष्ठ चारित्रिक गुणों के साथ हिंदु राष्ट्र की स्थापना कर सके।
RSS History: परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है। प्रकृति का विधान सजीव व निर्जीव दोनों पर समान रूप से क्रियान्वित होता है, फिर चाहें मनुष्य, संस्था अथवा देश ही क्यों न हो। परिवर्तन का सबसे बड़ा उदाहरण हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही है। वे जितने अधिक परिवर्तनों के साक्ष्य बने हैं, सम्भवतया विश्व में उनके समकक्ष अन्य कोई उदाहरण मिलना असम्भव है। रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने वाला एक निरीह बालक भाग्य परिवर्तन के स्वरूप सर्वप्रथम मुख्यमंत्री तत्पश्चात प्रधानमंत्री बन जाता है। जो व्यक्ति 35 वर्ष तक भिक्षा मांगकर अपना जीवन यापन करता था, वो देश की 80 करोड़ जनसंख्या को प्रतिदिन भोजन कराए ये परिवर्तन की पराकाष्ठा है।
आरआरएस की स्थापना वर्ष 1925 में डा. केशव बलिराम हेडगेवर ने नागपुर शहर में की थी। तब उनका उद्देश्य एक ऐसे युवा संगठन को संगठित करके आत्मनिर्भर बनाना था, जो हिंदु संस्कृति को अपनाते हुए अपने श्रेष्ठ चारित्रिक गुणों के साथ हिंदु राष्ट्र की स्थापना कर सके। उनके जीवन का प्रमुख संकल्प सनातन धर्म का पालन करते हुए हिंदु संस्कृति को पुनर्जीवित करना था। इसलिए सेवाभाव का उद्देश्य रखते हुए उन्होंने सफेद रंग की कमीज तथा खाकी निक्कर को अपनी वेशभूषा के रूप में धारण किया, जिससे संगठन के कार्यकर्ता युवा देश सेवा के लिए सदैव तत्पर रहे। यह संगठन प्रारम्भ में अधिकांशतः अविवाहित निष्ठावान युवको का एक समूह था। डा. केशव 44 साल तक संघ सर कार्यवाहक के पद पर रहे। उन्होंने अपने निर्देशन में एक सशक्त संगठन तैयार किया तथा संगठन के कार्यकर्ताओं को तलवार, लाठी आदि की भी शिक्षा प्रदान की। इसकी शाखाओं में युवाओ को विभिन्न प्रकार के शारीरिक अभ्यास, ध्यान, सूर्यनमस्कार एवं कबड्डी, खो-खो जैसे खेलों से शरीर को सुदृढ़ करने का नित अभ्यास कराया जाता है ताकि वे भारत की युवा पीढ़ी के चरित्र का निर्माण कर सकें। संगठन में युवाओं को भारतीय संस्कृति के विद्वत बौद्धिक के द्वारा समावेश कराया जाता है।
समय चक्र में परिवर्तन के साथ-साथ आरएसएस की कार्यप्रणाली में परिवर्तन प्रारम्भ हुआ, वेशभूषा में परिवर्तन स्वरूप निक्कर से पैंट का चलन हुआ। जहाँ प्रारम्भ में स्वयं सेवक सादा भोजन व कठोर जीवन व्यतीत करते थे, समय की पुकार के साथ उनकी सुख सुविधाओं का भी ख्याल रखा जाने लगा। संघ ने अपने लक्ष्य प्राप्ति हेतु राजनीति को एक आधार बनाना प्रारम्भ कर दिया, जिसके अन्तर्गत सर्वप्रथम जनसंघ तत्पश्चात भाजपा में अपने कार्यकर्ताओं का समावेश करना प्रारम्भ कर दिया। अब संघ ने हिन्दुत्व के साथ-साथ राजनीतिक रूप भी धारण करना प्रारम्भ कर दिया, अंततोगत्वा संघ ने भाजपा को अपना सबल समर्थन देना प्रारम्भ कर दिया। वर्तमान में संघ ने भाजपा में अपना प्रभुत्व इतना अधिक कर लिया है कि भाजपा का कोई भी निर्णय, संघ से विचार-विमर्श किये बिना अपनी परिणिती को प्राप्त होना सम्भव नहीं है।
आज जिस प्रकार आरआरएस कॉडर के अतिरिक्त अन्य दलों के नेताओं का समावेश भाजपा में प्रारम्भ हो गया है। दुर्भाग्य यह है कि ये नेतागण संघ की संस्कृति से भलीभांति परिचित भी नहीं हैं और अनर्गल भाषा तथा भारतीय संस्कृति के विरूद्ध कार्यों में भी संलिप्त हैं। ऐसे लोग भाजपा की छवि को क्षति पहुँचाने का कार्य करते हैं। भाजपा में सम्मिलित आरएसएस से इतर नेताओं को देखकर अब यह निर्णय लेना अतिआवश्यक हो गया है कि उनको राजनीति का कोई भी पद देने से पूर्व 3 वर्ष तक संघ की कार्यशालाओं में प्रशिक्षण प्रदान किया जाए। इसके अतिरिक्त भाजपा के सभी नेताओं की संतान को विद्या मंदिर में शिक्षा ग्रहण करना अनिवार्य हो, ऐसा न करने पर उसे भाजपा के किसी भी पद के लिए अयोग्य घोषित किया जाए। संघ के प्रत्येक कार्यकर्ता का लक्ष्य संघ की प्रतिष्ठा को उच्च स्थान पर पहुँचाना होना चाहिए।
अभी तक संघ पुरूष प्रधान संगठन है। समय के साथ-साथ इसमें महिलाओं का प्रवेश भी प्रारम्भ कराये जाने की आशा है, क्योंकि यदि संघ को राजनीतिक सफलता एवं स्थिरता प्राप्त करनी है तो वह सफलता महिलाओं के सहयोग के बिना सम्भव नहीं हो सकती। समय परिवर्तनशील है अब देखना यह है कि भविष्य में संघ की कार्यप्रणाली में कितने और परिवर्तन होगें। हिन्दुस्तान की जनता संघ से यह आशा तथा अपेक्षा अवश्य करती है कि वे देशसेवा के साथ-साथ हिन्दु संस्कृति को सबल बनायेगा।
( लेखक शिक्षाविद हैं ।)