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Religion Change: धर्म के नाम पर जारी है अधर्म

Religion Change: प्राचीन राष्ट्रों में ज्यादातर धर्मांतरण डंडे या थैली या कुर्सी के जोर पर हुआ है, जैसा कि आजकल राजनीतिक दल-बदल होता है।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Published on: 16 Nov 2022 5:13 AM GMT
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Religion Change: (फोटो: सोशल मीडिया )

Religion Change: भारत में कोई स्वेच्छा से अपना धर्म बदलना चाहे तो यह उसका मौलिक अधिकार है लेकिन मैं पूछता हूं कि ऐसे कितने लोगों को आपने कोई नया धर्म अपनाते हुए देखा है, जिन्होंने उस धर्म के मर्म को समझा है और उसे शुद्ध भाव से स्वीकार किया है? ऐसे लोगों की आप गणना करना चाहें तो उनमें महावीर, बुद्ध, ईसा, मुहम्मद, शंकराचार्य, गुरु नानक, महर्षि दयानंद जैसे महापुरूषों के नाम सर्वाधिक अग्रगण्य होंगे लेकिन दुनिया के लगभग 90 प्रतिशत लोग तो इसीलिए किसी पंथ या धर्म के अनुयायी बन जाते हैं, क्योंकि उनके माता-पिता उसे मानते थे।

सारी दुनिया में ऐसे 5-7 प्रतिशत लोग ढूंढना भी मुश्किल हैं, जो वेद, जिंदावस्ता, आगम ग्रंथ, त्रिपिटक, बाइबिल, कुरान या गुरूग्रंथ पढ़कर हिंदू या पारसी या जैन या बौद्ध या ईसाई या मुसलमान या सिख बने हों। जो थोक में धर्म-परिवर्तन होता है, उसके लिए या तो विशेष परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं या फिर धर्म-परिवर्तन का कारण होता है- लालच, भय, जबर्दस्ती, ठगी, मजबूरी। ईसाइयत और इस्लाम का दुनिया में फैलाव ज्यादा करके इसी आधार पर हुआ है। जिन्होंने पश्चिम एशिया और यूरोप का इतिहास ध्यान से पढ़ा है, उन्हें इन मजहबों की करुण कथा विस्तार से पता है।

अनैतिक धर्मांतरण

भारत जैसे प्राचीन राष्ट्रों में ज्यादातर धर्मांतरण डंडे या थैली या कुर्सी के जोर पर हुआ है, जैसा कि आजकल राजनीतिक दल-बदल होता है। इसी के विरुद्ध हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से पूछा है कि वह इस अनैतिक धर्मांतरण को रोकने के लिए क्या उपाय कर रही है? वास्तव में धर्मांतरण-विरोधी कानून तमिलनाडू, ओडिसा और म.प्र. की सरकारों ने बनाए हैं लेकिन इनमें और अन्य प्रदेशों में भी ढेरों संगठनों का बस एक ही काम है- लोगों को ईसाई और मुसलमान बनाओ। उन्हें ये पादरी और मौलवी ईसा और मुहम्मद के सन्मार्गों पर चलने की उतनी सीख नहीं देते, जितनी अपना संख्या-बल बढ़ाने पर देते हैं। वे धर्म का नहीं, राजनीति का रास्ता पकड़े हुए हैं। यह वही रास्ता है, जो मुस्लिम बादशाहों और अंग्रेज शासकों ने अपने जमाने में भारत में चला रखा था। इसीलिए गांधीजी ने 1935 में कहा था कि ''अगर मैं कानून बना सकूं तो मैं धर्मांतरण पर निश्चित ही रोक लगा दूंगा।'' यदि कोई अपने धर्म के सिद्धांतों का प्रचार करना चाहे तो उसको उसकी पूरी छूट होनी चाहिए, जैसे कि 100 साल पहले तक भारत में विद्वानों के बीच खुलकर शास्त्रार्थ हुआ करते थे लेकिन आजकल धर्म की चर्चा सिर्फ आदिवासियों, गरीबों, पिछड़ों, ग्रामीणों और दलितों के बीच ही होती है, क्योंकि उन्हें ठगना, बेवकूफ बनाना और लालच में फंसाना आसान होता है। यह धर्म की सेवा नहीं, अधर्म का विस्तार है। इस पर केंद्र सरकार जितनी सख्ती और जल्दी से रोक लगाए उतना अच्छा है। इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि हमारे नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता पर किसी भी तरह का प्रतिबंध उचित होगा लेकिन धर्मांतरण की स्वतंत्रता के नाम पर अधर्म की गुलामी को क्यों चलने दिया जाए?

Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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